खेतीबाड़ी में सिंचाई का एक बड़ा रोल होता है. भारत की अधिकतर कृषि का क्षेत्र मानसून की बारिश पर आधारित होता है, लेकिन यह साल के कुछ ही दिन होती है. ऐसे में बारिश के महीने में ही बरसाती पानी से फसलों की सिंचाई की जा सकती है.
यानी किसानों को बाकी समय फसलों की सिंचाई करने के लिए अन्य माध्यमों पर निर्भर होना पड़ता है. जैसे- ड्रिप सिंचाई, नहर से सिंचाई, ट्यूबवेल से सिंचाई या फिर स्प्रिंकलर सिंचाई. इनकी मदद से किसान फसलों की सिंचाई करते हैं. इसमें ड्रिप और स्प्रिंकलर, दोनों माध्यम को वैज्ञानिक और उन्नत सिंचाई का तरीका कहा जा सकता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि इस तकनीक में लगभग 50 प्रतिशत तक पानी की बचत की जा सकती है.
स्प्रिंकलर सिंचाई (Sprinkler Irrigation)
जहां तक बात स्प्रिंकलर सिंचाई की है, तो यह एक ऐसी तकनीक है, जिसमें बारिश की तरह सिंचाई की जाती है. यानी जिस तरह पौधों और फसलों को बारिश में पानी मिलता है, उसी तरह स्प्रिंकलर सिंचाई के तहत पानी दिया जाता है. इस तकनीक को फव्वारा सिंचाई भी कहा जाता हैं. इसके तहत किसी ट्यूबवेल या तालाब से पाइपों द्वारा पानी को खेत तक ले जाया जाता है. इसके बाद खेत में पाइपों के ऊपर नोजल लगा दिया जाता है. उस नोजल से पानी निकलता है और फसलों के ऊपर गिरता है.
बारिश की तरह होती है सिंचाई (Irrigation is Like Rain)
इस तकनीक का मकसद यही है कि फसलों को लगे कि बरसता हो रही है. स्प्रिंकलर को ठीक से काम करने के लिए नोजल में दबाव बनाया जाता है. इसके लिए 3 तरह के स्प्रिंकलर आते हैं, रेन गन स्प्रिंकलर, फव्वारा स्प्रिंकलर और सूक्ष्म फव्वारा स्प्रिंकलर. इसमें फव्वारा स्प्रिंकलर का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है.
रेन गन स्प्रिंकलर के तहत फव्वारे से पानी बारिश की तरह और बंदूक की गति से निकलता है. यह सिंचाई तब की जाती है, जब किसी फसल को ज्यादा और तेजी में पानी चाहिए होता है. इसे पलेवा करने या गन्ने की फसल में इस्तेमाल किया जाता है.
किस पौधे को कितना चाहिए पानी (Which plant needs how much water)
मुलायम फूल और पत्तियों वाली फसल जैसे सब्जियां, सरसों आदि में मध्यम वाले फव्वारे का इस्तेमाल किया जाता है. इसके साथ ही फूलों और छोटे पत्ते वाली सब्जियों के लिए छोटे फव्वारों का इस्तेमाल होता है.
किसानों को तय करना होता है कि उन्हें किस फसल के लिए कैसा पानी चाहिए. हल्की मिट्टी वाली जगह पर फव्वारा सिंचाई का इस्तेमाल ज्यादा होता है. बता दें कि स्प्रिंकलर का चुनाव फसल और मिट्टी के आधार पर कर सकते हैं.
नोजल स्प्रे से सिंचाई (Irrigation with nozzle spray)
स्प्रिंकलर में नोजल अहम रोल होता है. यह पानी निकालने की एक दर तय करता है. यानी एक घंटे में कितना पानी देगा और वह पानी कितने वर्ग मीटर में फैलेगा. बता दें नोजल से निकलने वाले पानी और मिट्टी वाला पानी सोखने की क्षमता, दोनों में तालमेल होना चाहिए.
अगर नोजल से पानी ज्यादा निकलता है और मिट्टी उतना पानी नहीं सोख पा रही है, तो फसल पर असर पड़ सकता है. नोजल लगाने में ध्यान देना होता है कि एक नोजल का पानी दूसरे तक और दूसरे नोजल का पानी पहले तक पहुंचना चाहिए. इस तरह खेतों को बराबर पानी मिलता है.
स्प्रिंकलर सिंचाई से लाभ (Benefits of Sprinkler Irrigation)
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इसमें छोटी क्यारी नहीं बनानी पड़ती है.
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सिंचाई के लिए नालियां नहीं बनानी पड़ती है.
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इस सिंचाई में पाइप का इस्तेमाल किया जाता है.
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एक एकड़ खेत में 2 घंटे में सिंचाई कर सकते हैं. इस तरह समय की बचत के साथ पैसे की बचत होगी.
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अगर डीजल या बिजली से स्प्रिंकलर चलाते हैं, तो ट्यूबवेल की तुलना में बहुत कम खर्च होगा.
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पौधे को संपूर्ण पानी मिलेगा.
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किसान 25 से 30 प्रतिशत पानी की बचत कर सकते हैं.
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इसके अलावा फसल की पैदावार में लगभग 40 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी कर सकते हैं.