बरूथी बहुत ही छोटे आकार वाला जीव है, जो कई पौधों तथा प्राणियों पर परजीवियों के रूप में भी रहती है. इस कीट का प्रकोप मानसून पूर्व गर्म मौसम में देखा जाता है. माईट/बरूथी या छोटी मकड़ी का आक्रमण पत्तियों की निचली सतह पर होता है, जहां यह शिराओं के पास अण्डे देती है. वयस्क पत्तियों का रस चूसती है तथा अपने चारों ओर रेशमी, चमकीला जाल तैयार कर लेती है. यह अपने मुखांग से पत्तियों की कोशिकाओं में छिद्र करती है. इसके फलस्वरूप जो द्रव्य निकलता है, उसे माइट चूसती है. क्षतिग्रस्त पत्तियाँ पीली पड़कर टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती है. कीट प्रकोप की तीव्र अवस्था में, चितकबरी होकर चमकीली पीली हो जाती है.
बरूथी या छोटी मकड़ी का अधिक होने का कारण (Cause excess of Mite or small pider)
1. कीटनाशकों का अंधाधुंध उपयोग करने से बरूथी के प्राकृतिक शत्रुओं का नाश हो जाता है, जिसके कारण बरूथीं की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि होती है और बरूथी (माइट) में उस कीटनाशक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है.
2. अधिक उपज देने वाली किस्मों का प्रयोग, नत्रजन उर्वरक का आवशयकता से अधिक उपयोग तथा सिंचाई जल का कुप्रबंधन, कुछ ऐसे कारण हैं, जिनके कारण बरूथी की संख्या में वृद्धि होती है.
ज्वार की माईट (Sorghum mite)
इसकी माईट हल्के हरे रंग की होती है, जो कि पत्ती की निचली सतह पर अधिक संख्या में पायी जाती है. इसकी मादा तथा निम्फ रस चूसते हैं. जिससे पत्तियों पर लाल रंग के धब्बे बन जाते है, जो बाद में एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं. माईट का बहुत अधिक प्रकोप होने पर तना व पत्तियां सूख जाती है, जिससे फसल में भारी नुकसान होता है. यह माईट हवा व पत्तियों के आपस में मिलने से एक जगह से दूसरी जगह फैलती है.
धान की माईट (Paddy mite)
यह माईट नर्सरी व ट्रांसप्लांट धान के पत्तियों की निचली सतह पर पायी जाती है. यह पत्तियों का रस चूसती है, जिससे कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है. जिससे पत्तियों पर धब्बे बन जाते हैं और वे मुडी हुई दिखाई देती है.
गन्ने की माईट (Sugarcane mite)
यह माईट गन्ने की पत्तियों की निचली सतह पर पायी जाती है तथा रस चूसती है, जिससे पत्तियों का रंग पीला पड जाता है. जब तापमान में वृद्धि हो एवं आर्द्रता में कमी हो, तब माईट की संख्या बढ़ती है.
नीम्बू वर्गीय पौधों की माईट (Lime mite)
पत्तियों पर छोटी स्लेटी या चांदी रंग के कण दिखाई देते हैं. जिन उत्तकों पर आक्रमण होता है, वो आमतौर पर चांदी या कांस्य का रंग धारण कर लेते हैं. कभी-कभी फल व टहनियाँ भी प्रभावित हो सकती है. संक्रमण के उच्च स्तर पर ये कण धब्बों में बदल जाते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण का क्षेत्र कम हो जाता है. पत्तियों का समय से पूर्व गिरना, फल की गुणवत्ता में कमी आ सकती है.
आम की माईट (Mango mite)
इसकी भोजन करने की प्रक्रिया मुख्य रूप से निचले भाग और मध्यशीरा तक सीमित रहती है. बाद में यह दूसरी शीराओं पर भी भोजन करने लगती है. शीराओं के किनारे के क्षेत्र लाल-भूरे रंग के हो जाते हैं. आम की पत्तियों पर भोजन करने से पत्तियाँ मुरझा जाती है, लाल हो जाती है तथा अंत में गिर जाती है, जिससे पैदावार कम हो जाती है.
जामुन की माइट (Blackberry/ Jamun mite)
यह छः पैरो वाला छोटा जीव पत्तियों से रस चूसकर उसे मोड देता है और जाल से पत्तियों को ढक देता है जिससे पेड़ों द्वारा प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर विपरीत असर होता है और पेड़ भोजन नहीं बना पता. जाल से फल आपस में मिलकर खराब हो जाते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए एकत्रित की हुई पत्तियों को फल लगने से पहले ही तोड़कर जला देना चाहिए.
लीची माइट (Litchi Mite)
यह छोटी मकड़ी होती है जो कोमल पत्तियों की निचली सतह, टहनियों तथा पुष्पवृन्तों से चिपक कर लगातार रस चूसते रहते हैं, जिससे पत्तियाँ मोटी और मुड़ जाती है. इससे पौधे कमजोर हो जाते हैं.
मिर्च की माईट (Chili mite)
मिर्च के फसल का सबसे घातक तथा ज्यादा नुकसान करने वाला रोग पत्ती मोड़क (Leaf curl) है. यह रोग न होकर थ्रिप्स व माईट के प्रकोप के कारण होता है. थ्रिप्स के प्रकोप के कारण मिर्च की पतियां ऊपर की ओर मुड़कर नाव का आकार धारण कर लेती है और माईट के प्रकोप से भी पत्तियां नीचे की ओर मुड़ती है. मिर्च में लगने वाली माईट बहुत ही छोटी होती है. जिन्हें साधारणतः आंखों से देखना सम्भव नहीं हो पाता है. इसके प्रकोप से फसल के उत्पादन में बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है.
मूँगफली की माईट (Mite of Groundnut)
मूँगफली में वर्षा तथा गर्मी के मौसम में कभी-कभी स्पाईडर माईट का प्रकोप देखा जाता है. ये माईट पत्तियों की निचली सतह पर जाला बना करके समूह में रहती है तथा पत्तियों से लगातार रस चूसती रहती है, इसके कारण पत्तियों की ऊपरी सतह पर असंख्य सफेद रंग के धब्बे बन जाते तथा दूर से पौधे सफेद रंग के दिखाई देते हैं.
कपास की माईट (Cotton mite)
यह माईट शुरुआत में हल्के पीले रंग की होती है जो धीरे-धीरे गोल तथा गहरे लाल रंग की हो जाती है. यह पत्तियों के नीचे वाले भाग पर रहती है और रस चूसती है, जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती है. जब इसका प्रकोप बहुत अधिक संख्या में होता है तब पत्तियों की निचली सतह पर जाले ही जाले बने दिखाई देते हैं तथा उनमें असंख्य माईट चलती दिखती है.
माईट का समन्वित प्रबन्धन (Integrated management of mite)
1. खेतों के चारों तरफ सफाई रखें एवं फसल के अवशेषों को एकत्रित करके जला दें और साथ ही फसल चक्र जरूर अपनाए.
2. माईट प्रतिरोधक फसल किस्मों का उपयोग करना जरूरी है. मिर्च की ज्वाला तथा पंत सी-1, आम की वर्षा बादामी, सरदार तथा जामदार एवं कपास की दिग्विजय, गुजरात कपास-2 तथा वारालक्ष्मी की बुवाई करें जिसमें माइट का प्रकोप कम देखा गया है.
3. इन छोटी छोटी मकड़ियों से ग्रसित पौधे को उखाड़ कर अलग कर दे ताकि कीट पूरी फसल में न फैले.
4. इसका नियंत्रण माईटीसाइड या एकेरीसाइड द्वारा किया जाता है. गर्मियों में 20 दिन के अन्तराल पर फेनपाइरोक्सीमेट 5% EC की 150-200 मिली या प्रोपरजाईट 57% EC की 2 मिली मात्रा या एबामेक्टिन 1.9% EC की 4 मिली या घुलनशील सल्फर 1.5 ग्राम या बाइफेनाजेट 22.6% SC की 1 मिली या हेक्जीथायजोक्स 5.45% EC 1 मिली मात्रा एक लीटर पानी में छिडकाव करना चाहिए.