लहसुन एक मसाले वाली फसल है जिसका प्रयोग खाने में करने के साथ -साथ कई तरह की समस्याओं को दूर करने में भी किया जाता है. हमारे देश में लहसुन की खेती को ज्यादातर राज्यों में की जाती है. लेकिन इसकी मुख्य रूप से खेती गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु में की जाती है. जबकि इसका 50 प्रतिशत से भी ज्यादा उत्पादन गुजरात और मध्यप्रदेश राज्यों में किया जाता है. समय के साथ-साथ लहसुन के उत्पादन क्षेत्र और उत्पादकता में निरंतर वृद्धि हो रही है.
भूमि
दोमट मिट्टी इस फसल के लिए काफी उपयुक्त मानी गयी है. इसकी खेती रेतीली दोमट से लेकर चिकनी मिट्टी में भी की जा सकती है. जिस मिट्टी में कार्बोनिक पदार्थ की मात्रा होने के साथ – साथ जल निकास की अच्छे से व्यवस्था हो वे इस फसल के लिए सर्वोत्तम मानी गयी है. अगर बात करे, रेतीली या ढीली भूमि में इसके कंदों का समुचित विकास नहीं हो पाता है, जिस वजह से कम उपज हो पाती है.
लहसुन की उन्नत किस्में
एग्रीफाउंड वाइट (जी. 41 ), यमुना वाइट (जी.1 ), यमुना वाइट (जी.50), जी.51 , जी.282 ,एग्रीफाउंड पार्वती (जी.313 ) और एच.जी.1 आदि.
खाद एवं उर्वरक
लहसुन को खाद एवं उर्वरकों की ज्यादा मात्रा में जरूरत होती है. इसलिए इसके लिए मिट्टी की अच्छे से जांच करवा कर किसी भी खाद व उर्वरक का उपयोग करना उचित माना गया है.
बुवाई का सही समय
इसकी बुवाई का सही समय उसके क्षेत्र, जगह व मिट्टी पर निर्भर करता है. इसकी पैदावार अच्छी करने के लिए उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर - नवंबर माह सही है. जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च व अप्रैल के माह में करना उचित है.
लहसुन की सिंचाई
लहसुन की बुवाई के तुरंत बाद ही पहली सिंचाई करनी चाहिए. इसके बाद इसकी फसल पर करीब 10 से 15 दिनों के बाद सिंचाई करें. गर्मी के माह में हर सप्ताह इसकी सिंचाई करें. जब इसके शल्ककन्दों का निर्माण हो रहा हो उस समय फसल की सिंचाई सही से करें.
लहसुन की उपज
लहसुन की फसल की उपज कई चीजों पर निर्भर करती है. जिनमें मुख्य रूप से इसकी किस्म, भूमि की उर्वरा शक्ति एवं फसल की देखरेख है. इसके साथ ही लंबे दिनों वाली किस्में ज्यादा उपज देती है. जिसमें करीब प्रति हेक्टेयर से 100 से 200 क्विंटल तक उपज प्राप्त हो जाता है.