देश में सबसे महत्वपूर्ण फसल गेहूं को माना जाता है. भारत में इसकी खेती लगभग सभी राज्यों में होती है. किसान गेहूं की फसल से अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमा सके. इसके लिए देश के सर्वाधिक वैज्ञानिक शोध करते रहते हैं, ताकि किसान इसकी उत्पादकता और गुणवत्ता, दोनों बढ़ा सकें. गेहूं का अच्छा उत्पादन उन्नत किस्मों पर निर्भर होता है.
देश के कई भारतीय वैज्ञानिकों विभिन्न क्षेत्रों के लिए कई प्रकार की गेहूं की किस्में विकसित करते रहते हैं. इसी कड़ी में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्तशासी संस्थान, पुणे के अगहरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट (एआरआई) के वैज्ञानिकों ने गेहूं की एक उन्नत किस्म विकसित की है. इस किस्म को बायो फोर्टीफाइड किस्म एमएसीएस 4028 (Biofortified variety MACS 4028) का नाम दिया गया है. बताया जा रहा है कि इस किस्म में उच्च प्रोटीन है.
गेहूं की किस्म एमएसीएस 4028 की विशेषताएं
इंडियन जर्नल ऑफ जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग (Indian Journal of Genetics and Plant Breeding) में इस किस्म को विकसित करने की जानकारी दी गई है. यह एक अर्ध-बौनी (सेमी ड्वार्फ) किस्म है.
बताया जा रहा है कि गेहूं की यह किस्म लगभग 102 दिनों में तैयार हो जाएगी. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 19.3 क्विंटल की पैदावार मिल सकती है. ख़ास बात है कि इस किस्म में कीटों से बी लड़ने की क्षमता अधिक होगी. बता दें कि यह फसल के डंठल, फंगस, कीड़ों, ब्राउन गेहूं के घुन की प्रतिरोधी होगी. इस किस्म को एआरआई वैज्ञानिकों के समूह द्वारा विकसित किया गया है. इस किस्म में लगभग 14.7% उच्च प्रोटीन, जिंक 40.3 समेत उच्च पोषण गुणवत्ता होगी.
आपको बता दें कि देश में गेहूं की फसल कई मौसमों में उगाई जाती है. महाराष्ट्र और कर्नाटक में गेहूं की खेती प्रमुख रूप से बारिश और सीमित सिंचाई परिस्थितियों में होती है. यही कारण है कि गेहूं की फसल को नमी की मार झेलनी पड़ती है.
इन राज्यों में सूखा-झेलने वाली किस्मों की मांग ज्यादातर होती है, इसलिए अखिल भारतीय समन्वित गेहूं और जौ सुधार कार्यक्रम के तहत अगहरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणे में इस किस्म को विकसित किया गया है. इस किस्म को बारिश में भी अधिक पैदावार देने के लिए विकसित किया है. एक बार फिर बता दें कि यह किस्म फसल को जल्द तैयार कर देगी. इसके साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी रखेगी.