हमारे देश के कई राज्यों में लहसुन की खेती सफलतापूर्वक की जाती है. इसकी खेती तापमान, जलवायु, बुवाई, सिंचाई समेत कई अन्य महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाओं पर निर्भर होती है. इसमें लहसुन की उन्नत किस्मों का चयन भी शामिल है. लहसुन की खेती से अधिक उत्पादन के लिए कई उन्नत किस्मों को विकसित किया गया है. किसानों को अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक पैदावार देने वाली किस्मों का चयन करना चाहिए. इस तरह फसल का उत्पादन भी अधिक मिलता है, साथ ही खेती में लागत का खर्च भी कम होता है. इसके लिए किसानों का लहसुन की उन्नत के किस्मों के प्रति जागरूक होना भी ज़रूरी है. आइए इस लेख में किसानों को लहसुन की उन्नत किस्मों की विशेषताओं और उनकी पैदावार की जानकारी देते हैं.
लहसुन की उन्नत किस्मों की विशेषताएं और उनकी पैदावार
एग्रीफाउण्ड पार्वती (जी- 313)
यह किस्म पहाड़ी क्षेत्र के लिए ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है. इसके शल्क कंद का व्यास 5 से 7 सेंटीमीटर का होता है. यह हल्का सफेद और बैंगनी मिश्रित रंग का पाया जाता है. इसके हर शल्ककंद में 10 से 15 कलियां पाई जाती हैं. इनकी कली का व्यास 1.5 से 1.8 सेंटीमीटर का होता है, जिनका वजन 4 से 4.5 ग्राम तक होता है. यह किस्म 250 से 270 दिनों में फसल तैयार कर देती है, जिससे प्रति हेक्टयर 175 से 225 क्विंटल पैदावार मिलती है.
टी- 56-4
लहसुन की इस उन्नत किस्म को काफी उपयुक्त माना जाता है. इसके शल्क कंद छोटे आकार के होते हैं और इनका रंग सफेद होता है. इसके हर शल्क कंद में 25 से 35 कलियां होती हैं. यह प्रति हेक्टयर 80 से 100 क्विंटल पैदावार प्राप्त होती है.
गोदावरी (सेलेक्सन- 2)
इस उन्नत किस्म के शल्ककंद मध्यम आकार के होते हैं. इनका व्यास 4.35 सेंटीमीटर तक होता है. यह हल्के गुलाबी और सफेद रंग के दिखाई देते हैं. हर शल्क कंद में 20 से 25 कलियां पाई जाती हैं. यह बुवाई के लगभग 140 से 145 दिन बाद फसल तैयार कर देती हैं. इससे प्रति हेक्टर 100 से 105 क्विंटल पैदावार मिल जाती है.
एग्रीफाउण्ड व्हाइट (जी- 41)
इस किस्म की शल्क कंद ठोस और त्वचा चांदी की तरह सफेद होती है. इसका गुदा क्रीम रंग का पाया जाता है, तो वहीं कलियां बड़ी पाई जाती हैं. खास बात है कि इस किस्म में बैंगनी धब्बा रोग और स्टेम फाइलियम झुलसा रोग के प्रति लड़ने की क्षमता होती है. यह लगभग 150 से 190 दिन में फसल तैयार कर देती है. इससे प्रति हेक्टयर 130 से 140 क्विंटल पैदावार प्राप्त की जा सकती है. इस किस्म की बुवाई देशभर के किसान सफलतापूर्वक करते हैं.
यमुना सफेद (जी- 1)
इस किस्म को भी देशभर में उगाया जाता है. हर शल्क कंद ठोस होते हैं, साथ ही इनकी बाहरी त्वचा सफेद होती है. इनका गूदा भी क्रीम रंग का होता है. इनका व्यास 4 से 4.5 सेंटीमीटर का होता है. हर शल्क कंद में 25 से 30 कलियां पाई जाती हैं. इनका व्यास 0.8 से 1.0 सेंटीमीटर का होता है. बता दें कि इसके भण्डारण की क्षमता काफी अच्छी मानी जाती है. यह किस्म 150 से 190 दिन में फसल तैयार कर देती है, जिससे प्रति हेक्टयर 150 से 175 क्विंटल पैदावार मिल जाती है.
भीमा पर्पल
लहसुन की यह उन्नत किस्म से लगभग 120 से 125 दिन में फसल तैयार कर देती है. इसके कंद बैंगनी रंग के दिखाई देते हैं. इससे प्रति हेक्टेयर 60 से 65 क्विंटल तक पैदावार मिल जाती है. इसको दिल्ली, यूपी, पंजाब, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक समेत आंध्रप्रदेश के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त माना जाता है.
भीमा ओंकार
इस किस्म के कंद मध्यम आकार के पाए जाते हैं, जो कि काफी ठोस और सफेद रंग के होते हैं. इससे लगभग 120 से 135 दिन में फसल तैयार हो जाती है. यह प्रति हेक्टेयर 80 से 135 क्विंटल तक पैदावार दे देती है. इस किस्म में थ्रिप्स कीट को सहन करने की क्षमता होती है. यह अधिकतर गुजरात, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली के किसानों के लिए उपयुक्त मानी जाती है.