देश के कई किसान रबी सीजन में मटर की बुवाई करते हैं. ऐसे में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (Haryana Agricultural University) के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा दाना मटर की नई किस्म विकसित की गई है. यह एक रोग प्रतिरोधी किस्म है, जिसे एचएफपी-1428के नाम से विकसित किया गया है. दाना मटर की इस किस्म को विश्वविद्यालय के आनुवंशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के दलहन अनुभाग ने विकसित किया है. बता दें कि इससे पहले दाना मटर की अपर्णा, जयंती, एचएफपी-529, उत्तरा, एचएफपी-9426, हरियल और एचएफपी-715 किस्म भी विकसित हो चुकी हैं.
इन इलाकों के लिए विकसित हुई नई किस्म
उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों के सिंचित क्षेत्रों में रबी सीजन में दाना मटर की एचएफपी-1428 किस्म की बुवाई की जा सकती है. इसमें जम्मू और कश्मीर के मैदानी भाग, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के नाम शामिल है.
कम अवधि में पककर तैयार होती है किस्म
दाना मटर की एचएफपी-1428किस्म की खासियत यह है कि इसकी फसल लगभग 123 दिन में पककर तैयार हो जाती है. यह हरे पत्रक और सफेद फूलों वाली बौनी किस्म है. इसके दाने पीले-सफेद रंग के होते हैं. इसका आकारामध्यम, थोड़ी झुर्रियों और हल्के बेलनाकार होते हैं. इसकिस्म के पौधे सीधे बढ़ने वाले होते हैं, इसलिए फलियां लगने के बाद गिरते नहीं हैं. इसकी उत्पादकता घटती नहीं है और फसल की कटाई भी आसानी से कर सकते हैं. इसके अलावा जड़ों में नत्रजन स्थापित करने वाली गांठें और नाइट्रोजीनेस गतिविधि बहुत अधिक होती है. यही वजह है कि पर्यावरण से नत्रजन स्थापित करने की क्षमता अत्यधिक है.
नई किस्म से मिलेगी अच्छी पैदावार
मटर की एचएफपी-1428किस्म से औसत 26 से 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त की जा सकती है, तो वहीं अधिकतम 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिल सकती है.
रोग प्रतिरोधक है किस्म
मटर की यह किस्म सफेद चूर्णी, एस्कोकायटा ब्लाइट और जड़ गलन जैसे रोगों के प्रति प्रतिरोधी है. इसमें रतुआ का प्रकोप भी कम होता है. बता दें कि इस किस्म में रसचूसक कीट व फली छेदक कीटों का प्रभाव भी कम होता है.
इन वैज्ञानिकों का योगदान
इस किस्म को विकसित करने में कई कृषि वैज्ञानिक का प्रमुख योगदान रहा है. इस किस्म को डॉ. राजेश यादव के नेतृत्व मेंडॉ. रविका, डॉ. नरेश कुमार, डॉ. एके छाबड़ा, डॉ. रामधन, डॉ. तरुण वर्मा व डॉ. प्रोमिल कपूर ने मिलकर विकसित किया है.