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Updated on: 4 December, 2022 10:56 AM IST
चाय की इस तरह से खेती देगी दोगुना मुनाफा, जानिए उचित तकनीक

भारत दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा चाय उत्पादन वाला देश है. चाय का इस्तेमाल पेय पदार्थ के रुप में किया जाता है. चाय के अंदर कैफीन की मात्रा सबसे ज्यादा होती है. चाय को इसके पौधों की पत्तियों और कलियों के माध्यम से तैयार किया जाता है. भारत के कई राज्यों में चाय की खेती होती है लेकिन चाय के सबसे सुंदर बागान असम में पाए जाते हैं. चाय सबसे ज्यादा पिए जाने वाले पेय पदार्थों में से एक हैइसलिए बाजार में इसकी खूब डिमांड रहती है. ऐसे में चाय की खेती करना अच्छा विकल्प साबित हो सकता है. आईए जानते हैं चाय की खेती के बारे में.

उपयुक्त मिट्टी

चाय की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि अच्छी होती है. जलभराव ज्यादा होने पर पौधे खराब हो जाते हैं. भूमि का हल्का अम्लीय होना जरुरी है. इसके लिए भूमि का पीएच मान 5.4 से के बीच होना चाहिए. मिट्टी में फास्फोरसअमोनिया सल्फेटपोटाश व गंधक की मात्रा अच्छी होनी चाहिए.

जलवायु

चाय की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु होना जरुरी है. गर्म मौसम के साथ बारिश होना जरुरी है. इसके पौधे शुष्क और आद्र मौसम में अच्छे से विकास करते हैंइसकी खेती छायादार जगह में होती है. ज्यादा तेज धूप से पौधों को नुकसान पहुंचता है. पौधों के विकास के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान की जरुरत होती है. हालांकि पौधे अधिकतम 35 और न्यूनतम 15 डिग्री तापमान को सहन कर सकते हैं.

चाय की किस्में

चाय की कई किस्में हैंजिसमें चीनी जातअसमी जात (इसे दुनियाभर में सबसे अच्छा किस्म माना जाता है)कांगड़ा चाय (इसका उत्पादन हिमाचल प्रदेश में होता हैजिसका इस्तेमान ग्रीन टी पाउडर बनाने में होता है)व्हाइट पिओनीसिल्वर निडल व्हाइट आदि शामिल हैं.

चाय के प्रकार- 

चाय मुख्यता तीन प्रकार की होती हैहरीसफेदकाली. काली चाय दानेदार रूप में होती जिससे कई तरह की चाय बनाई जा सकती है. सफ़ेद चाय का स्वाद मीठा होता है. हरी चायजिसे कच्ची पत्तियों से तैयार किया जाता है. इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट की मात्रा अच्छी पाई जाती है.

खेत की तैयारी

चाय के पौधों को ढाल वाली भूमि में उगाया जाता हैइसलिए भारत में ज्यादातार पर्वतीय भागों में इसकी खेती की जाती है. ढाल वाली भूमि में इसके पौधों की रोपाई के लिए गड्डे तैयार किये जाते हैं. इन गड्ढों के बीच की दूरी तीन फिट तक रखनी चाहिए. गड्ढों में जैविक और रासायनिक खाद को डालें. 

पौध तैयारी

चाय के पौधों को बीज या कलम से तैयार किया जाता है. इसके बीजों को उपचारित कर नर्सरी में उचित मात्रा में जैविक और रासायनिक खाद डालकर तैयार की गई मिट्टी में से सेंटीमीटर की दूरी पर रखते हुए लगाया जाता है. कलम के माध्यम से पौधे तैयार करने के लिए कटिंग की लंबाई 15 सेंटीमीटर के आसपास होनी चाहिए. जिसे गर्म पानी में डालकर उबाल लें और फिर उसे सुखाकर पॉलीथीन में मिट्टी डालकर उसमें लगा दें. या फिर इसकी कटिंग को रूटीन हार्मोन में डुबोकर नमी युक्त जमीन में गाड़ दें. 

बुवाई का सही समय

पौधों को लगाने का सबसे सही समय अक्टूबर और नवंबर माह होता है. 

पौधों की सिंचाई

इसकी खेती पर्याप्त बारिश वाली जगह होती है तो अधिकांश सिंचाई बारिश के माध्यम से ही होती है. बारिश कम होने पर इसके पौधों की सिंचाई फव्वारा विधि से करनी चाहिए. इसके पौधों की सिंचाई अधिक तापमान होने पर और बारिश ना होने पर रोज़ हल्की- हल्की करनी चाहिए.

उर्वरक की मात्रा

गड्डों को तैयार करते समय उनमें 15 किलो के आसपास पुरानी गोबर की खाद और रासायनिक उर्वरक के रुप में प्रति हेक्टेयर 90 से 120 किलो नाइट्रोजन, 90 किलो सिंगल सुपर फास्फेट, 90 किलो पोटाश  डाला जाता है. उर्वरक की ये मात्रा साल में तीन बार पौधों की कटिंग के बाद देनी चाहिए. इसके अलावा खेत में सल्फर की कमी होने पर खेत मे जिप्सम का छिड़काव शुरुआत में ही कर देना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

इसके लिए पौधों की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद गुड़ाई करें. इसके बाद बीच-बीच में साल में तीन से चार बार गुड़ाई करें.

चाय की खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से निराई-गुड़ाई के माध्यम से की जाती है. इसके लिए इसके पौधों की रोपाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद पहली गुड़ाई कर दें. इसके पौधों को शुरुआती साल में खरपतवार नियंत्रण की जरूरत ज्यादा होती है. लेकिन जब इसका पौधा पूर्ण रूप धारण कर लेता हैंतब इसके पौधे की साल में तीन से चार गुड़ाई काफी होती हैं.

पौधों की देखभाल

चाय के पौधों की लंबाई काफी ज्यादा बढ़ सकती हैइसके लिए बीच-बीच में पौधों की कटिंग करते रहना चाहिए.

पत्तियों की तुड़ाई

चाय के पौधे खेत में रोपाई के लगभग एक साल बाद ही तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसकी पत्तियों की तुड़ाई साल में तीन बार की जाती है. पहली बार पत्तियों की तुड़ाई मार्च में होती है. सर्दियों के मौसम में पौधे विकास करना बंद कर देते हैं इसलिए अक्टूबर-नवम्बर में उनकी तीसरी तुड़ाई के बाद इसके पौधे अप्रैल माह में फिर से तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

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रोग-रोकथाम

चाय के पौधों में लाल कीट और शैवालफफोला अंगमारीकाला विगलन कीट रोग सबसे ज्यादा होते हैं. इसके अलावा भूरी अंगमारीगुलाबी रोगशीर्षरम्भी क्षयकाला मूल विगलनअंखुवा चित्तीचारकोल विगलनमूल विगलन और भूरा मूल विगलन रोग भी देखने को मिलते हैं. इसके लिए कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेकर रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव करें.

पैदावार

इसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर 600 से 800 किलो तक होती है. चाय की एक हेक्टेयर भूमि से डेढ़ से दो लाख तक की कमाई आसानी से कर लेते हैं. इसकी फसल में एक बार पौध लगाने के बाद पौधों की देखरेख में सामान्य खर्च आता है. लेकिन पैदावार हर बार बढ़ने से कमाई में भी इज़ाफा देखने को मिलता है.

English Summary: know the proper technique of tea farming
Published on: 04 December 2022, 11:06 AM IST

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