लेह-बेरी बाकी सभी बेरों की तरह आम बेर नहीं हैं. बल्कि यह बेर कई तरह के पोषण से भरपूर होता है. इसमें इतने सारे गुण पाए जाते हैं इसी के कारण इसे एक्जोटिक फल (Exotic fruit) कहते हैं. अगर आप इसे कोई साधारण फल समझने की गलती कर रहे हैं, तो ऐसा न समझे. तो आइए इस लेख में इस लेह बेरी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी को जानते हैं और कैसे इस फल को वैज्ञानिकों व आयुर्वेद के मुताबिक, दूसरी संजीवनी बूटी (sanjeevani booti) कहां जाता है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह फल ठंडे रेगिस्तान में पैदा होने वाले विशेष खाद्य उत्पादों में भी इस्तेमाल किया जाता है. देखा जाए तो यह कई व्यापक उघमिता के साथ आम लोगों की भी आजीविका का साधन होता है. इसी के चलते सीएसआईआर (CSIR) इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए लगातार काम करता रहता है. बता दें कि यह संस्थान देश के किसान भाइयों की मदद के लिए लेह बेरी की हार्वेस्टिंग वाली बेहतरीन मशीनें विकसित करती है. ये ही नहीं यह संस्थान समय-समय पर लेह-बेरी के लिए किसानों की मदद के लिए हमेशा आगे रहती है.
लेह बेरी क्या है (what is leigh berry)
यह एक एक्जोटिक फल है, इसमें कई तरह के गुण मौजूद होते हैं. यह फल पहाड़ी क्षेत्रों में सबसे अधिक पाया जाता है. उत्तराखंड से लेकर लद्दाख के पहाड़ी क्षेत्रों में इस फल की खेती की जाती है. इसमें कमाल के औषधीय गुण होने के चलते आयुर्वेद इसे किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं मानते हैं.
मिली जानकारी के मुताबिक, देश-विदेश के बाजार में लेह बेरी की कीमत अच्छी खासी होती है. लोग भी इसे उच्च दाम के साथ खरीदने के लिए तैयार हो जाते हैं.
किसानों के लिए बेहद फायदेमंद है लेह-बेरी
अब आप सोच रहे होंगे कि लेह बेरी के फल में ही सारे गुण पाए जाते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. दरअसल, इसके पेड़ की हर एक शाखा से लेकर, पत्ती, तना और जड़ में भी कई पौष्टिक गुण होते हैं. किसान भाइय़ों के लिए तो यह किसी वरदान से कम नहीं है. क्योंकि इसके पेड़ से खेत की मिट्टी में उर्वरता बढ़ने लगती है. कई केस में तो यह भी पाया गया है कि बंजर भूमि में लेह-बेरी के पेड़ मिट्टी की उर्वरता को बढ़ा देता है.
बता दें कि इसके पेड़ की जड़ें खेत की मिट्टी को बांधे रखती हैं. इसकी जड़ों में जीनस फ्रैंकिया जीवाणु होते हैं और साथ ही इस पेड़ के आसपास के कुछ क्षेत्रों तक नाइट्रोजन अच्छी मात्रा में मौजूद होता है, जिसका असर मिट्टी में साफ देखने को मिलता है कि मिट्टी कुछ ही दिनों में खेती करने के लिए काफी उपजाऊ बन जाती है.
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