चना एक प्रमुख दलहनी फसल है जिसे रबी सीजन में लगाया जाता है. इसकी खेती सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में की जाती है. इस समय देशभर के किसान चने की बुआई कर चुके हैं. ऐसे में इसमें लगने वाले प्रमुख रोगों के बारे में जानना बेहद जरुरी है तभी इसकी गुणवत्तापूर्ण और अधिक पैदावार ले पाएंगे. तो आइए जानते हैं चने की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख रोग और उनके उपाय.
विल्ट रोग
इसे आम बोलचाल की भाषा में उकठा रोग कहा जाता है. यह रोग शुरुआत में चने की फसल में छोटे छोटे टुकड़ों में होता है. इस रोग के प्रकोप से पहले पौधे की पत्तियां मुरझाकर सूखने लगती है. लेकिन बाद चने का पूरा पौधा सूख जाता है. इस रोग से ग्रसित पौधे के तने को चीरकर देखने पर उसमें धागे नुमा काली लाइन नज़र आती है.
नियंत्रण
- उकठा रोग के नियंत्रण के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए यानी की हर वर्ष चने के बुआई के लिए जगह बदल देनी चाहिए.
- रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करना चाहिए.
- बुआई से पहले बीज को उपचारित कर लेना चाहिए.
- यदि चने की खड़ी फसल में यह रोग दिखाई दें तो कार्बेन्डाजिम (50 % WP) का प्रयोग करें.
जड़ सड़न
इस रोग के प्रकोप से पौधे के तने पर सफेद-सफेद फफूंद के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. वहीं ऊपर की तरफ काले रंग की बिंदियां दिखाई देने लगती है. तना फटकर धीरे-धीरे सूख जाता है.
नियंत्रण
- फसल में यह रोग न लगे इसलिए बीज को उपचारित करके बोना चाहिए.
- खड़ी में रोग दिखाई दे तो कार्बेन्डाजिम (50 % WP) का छिड़काव करना चाहिए.
अंगमारी रोग
इस रोग के प्रकोप से पत्तियों, तने और फलियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. चने की फसल में यह बीमारी फरवरी और मार्च के महीने में नज़र आती है.
नियंत्रण
- इस रोग के नियंत्रण के लिए बीज को उपचारित करके ही बोना चाहिए.
- खड़ी फसल में यह रोग नज़र आये तो मैंकोजेब (75 % WP) का छिड़काव करें.
झुलसा रोग
नीचे की पत्तियों में पीलापन दिखाई देता है और धीरे-धीरे पत्तियां झड़ने लगती है. इस रोग के कारण पत्तियों पर शुरुआत में बैंगनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं और जो बाद में भूरे रंग में तब्दील हो जाते हैं. जिससे पौधा कमजोर हो जाता है और फलियां कम लगती है.
नियंत्रण
- बीज को उपचारित करके ही बोना चाहिए.
- अगर खड़ी फसल में यह रोग नज़र आये तो मैंकोजेब (75 % WP) का छिड़काव करें.