हमारे देश में अमरूद बेहद लोकप्रिय फल जिसे गरीबों का सेब भी कहा जाता है. यह स्वादिष्ट होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है. इसमें विटामिन, आयरन, चूना, फास्फोरस समेत अनेक खनिज तत्व पाए जाते हैं. इसमें विटामिन सी की मात्रा काफी होती है इसलिए इसके बहुत सारे हेल्थ बेनिफिट हैं. अमरूद का उत्पादन करने में भारत का दुनिया चौथा स्थान है. तो आइए जानते हैं अमरूद की बागवानी करने का क्या उचित तरीका
अमरूद की बागवानी/खेती के लिए जलवायु (Climate for Guava Cultivation)
गर्म और शुष्क जलवायु अमरूद की बागवानी के लिए अनुकूल मानी जाती है. इसकी आदर्श पैदावार के लिए 15 से 30 सेंटीग्रेड तापमान उचित माना जाता है. शुष्क जलवायु को अमरूद का पेड़ आसानी से सहन कर लेता है. अपरूद का पौधा बड़ी आसानी से तैयार किया जा सकता है और इस पर जलवायु के उतार-चढ़ाव का बहुत ज्यादा असर भी नहीं पड़ता.
अमरूद की बागवानी के लिए मिट्टी (Soil for Guava Cultivation)
वैसे तो सभी की तरह की मिट्टी में अमरूद की बागवानी की जा सकती है. हालांकि बुलई दोमट मिट्टी इसकी बेहतर उपज के लिए आदर्श मानी जाती है. इसकी अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 होना चाहिए. जिस मिट्टी का पीएच मान 7.5 से ज्यादा होता है उसमें अमरूद की बागवानी नहीं करनी चाहिए. ऐसी मिट्टी में इसकी खेती करने से इसमें उकठा समेत अन्य रोगों के प्रकोप की संभावना रहती है.
अमरूद की खास किस्में (The main varieties of guava)
अमरूद की प्रमुख किस्मों में इलाहाबाद सफेदा, एप्पल कलर, लखनऊ 49, चित्तीदार, अर्का मृदुला और ललित है. यह अमरूद की उन्नत किस्में हैं. जिससे अच्छी पैदावार ली जा सकती है.
अमरूद की बागवानी के लिए उचित समय (The appropriate time for Guava Cultivation)
अमरूद के पौधे को बारिश में जुलाई और अगस्त के महीने में लगाना चाहिए. सिंचित क्षेत्रों में पौधों को फरवरी और मार्च के महीने में भी लगाया जा सकता है.
अमरूद के पौधों का रोपण (Planting of guava)
वैसे तो अरूद को कई तरीके से लगाया जा सकता है लेकिन अमरूद का पौधा कलम विधि से तैयार करके लगाना सबसे सही माना जाता है. क्योंकि कलम विधि से लगाए गए पौधों पर फल जल्दी आ जाते हैं जबकि बीज द्वारा लगाए गए पौधों पर फल आने में ज्यादा समय लगता है. इन पौधों को 60 सेंटीमीटर लंबाई, 60 सेंटीमीटर चैड़ाई और 60 सेंटीमीटर गहराई के गड्ढ़ों में लगाया जाता है. पौधे की रोपाई के 10 से 15 दिन पहले इन गड्ढ़ों को तैयार करके खुला छोड़ दें. इससे मिट्टी जनित रोगों की संभावना कम रहती है. पौधे लगाने से पहले इन गड्ढ़ों में 10 से 15 किलो गोबर खाद, सिंगल सुपर फॉस्फेट 500 ग्राम, 250 सौ ग्राम पोटाष और 100 ग्राम मिथाइल पैराथियॉन पाउडर डालें. इसके बाद गड्ढ़ों को मिट्टी से भरकर सिंचाई करें. एक हेक्टेयर में 500 से 5000 तक पौधे लगाए जा सकते हैं.
कब और कैसे करें सिंचाई ? (When and how to irrigate)
अमरूद का पौधा एक या दो साल का होने पर 10 से 15 दिन के नियमित अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए. वहीं गर्मी में इस अंतर को कम करना चाहिए. गर्मी में 3 से 4 दिन में सिंचाई करें.
अमरूद की खेती के लिए उर्वरक (Fertilizer for guava cultivation)
एक साल के पौधों में नाइट्रोजन 50 ग्राम, स्फुर 30 ग्राम और पोटाश 50 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से डालें.
दो साल का पौधा होने पर नाइट्रोजन 100 ग्राम, स्फुर 60 ग्राम और पोटाश 100 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से डालना चाहिए.
3 साल के पौधों में नाइट्रोजन 150 ग्राम, स्फुर 90 ग्राम और पोटाश 150 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से डालना सही रहेगा.
5 साल का पौधा होने पर नाइट्रोजन 200 ग्राम, स्फुर 120 ग्राम और पोटाश 200 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से डालना चाहिए.
5 साल के पौधों में नाइट्रोजन 250 ग्राम, स्फुर 150 ग्राम और पोटाश 250 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से डालें.
कटाई और छंटाई (Pruning)
पहले साल अमरूद के पौधों को 60 से 90 सेमी. तक सीधा बढ़ने दें. 15 से 20 सेमी. लंबा पौधा होने पर 3 से 4 शाखाएं चुनकर शीर्ष और किनारे की शाखाओं की कटाई और छंटाई करें.
अमरूद की तुड़ाई और उपज (Throwing and Yielding of guava)
फूल आने के 120 से 140 दिनों बाद अमरूद के फलों की तुड़ाई की जाती है. उस समय फल हरे से हल्के पीलेपन पर आ जाते हैं. एक पौधे से साल में करीब 400 से 600 फल लिए जा सकते हैं. जिनका वजन 125 से 150 तक होता है.
संपर्क सूत्र (For contact)
अमरूद की बागवानी से जुड़ी ज्यादा जानकारी के लिए संपर्क करें :
जितेन्द्र पाटीदार, जेपीफार्म आर्गेनिक फार्म्स
मोबाइल-9770269992
पता- गांव धलपट, तह. सुवासरा, जिला मंदसौर, मध्य प्रदेश.