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Updated on: 4 November, 2021 8:05 AM IST
Lufa Cultivation

आज हम अपने इस लेख में आपको एक ऐसी फसल की खेती की जानकारी देने जा रहे हैं, जिसकी खेती कर किसान भाई अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. वैसे तो किसान भाई सभी तरह के सब्जियों की खेती करते हैं जैसे करेला, आलू, टमाटर आदि, लेकिन आज हम आपको बतायेंगे तोरई की पारंपरिक खेती (Traditional cultivation of Luffa) के बारे में.

दरअसल, तोरई एक प्रकार की बेलदार सब्जी है, जिसकी पौध बेल के आकार में उगाई जाती है. इसके अलावा, तोरई एक प्रकार की हरी सब्जी है जिसमें कई तरह के पोषक तत्त्व पाए जाते हैं जैसे- आयरन, कैल्शियम,विटामिन ए(कैरोटिन), विटामिन "सी" और "बी" काम्प्लेक्स समूह के विटामिन (खासकर रिबोफ्लेबिन और फोलिक एसिड पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए बहुत लाभदायक होते हैं. इसके इन्ही पोषक तत्त्व की वजह से तोरई की सब्जी का अधिक मात्रा में सेवन किया जाता है. इसके इन्ही गुणों की वजह से तोरई की खेती (luffa cultivation) किसानों के लिए अधिक लाभदायी साबित हो सकती है. आइये जानते हैं तरोई की खेती से जुड़ी अधिक जानकारी.

तोरई की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी (Soil Suitable For Cultivation Of Luffa)

तोरई की खेती की मिटटी की बात करें, तो इसकी खेती के लिए मिटटी में अच्छी जल निकासी (good soil drainage ) होनी चाहिए, इसके साथ ही तोरई की खेती के लिए मिटटी का पीएच 6 – 7 के बीच का मान उचित माना जाता है. तोरई की खेती हर प्रकार की मिटटी में की जा सकती है.

तोरई की खेती के लिए उपयुक्त तापमान और जलवायु (Suitable temperature and climate for Luffa cultivation)

तोरई की खेती के लिए गर्म तथा आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है. इसकी खेती के लिए 32 से 38 डिग्री सेन्टीग्रेट के बीच का तापमान अच्छा माना जाता है.

तोरई की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizer for Luffa Cultivation)

तरोई की अच्छी उपज के लिए किसान भाई सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग कर सकते हैं. यह तोरई की फसल की अच्छी उपज के लिए फायदेमंद होगी.

तोरई की खेती के लिए बीज की बुवाई का तरीका (Method Of Sowing Seeds For Luffa Cultivation)

तोरई की खेती के लिए सबसे पहले खेत में 2.5 से 3.0 मीटर की दूरी पर 45 सेंटीमीटर चौड़ी तथा 30 से 40 सेंटीमीटर गहरी नालियाँ बना लें. इसके बाद इन नालियों के दोनों किनारों यानि कि मेड़ों पर 50 से 60 सेंटीमीटर की दूरी से बीज की बुवाई करें. ध्यान दें इसकी बुवाई की प्रक्रिया में एक जगह पर कम से कम दो बीज लगाना होगा.

तोरई की खेती में सिंचाई प्रक्रिया (Irrigation Process In Luffa Cultivation)

तोरई की खेती में यदि सिंचाई की विधि की बात करते हैं, तो इसमें ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. गर्मियों के मौसम में मिटटी में अधिक पानी की कमी होने की सम्भावना होती है, इसलिए गर्मियों के मौसम में 5-6 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए.

तोरई की फसलों में लगने वाले रोग एवं उनसे बचाव (Diseases Of Luffa Crops And Their Prevention)

आपको बता दें तोरई की फसले में ज्यादातर केवड़ा और भूरी जैसे रोग होते हैं. जिसकी वजह से तोरई की फसल बहुत प्रभावित होती हैं. यदि आपकी तोरई की फसल में इस प्रकार के रोग पाए जाते हैं, तो आप इसको नियंत्रण करने के लिए डिनोकैप-1 मिली. 1 लीटर पानी का छिड़काव करें और केवड़ा के नियंत्रण के लिए डायथीन जेड 78 हेक्टेयर में 10 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी का छिड़काव करें.

तोरई की उन्नत किस्में (Improved Varieties Of Luffa)

तोरई की उन्नत किस्मों की बात करें तो इसकी उन्नत किस्मों के नाम पूसा नसदर (Pusa Nasdar) और को -1(Co -1) है. इनकी खासियत यह है की कम समय में जल्द पकने वाली फसल होती है एवं इन किस्मों से अच्छा पैदावार भी प्राप्त होता है.  

English Summary: Improved varieties of Luffa are very beneficial for farmers, know the method of its cultivation
Published on: 03 November 2021, 05:10 PM IST

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