Success Story: चायवाला से उद्यमी बने अजय स्वामी, मासिक आमदनी 1.5 लाख रुपये तक, पढ़ें सफलता की कहानी ट्रैक्टर खरीदने से पहले किसान इन बातों का रखें ध्यान, नहीं उठाना पड़ेगा नुकसान! ICAR ने विकसित की पूसा गोल्डन चेरी टमाटर-2 की किस्म, 100 क्विंटल तक मिलेगी पैदावार IFFCO नैनो जिंक और नैनो कॉपर को भी केंद्र की मंजूरी, तीन साल के लिए किया अधिसूचित एक घंटे में 5 एकड़ खेत की सिंचाई करेगी यह मशीन, समय और लागत दोनों की होगी बचत Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! सबसे अधिक दूध देने वाली गाय की नस्ल, जानें पहचान और खासियत
Updated on: 23 January, 2020 1:51 PM IST

हमारे देश के लगभग सभी राज्यों में भिंडी की खेती होती है. यह गर्मी और बारिश के मौसम में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण फसल है. बाजार में भिंडी की ज्यादातर मांग होने से किसानों को अच्छा-खासा भाव मिल जाता है, जिससे उनकी बहुत अच्छी आमदनी होती है, लेकिन कई बार भिंडी की फसल में कुछ कीड़े और बीमारियां लग जाती हैं, जिससे फसल की पैदावार और गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है. अगर भिंडी की खेती से अच्छी उपज लेनी है, तो फसल को कीटों और बीमारियों से बचाना बहुत ज़रूरी है. आइए आपको भिंडी की फसल की प्रमुख बीमारियां और उनके रोकथाम की जानकारी देते हैं.

प्रमुख बीमारियां और उनकी रोकथाम

पौध और जड़ गलन: जब भिंड़ी की फसल में यह रोग लगता है, तो पौधे उगते समय भूमि की सतह से गल जाते हैं. इस रोग की रोकथाम करना बेहद ज़रूरी है. इसके लिए बीज को ढाई ग्राम बाविस्टिन प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए, साथ ही बीमार पौधों को फसल से निकालते रहें.

पीला शिरा मोजेक: इस रोग में पत्तियों की शिराएं पीली, चितकबरी, प्यालेनुमा, फल छोटे और कम लगते हैं, इसलिए भिंडी की फसल के लिए यह सबसे खतरनाक बीमारी है. यह रोग रस चूसने वाले कीट सफ़ेद मक्खी से फैलता है. इस रोग से फसल को बचाने के लिए रोग रोधी किस्म पी-7 लगाएं. इसके अलावा कीटनाशक दवाओं का नियमित छिड़काव भी कर सकते हैं.

प्रमुख कीड़े और उनकी रोकथाम

सफ़ेद मक्खी: यह कीट पत्तों के लिए बहुत नुकसानदायक होता है. यह कीट पत्तों की निचली सतह से रस चूस लेता है, साथ ही इससे पीला मोजेक रोग फैलाता है. इसको रोकने के लिए लगभग 300 से 500 मिली मैलाथियान 50 ई.सी. को लगभग 200 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव कर देना चाहिए.

हरा तेला: इस प्रकार के छोटे कीट भी पत्तों की निचली सतह से रस चूस लेते हैं, जिससे पत्ते किनारों से मुड़ जाते हैं. अगर इस कीट का प्रकोप ज्यादा हुआ, तो पत्ते सूखकर गिरने लगते हैं, इसलिए इन कीटों की रोकथाम के लिए मैलाथियान का उपयोग कर सकते हैं.

फल और तना छेदक सुंडियां: इस कीट की सुंडियां बेलनाकार, हल्की पीली और भूरे काले धब्बे वाली  होती हैं. ये फसल की कलियों, फूलों और फलों को बहुत नुकसान पहुंचा सकती हैं, इसलिए इनकी रोकथाम समय पर करना बहुत ज़रूरी है. इसके लिए लगभग 400 से 500 मिली मैलाथियान या फिर कार्बोरिल 50 धू.पा. को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर तैयार कर लें. इसका छिड़काव लगभग 15 दिनों के बाद करते रहें.

ये खबर भी पढ़ें : गणतंत्र दिवस की परेड देखने के लिए इन जगहों से खरीदें टिकट

English Summary: major diseases in ladyfinger crop and their prevention
Published on: 23 January 2020, 01:56 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now