पुदीना मैंथा के नाम से जानी जाने वाली एक पत्तेदार फसल है, जिसकी खुशबू और स्वाद के स्वाद के कारण इसका इस्तेमाल तेल, टूथ पेस्ट, माउथ वॉश और कई व्यंजनों में किया जाता है. इसकी पत्तियों में औषधीय गुण होते हैं जिनसे तैयार दवाइयों को नाक, गठिया, नाड़ियां, गैस आदि के इलाज के लिए प्रयोग में लाया जाता है. इसका उपयोग मुंह की दुर्गंध, जहरीले कीडों के काटने पर, चेहरे की खूबसूरती निखारने, गैस, पेट दर्द, पाचन शक्ति बढ़ाने, त्वचा रोग, सर्दी, खांसी, टायफायड, निमोनिया आदि कई बीमारियों में उपयोग किया जाता है. इसके तेल की दुनियाभर में बहुत डिमांड है जिस कारण इससे अधिक मुनाफा लिया जा सकता है.
पुदीने की खेती के लिए जलवायु (Climate for Mint Farming)
इसकी खेती शीतोष्ण, समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है. नमी युक्त सर्दी इसके लिए घातक है.
पुदीने की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव (Selection of soil for Mint cultivation)
पुदीना की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जैविक तत्वों की उच्च मात्रा और पानी का अच्छा निकास हो, अच्छी मानी जाती है. उच्च नमी वाली मिट्टी में इसकी उपज अधिक होती है. इस फसल के लिए मिट्टी का pH 6-7.5 होना चाहिए.
पुदीने की किस्में (Varieties of Mint)
पुदीने (Mentha) की दो प्रकार की एक मेंथा पिप्टिका (विलायती पुदीना) और दूसरी मेंथा आर्वेन्सिस (जापानी पुदीना) प्रजातियां अधिक प्रचलित हैं.
MAS-1: यह छोटे कद की किस्म है, जिसमें रोगों से लड़ने की अधिक क्षमता के साथ जल्दी पकने के गुण भी होते हैं. इसमें मैन्थोल की मात्रा 70-80% रहती है. इसकी औसतन पैदावार 80 क्विंटल प्रति एकड़ तक है.
संकर-77: यह किस्म पत्ती धब्बा रोग के प्रति रोधक होती है. इसमें मैन्थोल की मात्रा 80-85% व जल्दी पकने वाली किस्म है. इसकी औसतन पैदावार 80 क्विंटल प्रति एकड़ आंकी गई है और 50-60 किलोग्राम प्रति एकड़ तेल लिया जा सकता है. यह किस्म शुष्क मौसम में औ रेतली दोमट मिट्टी में अच्छा उत्पादन देती है.
शिवालिक: इसकी खेती उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों और उत्तरांचल में ज्यादा की जाती है. इसमें मैन्थोल की मात्रा 65-70% होती है. इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है लेकिन फंगस रोगों से जल्दी प्रभावित होती है.
EC-41911: इस किस्म में मैन्थोल की मात्रा 70% पायी जाती है. इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ है. इस किस्म से तैयार तेल का इस्तेमाल विभिन्न व्यंजनों में स्वाद के लिए किया जाता है.
गोमती (HI-77): यह किस्म हल्के लाल रंग की होती है, और ये अन्य किस्मों के मुकाबले कम पैदावार देती है. इसमें मैन्थोल की मात्रा 78-80% होती है.
हिमालय (L-11813): यह किस्म झुलसा, सफेद धब्बे और पत्ता धब्बा रोग के प्रति रोधक क्षमता रखती है. इसमें मैन्थोल की मात्रा 78-80% रहती है. इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ और जड़ी-बूटियां के तौर पर 80-100 किलो प्रति एकड़ उपज प्राप्त की जा सकती है.
कोसी: यह 90 दिनों में तैयार हो जाती है. यह किस्म भी झुलसा, सफेद धब्बे और पत्ता धब्बा रोग के प्रति रोधक क्षमता रखती है. इसमें मैन्थोल की मात्रा 75-80 प्रतिशत होती है.
इसके अलावा सक्षम, कौशल, पंजाब स्प्रेमिंट-1 आदि भी उन्नत्त किस्मे हैं.
खेत की तैयारी और बुवाई/रोपण का तरीका (Method of sowing / planting in Mint farming)
हेरो से मिट्टी की 2-3 बार जुताई करने की बाद बुवाई जड़ों से निर्मित सकर्स द्वारा की जाती है. अंतिम जुताई के समय 16 टन गोबर की अच्छी सड़ी खाद खेत में मिला दें. 160 किलो सकर्स को एक एकड़ खेत में 2-3 सेमी जमीन में बो दिया जाता है. इसकी बुवाई दिसम्बर-जनवरी में की जाती है.
पौध संरक्षण (Plant protection)
बालों वाली सूंडी: यह पुदीना की पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाती है. इसके शरीर पर बाल उगे होते है. प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिलीग्राम/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @100 ग्राम/एकड़ या फ्लूबेण्डामाइड 20% WG @ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC @ 600 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें.
जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव किया जा सकता है.
कातरा सूंडी: यह लट्ट जड़ों के पास पौधे को खाती है जिससे पौधा मर जाता है. इसके नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 0.5 प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. या जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
तना गलन रोग: इस रोग में जड़ के पास से पौधा गलने लगता है, यह फफूंद जनित रोग है. रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेण्डजीम 12% + मैंकोजेब 63% WP की 400 ग्राम या कार्बेण्डजीम 50% WP की 200 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर पौधो की जड़ों के पास ड़ाल दे.
झुलसा रोग: इस रोग में फसल झुलसी हुई दिखाई देती है| यह रोग गर्मियों में अधिक नुकसान पहुंचाता है. लक्षण दिखाई देने पर मेटालेक्सल 4% + मेंकोजेब 64% WP @ 600 ग्राम या मेटालेक्सल 8% + मेंकोजेब 64% WP @ 500 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दे.
पुदीना की खेती में खाद एवं उर्वरक (Manure & Fertilizer of Mint farming)
खेत की अंतिम जुताई के समय गोबर की खाद 16 टन प्रति एकड़ में डालें और अच्छी तरह मिलायें। नाइट्रोजन 58 किलो (यूरिया 130 किलो), फासफोरस 32-40 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 80-100 किलो), पोटाशियम 20 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 33 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की दो डोज़ डाले, एक बुवाई के समय और एक 30-35 दिनो बाद.
सिंचाई व्यवस्था (Irrigation management)
गर्मियों में मिट्टी और मौसम के आधार पर 6-9 सिंचाइयां जरूर की जानी चाहिए। मॉनसून के बाद 3 सिंचाइयां पहली सितंबर महीने में, दूसरी अक्तूबर में और तीसरी नवंबर महीने में की जानी चाहिए. सर्दियों में एक दो सिंचाई फसल की स्थिति देख कर की जा सकती है. पाले की संभावना होने पर सिंचाई आवश्यक रूप से करें.
खरपतवार प्रबंधन (Weed management)
हाथों से लगातार खरपतवार निकालने का काम करते रहें. समस्या अधिक होने पर ग्रामाक्ज़ोन 1 लीटर और डयूरॉन 800 ग्राम प्रति एकड़ में 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें.
फसल की कटाई और भंडारण (Crop harvesting and Storage)
100-120 दिनों की फसल हो जाने पर और निचली पत्तियां पीले रंग के होने शुरू हो जायें, तब कटाई करें. दूसरी कटाई पहली कटाई के बाद 80 दिनों के बाद करें. कटाई करने के बाद इसे स्टील के या एल्यूमीनियम के बक्सों में रखना चाहिए. कटाई के बाद फसल जल्दी ही मुरझा जाती है जिससे बचाने के लिए जल्दी मंडी में भेजा जाना चाहिए.
उपज (Yield)
इसकी उपज किस्मों के चयन और जलवायु पर निर्भर करती है वैसे लगभग 80-120 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन आ जाता है, और औषधीय के रूप में 60-80 क्विंटल उत्पाद हो जाता है.
संपर्क सूत्र (For contact)
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देश में बागवानी के कई सरकारी संस्थान और कृषि विश्वविद्यालयहै जिनसे सम्पर्क किया जा सकता है.
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भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान,बेंगलौर या निदेशक 080-28466471 080-28466353 से सम्पर्क किया जा सकता है.
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केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान,रहमानखेड़ा, लखनऊ जाकर या 0522-2841022, 0522-2841023, 0522-2841027 पर फोन किया जा सकता है या इस संस्थान के वेबसाइट http://www.cish.res.in/hindi/index.php देखी जा सकती है.
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किसान हेल्पलाइन नम्बर 1800-180-1551 पर भी सम्पर्क किया जा सकता है.