हमारे कृषि प्रधान देश में अधिकतर मिली-जुली खेती होती है, लेकिन फिर भी किसान अनाज की फसलों के अलावा हरा चारा भी उगा लेते हैं क्योंकि हमारे यहां पशुओं की संख्या दूसरे देशों के पशुओं की अपेक्षा ज्यादा है. बताया जाता है कि देश में खेती के लिए लगभग 4% क्षेत्रफल में ही चारा उगाया जाता है.
इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में हरे चारे की कमी है, तो वहीं पशुओं को दिए जाने वाले दानें और चुरी की कीमतें भी लगातार बढ़ती जा रहीं हैं. ऐसे में किसानों के सामने एक अच्छा विकल्प है कि वह खेती की उन्नत विधियाँ अपनाएं, जिससे हरे चारे की पैदावार प्रति हेक्टेयर बढ़ सके और पशुओं को भी दिया जा सके. इससे किसानों को खेती के साथ-साथ पशुपालन में भी फ़ायदा होगा.
किस्मों का चयन (Selection of varieties)
फसल की ज्यादा उपज के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव करना पड़ता है. मक्का की अच्छी पैदावार के लिए कई किस्म लगा सकते हैं, लेकिन उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में फ़रवरी और मार्च में बोई जाने वाली अफ़्रीकन टाल मक्का सबसे अच्छी मानी जाती है. इसके अलावा लोबिया की किस्मों में एशियन जोयंट, ई.सी 4216, सीन 152 और उत्तर प्रदेश में लोबिया की खेती करने के लिए 5286 अच्छी किस्में है. ध्यान रहे कि इनके बीज अच्छी संस्था से ही खरीदें.
फसल की बुवाई (Crop sowing)
इन फसलों में बुवाई के लिए उचित नमी का होना बहुत ज़रूरी होता है, इसलिए ध्यान दें कि खेत में फ्लेवा के बाद 1 से 2 बार जुताई कर दें. तो वहीं बुबाई फ़रवरी से मार्च के अंतिम सप्ताह तक कर लेनी चाहिए.
उर्वरक (Fertilizer)
उर्वरक हमेशा मिट्टी की जांच करने के बाद देना चाहिए. लोबिया एक दाल वाली फसल है, इसलिए अधिक नाइट्रोजन की आवश्कता नहीं होती है. ऐसे में करीब 20 किग्रा, नाइट्रोजन और 30 से 35 किग्रा, फॉस्फोरस तत्वों की मात्रा प्रति हेक्टेयर दे सकते हैं. ध्यान दें कि मक्का की फसल में ज्यादा नाइट्रोजन देने की ज़रूरत है, क्योंकि मक्का घास कुल की फसल है.
फसल की सिंचाई (Crop irrigation)
फसलों की सिंचाई पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है. पहली सिंचाई बुवाई के करीब 20 से 25 दिन बाद कर देनी चाहिए, जिससे अगर बीज नमी की कमी के कारण ठीक से जम नहीं पाया हो, तो वह सिंचाई के वक्त जम जाए. ध्यान दें कि पहली सिंचाई हल्की और दूसरी-तीसरी सिंचाई करीब 15 दिन के अंतराल पर कर देनी चाहिए. इस तरह फसल से चारा हरा भरा पैदा होता है.
कटाई और उपज (Harvesting And yield)
फसलें हरे चारे के लिए करीब 60 से 65 दिन में तैयार हो जाती हैं. दलहनी और गैर दलहनी फसलों को मिलाकर बोया जाना चाहिए और इनकी कटाई भी साथ-साथ करनी चाहिए. इस तरह चारे में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की काफी मात्रा मिलती है, जिससे पशुओं को अधिक पौष्टिक और स्वादिष्ट चारा मिलता है, साथ ही पशुओं के दूध की मात्रा भी बढ़ती है. मक्का और लोबिया की सहफ़सली खेती काफी अच्छी मानी जाती है. इससे प्रति हेक्टेयर करीब 400 क्विंटल हरा चारा मिल सकता है.