इन दिनों खरीफ फसलों की कटाई अंतिम चरण पर चल रही है. वहीं, अब किसानों के खेतों में सिर्फ अरहर की फसल ही खेतों में खड़ी है. इस बीच कई किसानों की फसलें कीटों से ग्रसित हो गई है, जिससे फसलों को भारी नुकसान पहुंच रही है. ऐसे में अब किसानों को कीटों से अरहर की सुरक्षा करना जरूरी हो गया है. इसके लिए समय पर सही कदम उठाना जरूरी है.
ऐसा कहा जा रहा है कि अगर अरहर पर होने वाले कीट और रोगों के लिए सही योजना नहीं बनाई गई, तो फसल के उत्पादन में 70 प्रतिशत तक कमी आ जाएगी. बता दें कि इस फसल की कटाई दिसंबर के आखिरी सप्ताह से जनवरी के पहले सप्ताह तक हो जाती है. इस समय जलवायु परिवर्तन के कारण कीट और फलियां संक्रमित लार्वा जैसे रोगों में वृद्धि हुई है.
हालांकि, फसल में कीट प्रबंधन का ही एकमात्र विकल्प है. किसानों को इसे लागू करने की जरूरत है. दरअसल, कृषि विभाग द्वारा एक प्रणाली तैयार की गई है. इसके अनुसार किसान अरहर की फसल में होने वाले कीटों के प्रकोप को कम कर सकते हैं.
एकीकृत कीट प्रबंधन को अपनाएं
अगर किसानों को कीटों का प्रकोप रोकना है, तो रासायनिक कीटनाशकों के सीधे छिड़काव के बिना एकीकृत कीट प्रबंधन अपनाना होगा. बता दें कि इसमें क्राइसोपा, परभक्षी मकड़ी, धालकिडा जैसे मित्र कीटों की अच्छी संख्या होती है.
यह कीट परभक्षी होते हैं, साथ ही फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करते हैं. यह तरीका कम खर्चीला है, जिसका साभ किसानों को उठाना चाहिए.
कृषि वैज्ञानिकों की सलाह
कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को सलाह दी गई है कि संक्रमित पत्तियों को लार्वा के साथ एकत्र करके नष्ट करना कर देना चाहिए. इसके साथ ही समय-समय पर खरपतवारों को हटाना चाहिए. जब फसल फूलने की अवस्था में हो, तो 2 कामगंध जाल प्रति एकड़ फसल पर एक फुट की ऊंचाई पर लगाना चाहिए.
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इसके अलावा खेत में पक्षियों की फसल के लिए 50 से 60 स्थान प्रति हेक्टेयर एक से दो फीट की ऊंचाई पर बर्ड स्टॉप स्थापित करना चाहिए. इससे पक्षियों को लार्वा पर फ़ीड करने की अनुमति मिलती है.
जैसे ही फूल आते हैं, वैसे ही 5 प्रतिशत नीम के अर्क या अजादिराच्टिन 300 पीपीएम को 50 मिली प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़क दें. इसका छिड़काव शाम के समय करना चाहिए, जब फलियां लार्वा पहले चरण में हों.