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Updated on: 12 October, 2020 6:48 PM IST

कुट्टू जिसे टाऊ कहा जाता है, पोषक तत्वों का अच्छा स्त्रोत माना जाता है. इसमें गेहूं और धान जैसे अनाजों से भी अधिक पोषक तत्व होते हैं. कुट्टू में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस, लौह और फैट होता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसका संपूर्ण पौधा ही उपयोगी होता है. जहां इसके तने का उपयोग सब्जी में किया जाता है, वहीं फूल और हरी पत्तियों का उपयोग दवा बनाने में होता है. जबकि इसके फलों से प्राप्त आटा स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत लाभदायक होता है. तो आइए जानते हैं कुट्टू की उन्नत खेती करने का सही तरीका-

कहां होती है खेती

ऐसा माना जाता है कि कुट्टू की उत्पत्ति चीन और साइबेरिया में हुई. इसकी खेती भारत के अलावा रूस और यूनान में व्यापक रूप से होती है. देश में छत्तीसगढ़ राज्य में इसकी खेती होती है.

खेत की तैयारी

कुट्टू की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है. हालांकि इसकी खेती के लिए सोडिक और लवणीय भूमि उचित नहीं मानी जाती है. जिस मिट्टी में कुट्टू की खेती करना उसका पीएच मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए. बुवाई से पहले खेत को कल्टीवेटर की सहायता से तैयार कर लेना चाहिए.

बीज की मात्रा

इसके लिए बीज की मात्रा उसकी किस्म पर निर्भर करती है. यदि आप स्कूलेन्टम प्रजाति की बुवाई कर रहे हैं तो प्रति हेक्टेयर 74 से 80 से किलो बीज की जरूरत पड़ेगी. कुट्टी की बुवाई छिड़कन विधि से होती है. कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर तक रखी जाती है.

बुवाई का सही समय

कुट्टू रबी सीजन की फसल है. इसकी बुवाई सितंबर के दूसरे सप्ताह से अक्टूबर के दूसरे सप्ताह तक कर सकते हैं.

खाद और उर्वरक का प्रयोग

इसमें प्रति हेक्टेयर के हिसाब से फास्फोरस 40 किलो, पोटाश 20 किलो और नाइट्रोजन 20 किलो की जरूरत पड़ती है.

सिंचाई

कुट्टू की अच्छी पैदावार के लिए 5 से 6 सिंचाई करना चाहिए.

कीट का प्रकोप

इस फसल की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें किसी तरह के कीट या फंगस का प्रकोप नहीं देखा गया है.

कटाई

इसकी फसल को उस समय काट लेना चाहिए जब 75 से 80 प्रतिशत पक जाए. इसके बाद इसे सुखाया जाता है. जिससे खिरने की समस्या निजात मिल जाती है.

प्रमुख किस्में-

हिमप्रिया- यह किस्म हिमाचल प्रदेश में बोई जाती है. इससे प्रति हेक्टेयर 11 से 12 क्विंटल की पैदावार होती है.

हिमगिरी- यह हिमाचल प्रदेश के सुखे क्षेत्र और जम्मू कश्मीर के वातावरण के अनुकूल है. प्रति हेक्टेयर इसकी 10 से 11 क्विंटल की पैदावार होती है. यह 80 से 90 दिनों में ही पक जाती है.

संगला बी 1- यह उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की जलवायु के अनुकूल है. इसकी प्रति हेक्टेयर 12 से 13 क्विंटल की पैदावार हो जाती है. यह 102 से 109 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.  

English Summary: how to cultivate buckwheat in hindi
Published on: 12 October 2020, 06:52 PM IST

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