आज बाजार में आप जो रंग बिरंगी चूड़ियां,लहठीयां या अन्य साजो श्रृंगार के सामान टंगे नजर आते हैं जहाँ लड़कियों के साथ-साथ महिलाओं की भीड़ लगी होती है पर क्या आप जानते हैं कि उन चूड़ियों या लहठीयों के निर्माण में ‘लाख’ की सबसे अहम् भूमिका है. आप सभी को शायद ये तो पता तो होगा ही कि इसकी खेती भी होती है. जी हाँ और इसकी पूरे भारत में की जाने वाली खेती की बात करें, तो इसका सबसे बड़ा उत्पादक राज्य झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ है. लाख की खेती कई अन्य राज्यों जैसे महराष्ट्र, आसाम, ओडिशा, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में भी की जाती है.
आपको बता दें कि लाख की दो फसलें होती हैं. जिसमें पहले को कतकी-अगहनी तथा दूसरे को बैसाखी-जेठवीं कहते हैं. लाख की खेती शुरू करने के सबसे पहले पेड़ों की काट-छांट करनी होती है. इसके लिए पेड़ों पर चढ़ना पड़ता है इसलिए यह कार्य ज्यादातर पुरूष वर्ग करते हैं. पर कीट रखने के लिए बिहन लाख के बंडल बनाना, इन्हें नाईलान की जालीदार थैला में भरना, फूंकी लाख को छीलना इत्यादि सभी कार्य महिलाएँ करती है. इसी प्रकार फसल कटाई के बाद लाख लगी डालियों को इकट्ठा करने, अच्छे बीहन लाख को चुनना तथा फिर टहनी से लाख को छुड़ाने का काम भी महिलाओं द्वारा ही किया जाता है और इसके अधिकतर काम महिलाएं ही करती हैं. लाख की खेती इतनी आसान है कि कोई भी महिला चाहें तो खुद ही आसानी से कर सकती है. पर कुछ काम ऐसे भी होते हैं जिनमें महिलाओं को पुरुषों के सहयोग के बिना संभव नहीं है जैसे कि पेड़ों कि टहनियों एवं तनों को कलम बनाना, लाख के तैयार होने के बाद उसे उतरने में तथा लाख के तैयार होने में कीड़ों मकोड़ों एवं अन्य समस्या से बचाव के लिए कीटनाशक दवा का छिड़काव करना क्योँकि इन सभी के लिए पेड़ पर चढ़ने की आवश्यक होती है, पर कई ग्रामीण क्षेत्रों में तो महिलाएं खुद ही पेड़ों पर चढ़ जाती हैं और सारा काम खुद से संभालती हैं. क्योंकि महिलाएं लाख के उतरने से ले कर उसके सूखने और बाजार तक पहुँचाने तक सभी कार्य कुशलतापूर्वक संभाल सकती हैं कई जगहों में स्थानीय बाजार में भी महिलाएं लाख बेचती हुई मिल जाएँगी जिससे उनके लिए भी सक्षमता का अवसर सृजित होने के साथ दैनिक जरूरतों के लिए अपने पतियों पर भी निर्भर नहीं होना पड़ता है.
भारत में इन पेड़ों पर होती है लाख की खेती
कुसुम (Schleichera trijuga), खैर (Acacia catechu), बेर (Ziziphus jujuba), पलाश (Butea frondosa), घोंट (Zizphus xylopyra) के पेड़, अरहर (Cajanus indicus) के पौधे, शीशम (Dalbergia latifolia), पंजमन (Ougeinia dalbergioides), सिसि (Albizzia stipulata), पाकड़ (Ficus infectoria), गूलर (Ficus glomerata), पीपल (Ficus religiosa), बबूल (Acacia arabica), पोर हो और शरीफा इत्यादि
लाख की खेती मुख्य रूप से पेड़ों कि मात्रा पर निर्भर करती है. अगर कम से कम 100 अच्छे पेड़ है तो आप सालाना अच्छी इनकम कर सकते है. हालाँकि, ये मात्रा निर्भर पेड़ों कि गुणवत्ता पर निर्भर करती है कि उनको किस प्रकार तैयार किया गया है. लाख की खेती शुरू करने के पहले प्रशिक्षण लेना काफी महत्वपूर्ण है. इसके लिए आई.सी.ए.आर द्वारा संचालित झारखंड के राजधानी के नजदीक नामकुम में भारतीय लाख अनुसन्धान संस्थान में कई प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम होते रहते हैं. प्रशिक्षण में लाख के उत्पादन से लेकर ग्रामीण स्तर पर लघु उद्योग लगाने तक कि पूरी जानकारी उपलब्ध करवाते हैं. मुख्य रूप से संस्थान द्वारा कई क्षेत्रों के गांवों में महिलाओं को ही प्रशिक्षण दिए जाने के लिए शिविर का आयोजन किया जाता है. इसके साथ साथ ग्रामीण स्तर पर कई रोजगार भी सृजित होते हैं.
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लाख से जुड़े उद्योग
लाख का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता आ रहा है चाहे वो मुहर पर ठप्पा लगाना, चूड़ी ,पोलिश सोने चंडी के आभूषण के खाली जगह भरने में, चौरी बनाना,सीलिंग वैक्स,लकड़ी या मिटटी के बर्तनों पर वार्निश के लिए लेप के रूप में इसका प्रयोग और इन सभी कार्यों में लाख का प्रयोग इसलिए किया जाता है. यह अल्कोहोल में सुगमता से मिल जाता है तथा गर्म करने पर सुगमता से पिघलना, ठंडा होने पर कड़ा हो जाना जैसे कई सहयोगी गुण हैं और ऐसे कामों को ग्रामीण स्तर कि महिलाएं ही कुशलता पूर्वक कर सकती हैं ऐसे लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया गया तो भविष्य में लाख के खपत बढ़ेगी और देश में इसका उत्पादन बढ़ेगा और इसकी कीमतों में भी असर देखने को मिलेगा. हालाँकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि लाख का अभी तक भारत में कई देशों से आयात किया जाता है जिसकी कीमतों को देखते हुए भारत में भी लाख की खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.