देश में गेहूं की कई उन्नत किस्मों की खेती के माध्यम से किसान बेहतर लाभ कमा रहे हैं. वहीं आज हम आपको गेहूं की HI 1634 (पूसा अहिल्या) किस्म के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं जिससे किसान प्रति हेक्टेयर लगभग 70 क्विटल तक उपज प्राप्त कर सकते हैं. इस किस्मों को भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान इंदौर द्वारा विकसित किया गया है. इसके साथ ही एक संस्थान ने गेहूं की एक और उन्नत किस्म पूसा वानी (HI 1633) को भी ईजाद किया था. HI 1634 (पूसा अहिल्या) बुआई के 60 से 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.
इस किस्म की सबसे ख़ास बात यह है कि इसके लिए किसानों को अलग से ज्यादा कीटनाशकों की छिड़काव करने की जरूरत नहीं पड़ती है, क्योंकि इसे पत्ती अंगमारी, कमल बंट, फ्यूजेरियम हेड ब्लाइट, फ्लैग स्मट, फुट रॉट और लूज स्मट जैसे रोगों के लिए प्रतिरोधक क्षमता के विकास के साथ विकसित किया गया है. तो चलिए इस किस्म के बारे में और भी विस्तार से जानते हैं-
पैदावार का क्षेत्र
गेहूं की यह किस्म मुख्य रूप से मध्य क्षेत्र मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान (कोटा और उदयपुर संभाग) और उत्तर प्रदेश (झांसी संभाग) के लिए लिए विकसित की गई है. हालांकि, अन्य प्रदेशों में भी इस किस्म की पैदावार होती है, लेकिन प्रमुख प्रदेश यही हैं. इन प्रदेशों में यह किस्म औसत से ज्यादा पैदावार देने में सक्षम है.
HI 1634 (पूसा अहिल्या) की विशेषताएं
- औसत उपज: 51.6 क्विंटल/हे
- अधिकतम उपज: 70.6 क्विंटल/हेक्टेयर
- पौधे की ऊंचाई: 80-85 सेमी
- पौधों में फूल: 60-65 दिन
स्वाद में सबसे पसंदीदा है यह किस्म
किसानों के द्वारा इसकी खेती जहां एक ओर ज्यादा उत्पादन पाने के लिए की जाती है, वहीं इसके स्वाद के लिए भी यह अपनी एक विशिष्ट पहचान को बनाये हुए है. इसके आटे से बनी हुई अच्छी चपाती और बिस्किट विशेष स्वाद के लिए जाने जाते हैं.
प्रतिरोधक क्षमता किसानों को देती है मुनाफा
इस किस्म को कई रोगों से सुरक्षित रखने के साथ विकसित किया गया है जिस कारण गेहूं की इस किस्म में आमतौर पर लगने वाले रोग पत्ती अंगमारी, कमल बंट, फ्यूजेरियम हेड ब्लाइट, फ्लैग स्मट, फुट रॉट और लूज स्मट नहीं लगते हैं. इससे किसानों को बहुत से कीटनाशकों के प्रयोग से राहत मिलती है.
साथ ही पैसे और मेहनत से भी निजात मिल जाती है. यही कारण है कि HI 1634 (पूसा अहिल्या) किसानों के लिए गेहूं की पैदावार से सम्बंधित एक अच्छा सौदा है.