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Updated on: 3 November, 2020 12:49 PM IST
Mustard Cultivation

जब किसान सरसों की खेती करते हैं, तब कई बार फसल रोगों की चपेट में आकर खराब हो जाती है. इससे फसल की उपज कम प्राप्त होती है और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. सरसों की फसल में कई तरह रोग लगते हैं, जो कि कुछ ही समय में फसल को नष्ट करके रख देते हैं,तो आइये इन रोगों के बारे में विस्तार से जानते हैं.

सरसों में लगने वाला सफ़ेद रोली रोग 

सरसों में लगने वाले इस रोग को इट रस्ट भी कहते हैं. यह बीज और मिट्टी जनित रोग है. बुवाई के 30-40 दिनों बाद इसके लक्षण पत्तियों के ऊपरी सतह पर सफेद रंग के छोटे छोटे फफोले दिखाई देते हैं और निचली पर गहरे भूरे या कथई रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. पुष्पीय भाग एवं फलिया विकृत हो जाती है तथा इसमें दाने नहीं बनते हैं.

  • रोकथाम के लिए बीज को उपचार के बाद ही बुवाई करें, इसके लिए मेटालेक्सल 35% DS @ 6 ग्राम प्रति किलो बीज को मिलाकर उपचारित करें. या जैविक माध्यम से ट्राइकोडर्मा विरिडी से 10 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें.

  • लक्षण दिखाई देने पर मैंकोजेब 75% WP @ 500 ग्राम या मेटालेक्सल 8% + मेंकोजेब 64% WP @ 500 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें. अवश्यकता होने पर 15 दिनों बाद छिड़काव दोहराएं.

सरसों में लगने वाला मृदुरोमिल आसिता या तुलासिता रोग

सबसे पहले नई पत्तियों में नीचे की तरफ रुई के समान सफेद भूरी फफूंद दिखाई देती है जिससे निचली सतह पर हल्के भूरे-बैगनी धब्बे बन जाते है और इसके ठीक ऊपर मटमेले धब्बे दिखाई देते है तथा पत्तियाँ पीले पड़ जाती है.

  • बीज को मेटालेक्सल 35% DS @ 6 ग्राम या ट्राइकोडर्मा विरिडी से 10 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें.

  • लक्षण दिखाई देने पर मेंकोजेब 75% WP @ 500 ग्राम या मेटालेक्सल 4% + मेंकोजेब 64% WP @ 600 ग्राम या मेटालेक्सल 8% + मेंकोजेब 64% WP @ 500 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दे. अवश्यकता होने पर 15 दिनों बाद छिड़काव दोहराएं.

सरसों में लगने वाला छछिया या पाउडरी मिलड्यू

सर्वप्रथम पुरानी पत्तियों में दोनों सतहों पर सफेद रंग के फफोले दिखाई देते हैं, जो तेजी से पूरी पत्तियों व डालियों पर फैल जाते हैं. इससे पौधा भोजन नहीं बना पता और पत्तियाँ पीली पड़ कर झड़ जाती है.

  • लक्षण दिखाई देने पर सल्फर 80% WDG की 800 ग्राम मात्रा या अजोक्सीस्ट्रोबीन 23% SC की 200 मिली मात्रा या फ्लुसिलाजोल 40% EC की 60 ग्राम या माइकोबुटानिल 10% WP की 40 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें.

सरसों में लगने वाला तना गलन रोग

यह बीज और मिट्टी जनित रोग है. जिसके लक्षण निचले तने पर लम्बे धब्बो के रूप में दिखाई देते है और इन पर फफूंद जाल के रूप में दिखाई देती है. आगे की अवस्था में तना फट जाता है और पौधा मुरझाकर सुख जाता है. तने पर चिरा लगाने पर चूहे की विस्टा जैसी आकृति दिखाई देती है.

  • रोग बचाव के लिए कार्बेण्डजीम 12% + मैंकोजेब 63% WP कवकनाशी की 2.5 ग्राम मात्रा या ट्राइकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार करें.

  • रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेण्डजीम 12% + मैंकोजेब 63% WP की 400 ग्राम या कार्बेण्डजीम 50% WP की 200 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें.

  • जिस क्षेत्र में इस रोग की समस्या पहले से हो वहाँ 1 किलो ट्राइकोडर्मा वीरिडी पाउडर को 50 किलो गोबर की खाद में मिलाकर खेत में बिखेर दे. खेत में उचित नमी जरूर बनाएं.

सरसों में लगने वाला अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा या झुलसा रोग

इसके लक्षण पहले पौधे की पुरानी पत्तियों पर निचली सतह पर भूरे धब्बे के रूप में देखने को मिलते हैं. उसके बाद ये धब्बे काले गोल टार्गेट बोर्ड जैसी संरचना के हो जाते है और इसके चारों तरफ पीला आवरण बन जाता है. बाद की अवस्था में ये धब्बे जल जाते है और पत्तियाँ गिर जाती है. तनों और फली पर भी इसके धब्बे दिखते हैं और फली के दाने सिकुड़ जाते हैं. 

  • लक्षण दिखाई देने पर मेटालेक्सल 4% + मेंकोजेब 64% WP @ 600 ग्राम या मेटालेक्सल 8% + मेंकोजेब 64% WP @ 500 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें.

उपयुक्त रोग सरसों की फसल में लगकर उपज पर प्रभाव डाल सकते हैं, इसलिए समय रहते इन रोगों का उपाय कर लेना चाहिए, ताकि फसल का अच्छी उपज प्राप्त हो सके. 

English Summary: Major mustard diseases and their prevention measures
Published on: 03 November 2020, 12:54 PM IST

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