सब्जियों को उगाना किसान के लिए एक मुनाफे का सौदा होता है. लेकिन अगर इन सब्जियों में कीड़ों का लगना शुरू हो गया तो पूरी फसल को बर्बाद होते समय नहीं लगता है. किसान इन्हीं कीटों से अपनी फसल को सुरक्षित रखने के लिए कई तरह के उपाय करता है. जिसके बाद वह इन सब्जियों को बाज़ार तक पहुंचा पाता है. आज हम आपको इन्हीं सब्जियों में से एक पसंदीदा सब्जी बैंगन के बारे में बताने जा रहे हैं. बैंगन में कई तरह के कीड़ों के लगने से फसल को नुकसान होने की संभावना बनी रहती है. तो आइये जानते हैं इन कीट और उनसे प्रबंधन की पूरी जानकारी.
बैंगन के सामान्य रोग
हम जब भी किसी सब्जी के कीट प्रबन्धन के बारे में जानकारी लेना को कहते हैं तो उससे पहले उसमें लगने वाले रोग या कीट की जानकारी होना बहुत आवश्यक हो जाता है. तो आइए जानते हैं कि बैंगन में कौन से रोग लगते हैं.
बैक्टीरियल विल्ट (रालस्टोनिया सोलानेसीरम)
बैक्टीरियल विल्ट बैंगन के पौधों को प्रभावित करने वाली सबसे ज्यादा खतरानक बीमारियों में से एक है. यह मृदा-जनित जीवाणु राल्सटोनिया सोलानेसीरम के कारण होता है. यह बैक्टीरिया प्राकृतिक छिद्रों के माध्यम से पौधे में पहुंच जाते हैं और संवहनी ऊतकों को कमजोर करते हैं. जिसके बाद पौधे में जल का संवहन कमजोर हो जाता है और पौधा मुरझा जाता है.
फ्यूसेरियम विल्ट (फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम एफ. एसपी. मेलॉन्गेने)
फ्यूजेरियम विल्ट कवक फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम एफ के कारण होता है. एस.पी. melongenae यह कवक सबसे पहले पौधों की जड़ों को हानि पहुंचाता है, जिससे पौधों में होने वाला विकास धीमा हो जाता है या रुक जाता है. इसके साथ ही बैंगन के पौधे की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. इस रोग का कारक जिस मिट्टी में होता है वह फसल के बाद भी लम्बे समय तक मिट्टी में ही बना रहता है साथ ही अन्य फसलों के लिए भी हानिकारक होता है. इसकी रोकथाम के लिए फसल चक्र आवश्यक हो जाता है.
फाइटोफ्थोरा ब्लाइट (फाइटोफ्थोरा एसपीपी)
फाइटोफ्थोरा ब्लाइट फाइटोफ्थोरा जीनस की कई प्रजातियों के कारण होता है. यह रोग बैंगन के पौधे के हवाई भाग और फल दोनों पर हमला करता है. संक्रमित फलों पर पानी से लथपथ घाव दिखाई देते हैं, और पत्तियों पर गहरे भूरे से काले धब्बे दिखाई देते हैं जिनके चारों ओर एक ख़ास सफेद घेरा होता है.
एन्थ्रेक्नोज (कोलेटोट्राइकम एसपीपी.)
एन्थ्रेक्नोज एक कवक रोग है जो कोलेटोट्राइकम जीनस की विभिन्न प्रजातियों के कारण होता है. यह मुख्य रूप से फलों को प्रभावित करता है, जिससे गहरे रंग के केंद्र वाले गोलाकार धंसे हुए चिन्ह की तरह आ जाते हैं. इस रोग से फलों के सड़ने का खतरा रहता है.
सर्कोस्पोरा लीफ स्पॉट (सर्कोस्पोरा मेलॉन्गेने)
सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा कवक सर्कोस्पोरा मेलॉन्गेने के कारण होता है. यह पत्तियों को प्रभावित करता है, जिसकी शुरुआत छोटे, पीले धब्बों से होती है जो बाद में बहुत बड़े आकार के भी हो जाते हैं और बैंगनी रंग की सीमा के साथ एक भूरा-सफेद दाग बना लेते हैं. गंभीर संक्रमण से पत्तियां गिर सकती हैं.
रोग प्रबंधन रणनीतियाँ
बैंगन के इन रोगों को बचाने के लिए कई तरह के उपाय किसान हमेशा से करते आ रहे हैं. अगर आप भी इसकी जानकारी चाहते हैं तो नीचे दिए गए प्रबंधन के बारे में ध्यान से पढ़ें.
उन्नत बीजों का प्रयोग
इसके लिए खेती करने से पहले हमें उन्नत किस्म के बीजों का चयन करना चाहिए. यह बीज ख़ास तकनीक से विकसित किए जाते हैं जिससे रोग होने की संभावना बहुत कम हो जाती है. इन बीजों के प्रयोग से किसान को कम खर्चे में ज्यादा मुनाफ़ा होने की संभावना रहती है.
फसल चक्र का विशेष ध्यान
फसल चक्र एक आवश्यक सांस्कृतिक अभ्यास है जो रोग चक्र को तोड़ने में मदद करता है. प्रत्येक मौसम में अलग-अलग खेतों में बैंगन बोने से मिट्टी में पैदा होने वाले रोगाणुओं के जमाव को कम किया जा सकता है. यह अभ्यास प्रभावी रूप से संक्रमण की संभावना को कम करता है, विशेष रूप से फ्यूजेरियम विल्ट और बैक्टीरियल विल्ट जैसी बीमारियों के लिए.
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संक्रमित पौधों की छटाई
बीमारियों के प्रसार को रोकने के लिए क्षेत्र से संक्रमित पौधे के मलबे को हटा देना चाहिए और नष्ट कर देना चाहिए. औजारों और उपकरणों की नियमित रूप से सफाई और कीटाणुरहित करने से भी बीमारी के संचरण को रोकने में मदद मिल सकती है.
बीज उपचार करने से भी मिलेगा लाभ
बुआई से पहले, बीज-जनित रोगाणुओं को खत्म करने के लिए बीजों को गर्म पानी या रसायनों से उपचारित किया जा सकता है. इस उपचार के बाद पौधों में बहुत से रोग हैं जो आसानी से पौधों में पकड़ को बना लेते हैं, पौधे उनसे सुरक्षित रहते हैं.
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जैविक नियंत्रण
कुछ लाभकारी सूक्ष्मजीव बैंगन की बीमारियों के खिलाफ बायोकंट्रोल एजेंट के रूप में कार्य कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, ट्राइकोडर्मा एसपीपी के कुछ उपभेद. फंगल रोगजनकों को नियंत्रित करने में प्रभावकारिता दिखाई है, जबकि कुछ लाभकारी बैक्टीरिया जीवाणु संबंधी विल्ट को दबा सकते हैं. जैव नियंत्रण विधियों को लागू करने से रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम हो सकती है और स्थायी रोग प्रबंधन को बढ़ावा मिल सकता है.
सिंचाई प्रबंधन
रोग प्रबंधन के लिए उचित सिंचाई पद्धतियाँ आवश्यक हैं. अत्यधिक पानी देने से रोग के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बन सकती हैं, विशेषकर पर्ण रोगों के मामले में. ओवरहेड सिंचाई की तुलना में ड्रिप सिंचाई को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि यह पत्तियों को सूखा रखने में मदद करती है, जिससे बीमारी फैलने की संभावना कम हो जाती है.
निष्कर्ष
हम इस जानकारी के माध्यम से बहुत आसानी से बैंगन की फसल को कीटों से सुरक्षित रख सकते हैं. साथ ही अगर आप थोड़ा सा प्रयास करते हैं तो आप बीजों को संरक्षित कर के भी रोगों की संभावना को बहुत कम कर सकते हैं. आज की आधुनिक तकनीकों के प्रयोग से कई तरह के रसायनों के प्रयोग के बाद भी हम फसल को कीटों से सुरक्षित रख सकते हैं. जिसके बाद किसान इस फसल से कई गुणा तक फायदा उठा सकते हैं.