पुराने समय से लौंग का उपयोग होता आ रहा है. भारतीय मसालों में इसको बहुत प्रमुखता दी जाती है, तो वहीं पूजा और खाने में भी विशेष स्थान दिया जाता है. इसमें कई औषधीय तत्व पाए जाते हैं. यह एक सदाबहार पेड़ है, इसलिए इसका पौधा एक बार लगाने के बाद कई सालों तक चल जाता है.
अगर किसान लौंग की खेती (Clove cultivation) करना चाहते हैं, तो मानसून का समय उपयुक्त रहेगा. बता दें कि इसकी खेती तटीय रेतीले इलाकों में न होकर देश के लगभग सभी हिस्सों में होती है, तो वहीं इसकी खेती केरल की लाल मिटटी और पश्चिमी घाट के पर्वत वाले इलाके में सफलतापूर्वक हो सकती है. आइए आपको इस लेख में लौंग की खेती संबंधी कुछ ज़रूरी जानकारी देते हैं.
लौंग की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for clove cultivation)
इसकी खेती उष्णकटिबंधीय जलवायु में होती है. इसके पौधों को बारिश की जरूरत होती है, साथ ही तेज़ धूप और सर्दी को सहन नहीं कर पाते हैं. इसके अलावा सामान्य तापमान में पौधों का विकास अच्छे से होता है.
लौंग की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी (Suitable soil for clove cultivation)
इसकी खेती नम कटिबंधीय क्षेत्रों की बलुई मिट्टी में हो सकती है. इसके पौधों को लिए जलभराव वाली मिट्टी में नहीं उगा सकते हैं.
लौंग के बीज (Clove seeds)
इसके बीज को तैयार करने के लिए माता पेड़ से पके हुए कुछ फलों को एकत्र किया जाता है. इसके बाद उनको निकालकर रखा जाता है. जब बीजों की बुवाई करनी होती है, तो इसको रात भर भिगोकर रखा जाता है. इसके बाद बीज फली को बुवाई करने से पहले हटा दिया जाता है.
लौंग की खेती के लिए नर्सरी की तैयारी (Nursery preparation for clove cultivation)
इसकी नर्सरी में जैविक खाद का मिश्रण तैयार किया जाता है. इसके लिए मिट्टी में लगभग 10 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियां में बना लें. इसके बीजों से पौध तैयार होने में लगभग 2 साल का समय लगता हैं.
लौंग की खेती के लिए पौध रोपण का तरीका (Planting method for clove cultivation)
इसकी पौध का रोपण मानसून के समय करना चाहिए. रोपने के लिए 75 सेंटीमीटर लंबा, 75 सेंटीमीटर चौड़ा और 75 सेंटीमीटर गहरा एक गड्डा खोद लें. इन की दूरी लगभग 6 से 7 सेंटीमीटर की होनी चाहिए. अब इन गड्डों को खाद, हरी पत्तियां और पशु खाद से भर दें. इसके बाद खादों को मिटटी की एक परत से ढक दें.
लौंग की खेती के लिए सिंचाई (Irrigation for Clove Cultivation)
इसकी खेती में लगभग 3 से 4 साल में सिंचाई की जरूरत होती है. अगर गर्मियों का मौसम है, तो फसल में लगातार सिंचाई करते रहे, ताकि भूमि में नमी बनी रहे.
लौंग के फलों की तुड़ाई (Clove fruit plucking)
इसके पौधे लगभग 4 से 5 साल में फल देना शुरू करते हैं. बता दें कि इसके फल पौधे पर गुच्छों में लगते हैं, जिनका रंग लाल गुलाबी होता है. इन फूलों को खिलने से पहले ही तोड़ लिया जाता है. फल की लम्बाई अधिकतम 2 सेंटीमीटर होती है. जिसको सुखाने के बाद लौंग का रूप दिया जाता है.
लौंग की खेती के लिए प्रबंधन (Management for Clove Cultivation)
लौंग के फूल कलियों को हाथ से अलग किया जाता हैं. इसके बाद सूखने के लिए फैला दिया जाता है. जब कली के भाग काले भूरे रंग का हो जाए, तो उन्हें एकत्र कर लिया जाता है. इसके बाद लौंग का वजन कम हो जाता है.
लौंग के बीज (Clove seeds)
इसके बीज को तैयार करने के लिए माता पेड़ से पके हुए कुछ फलों को एकत्र किया जाता है. इसके बाद उनको निकालकर रखा जाता है. जब बीजों की बुवाई करनी होती है, तो इसको रात भर भिगोकर रखा जाता है. इसके बाद बीज फली को बुवाई करने से पहले हटा दिया जाता है.
लौंग की खेती के लिए नर्सरी की तैयारी (Nursery preparation for clove cultivation)
इसकी नर्सरी में जैविक खाद का मिश्रण तैयार किया जाता है. इसके लिए मिट्टी में लगभग 10 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियां में बना लें. इसके बीजों से पौध तैयार होने में लगभग 2 साल का समय लगता हैं.
लौंग की खेती के लिए पौध रोपण का तरीका (Planting method for clove cultivation)
इसकी पौध का रोपण मानसून के समय करना चाहिए. रोपने के लिए 75 सेंटीमीटर लंबा, 75 सेंटीमीटर चौड़ा और 75 सेंटीमीटर गहरा एक गड्डा खोद लें. इन की दूरी लगभग 6 से 7 सेंटीमीटर की होनी चाहिए. अब इन गड्डों को खाद, हरी पत्तियां और पशु खाद से भर दें. इसके बाद खादों को मिटटी की एक परत से ढक दें.
लौंग की खेती के लिए सिंचाई (Irrigation for Clove Cultivation)
इसकी खेती में लगभग 3 से 4 साल में सिंचाई की जरूरत होती है. अगर गर्मियों का मौसम है, तो फसल में लगातार सिंचाई करते रहे, ताकि भूमि में नमी बनी रहे.