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Updated on: 25 June, 2021 4:34 PM IST
Soybean Cultivation

इस समय अधिकतर किसान सोयाबीन की खेती की तैयारी में जुट गए हैं. सोयाबीन एक ऐसी फसल है, जिससे हमें हाई प्रोटीन के साथ-साथ तेल भी मिलता है. इसमें कई बीमारियों और इंफेक्शन का इलाज छिपा है. यह मिनरल्स के अलावा, v बी कॉम्प्लेक्स और विटामिन ए की मात्रा से भरपूर है, इसलिए सभी लोग प्रोटीन के सेवन के लिए सोयाबीन को तरजीह देते हैं. 

ऐसे में किसानों के लिए सोयाबीन की खेती करना बहुत फायदेमंद है. अगर सोयाबीन की खेती की बात करें, तो इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है फसल में पोषक तत्व का प्रबंधन. आज हम अपने इस लेख में किसान भाईयों को सोयाबीन की फसल में पोषक तत्व प्रबंधन की जानकारी ही देने वाले हैं.

भारत में सोयाबीन की खेती ज्यादा पुरानी नहीं है. इसकी खेती मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और कर्नाटक में होती है. सोयाबीन में इन राज्यों की लगभग हिस्सेदारी 90 से 95 प्रतिशत तक की है. भारत में सोयाबीन का औसत उत्पादन लगभग 1 टन प्रति हेक्टेयर के उत्पादन के आस-पास है, जबकि इसका उत्पादन 3 से 35 टन प्रति हेक्टेयर तक लिया जा सकता है.

भारत में सोयाबीन की खेती के लिए क्या जरूरी है?

  • उन्नत किस्मों के बीज की उपलब्धता

  • कीट प्रबंधन की समस्याएं

  • उर्वरक प्रबंधन का आभाव

  • खरपतवार प्रबंधन

  • अनिश्चित मानसून

सोयाबीन खेती के लिए मिट्टी

सोयाबीन की खेती के लिए जरूरी मिट्टी की बात करें, तो मिट्टी का पीएच मान 6.0 से 6.8 उत्तम है, लेकिन भारत में इससे ज्यादा पीएच मान पर खेती की जा रही है. यह एक प्रमुख सीमित कारक है.

सोयाबीन में पोषण प्रबंधन और उर्वरक उपयोग

सोयाबीन की उच्च पैदावार के लिए उचित पोषण प्रबंधन और उर्वरक प्रयोग बहुत आवश्यक है. सोयाबीन में तत्वों की मांग बीज भराव के दौरान अधिकतम होती है. इसके बीज में प्रोटीन की मात्रा बहुत अधिक होती है, इसलिए बीज बनने के दौरान सोयाबीन में समुचित प्रोटीन निर्माण के लिए सल्फर और नाइट्रोजन पोषण में संतुलन बहुत ही महत्वपूर्ण है. इसके अलावा, फसल की प्रांरभिक अवस्था में नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए सोयाबीन में 20 से 25 किलो प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन उपयोग की सलाह दी गई है.

सोयाबीन में सल्फर का महत्व और सल्फर उर्वरक का प्रयोग

  • सोयाबीन में सल्फर में दाने बनने के समय सल्फर की उचित मात्रा सोयाबीन में प्रोटीन और तेल प्रतिशत में सुधार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

  • सोयाबीन की फसल में सल्फर के समय 20 से 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से सल्फर प्रयोग बहुत लाभदायक है.

  • सोयाबीन की फसल में सल्फर आपूर्ति के लिए मुख्यत बेटोनाइट सल्फर और परंपरागत सल्फर युत उर्वरकों को प्रयोग किया जाता है, लेकिन इन उर्वरकों से पौधों को तुरंत और पर्याप्त सल्फर नहीं मिल पाता है, क्योंकि पौधे सल्फर का अपटेक सिर्फ सल्फेट (So4) के रूप में ही करते हैं. ऐसे में सोयाबीन जैसी कम दिनों की फसलों में सल्फर की तुरंत और लगातार आपूर्ति के लिए सल्फेट सल्फर उर्वरक ज्यादा असरदार और प्रभावी है.

अगर इन सभी समस्याओं को देखा जाए, तो यह समझ आता है कि सोयाबीन की खेती में जमीन का पीएच मान हाई है. ऐसे में किसी भी फर्टिलाइजर का प्रयोग करें, तो फसल के लिए ठीक नहीं होगा, क्योंकि हमारी मिट्टी का पीएच मान 8 प्लस है. इसी समस्या को देखते हुए आईसीएल (ICL) फर्टीलाइजर्स लो पीएच या न्यूटन फर्टीलाइजर्स को भारत में लेकर आया है. इसका प्रयोग करके हम किसान बेहतर पैदावार प्राप्त कर सकते हैं. बता दें कि इस कंपनी की स्थापना सन् 1963 में हुई थी, लेकिन भारत में यह 1980 के आस-पास आई थी. उस समय यह पोटाश लेकर आई थी और तब लोग इसके बारे में इसलिए नहीं जानते थे, क्योंकि तब इसका माल आईसीएल द्वारा बेचा जाता था. बता दें कि आईसीएल 4 बांड में अपने प्रोडक्ट बेचता है, जिनमें Polysulphate, FertiFlow, NutriVant शामिल है.

जो किसान सोयाबीन की खेती कर रहे हैं, वह सल्फर के साथ-साथ आईसीएल (ICL) फर्टीलाइजर्स का भी प्रयोग कर सकते हैं. इससे फसल की गुणवत्ता बढ़ेगी, साथ ही उत्पादन भी अधिक प्राप्त होगा. 

इस लेख से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए आप https://www.facebook.com/krishijagran/videos/163484125805702/ पर जाकर विजिट कर सकते हैं.

English Summary: nutrient management in soybean
Published on: 25 June 2021, 04:42 PM IST

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