रबी सीजन की बुवाई शुरू होने में अब महज कुछ ही वक्त शेष है. इसमें कोई दोराय नहीं है कि भारत में गेहूं का उत्पादन बंपर मात्रा में किया जाता है. जो कि रबी सीजन की एक मुख्य फसल भी है. इसके साथ ही चने की खेती के लिए किसान अग्रसर हो रहे हैं, लेकिन अक्सर देखा गया है कि जानकारी के अभाव के कारण किसानों को नुकसान भी झेलना पड़ता है. यदि चने की खेती में इस प्रकार से सावधानियां बरती जाएं तो आप बंपर मुनाफा कमा सकते हैं
उत्तर भारत चने की खेती का हब
उत्तर भारत में चने की खेती बड़े पैमाने में की जाती है. क्योंकि चने की खेती के लिए शुष्क नमी वाला क्षेत्र और ठंडे मौसम वाला क्षेत्र अनूकूल माना जाता है. चने की खेती उस क्षेत्र में शुरू करनी चाहिए, जहां पर 60 से 90 सेमी बारिश होती है. चने के पौधों के विकास के लिए 24 से 30 डिग्री तापमान ब बहुत अच्छा है.
चने की खेती के लिए भूमि
चने की खेती के लिए ऐसे खेत का चयन करना चाहिए जहां पर जल निकासी के लिए पर्याप्त व्यवस्था हो. इसके अलावा बात करें मिट्टी की तो, हल्की से भारी मिट्टी चने की अच्छी पैदावार के लिए अनूकूल है. साथ ही पीएच (PH) 5.5 से 7 पीएच वाली मिट्टी चने के पौधे का अच्छे से विकास करती है.
चने की उन्नत किस्में
सी 235: चने की यह किस्म बुवाई के 145-150 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. यह तना सड़न और झुलस रोग के प्रति सहनशील है. इसके दाने मध्यम और पीले भूरे रंग के होते हैं. 8.4-10 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है.
जी 24: यह बुवाई के 140-145 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है.
जी 130: यह एक मध्यम अवधि की किस्म है, जो कि औसतन 8-12 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है.
पंत जी 114 : चने की यह खास किस्म 150 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. यह तुषार प्रतिरोधी है. यह औसतन 12-14 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है.
सी 104: काबुली चने की किस्में, पंजाब और उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त मानी जाती है. 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देती है.
पूसा 209: 140-165 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देती है.
चने की खेती के लिए उपयुक्त समय
चने की बंपर उत्पादन के लिए बुवाई का उपयुक्त समय 20 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच माना जाता है. जिसके लिए मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और पंजाब प्रमुख चना उत्पादक राज्य है.
चने के खेत के लिए बीज दर
चने की अच्छी पैदावार के लिए खेतों में चने के बीज के छिड़काव का भी खासा ध्यान देना पड़ता है, जिसके के लिए देसी किस्म के लिए 15-18 किलो प्रति एकड़ और काबुली किस्म के लिए 37 किलो प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें. यदि बुवाई नवम्बर के दूसरे पखवाड़े में करनी हो तो देसी चना की बीज दर बढ़ाकर 27 किग्रा/एकड़ तथा दिसम्बर के प्रथम पखवाड़े में 36 किग्रा/एकड़ कर देना है.
चने के खेत में खरपतवार नियंत्रण
चने के खेती पर खरपतवारों पर नियंत्रण रखने के लिए पहली बार निराई-बुवाई के 25-30 दिन बाद कर दें. यदि जरूरत पड़ें तो दूसरी बार निराई-बुवाई के 60 दिन बाद करें. इसके अलावा प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए एक एकड़ भूमि में बुवाई के तीसरे दिन पेंडीमेथालिन @ 1 लीटर / 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें, इसका छिड़काव पूरे साल तक खरपतवार को नियंत्रित करेगा.
चने के खेत में सिंचाई
चने के खेतों में बुवाई से पहले सिंचाई कर लें. यह उचित अंकुरण और सुचारू फसल विकास सुनिश्चित करता है. इसके बाद दूसरी सिंचाई फूल आने से पहले और एक फली बनने के समय करनी चाहिए. यदि बारिश समय से पहले हो जाती है तो सिंचाई में थोड़ी देरी करें, क्योंकि अधिक पानी में फसल की उपज कम हो जाती है. इसके साथ ही समय-समय पर खेतों में जल निकासी करें.
पौध संरक्षण
दीमक: यह जड़ या फसल के जड़ क्षेत्र के पास फ़ीड करता है. प्रभावित पौधा सूखने के लक्षण दिखाता है. इसे आसानी से जड़ से उखाड़ा जा सकता है. बीजों को दीमक से बचाने के लिए, बीजों को क्लोरपायरीफॉस 20EC@10 मि.ली. प्रति किलो खेत में छिड़काव करें.
सुंडी: यह मिट्टी में 2-4 इंच की गहराई पर छिप जाती है. यह पौधे, शाखाओं या तने के आधार पर काटा जाता है. अंडे मिट्टी में रखे जाते हैं. लार्वा लाल सिर के साथ गहरे भूरे रंग का होता है. इसके निवारण के लिए आप अच्छी तरह सड़ी गाय के गोबर का ही प्रयोग करें.
चना फली छेदक: यह चने का सबसे गंभीर कीट है और उपज में 75% तक की कमी का कारण बनता है. यह पत्तियों पर फ़ीड करता है जिससे पत्तियों का कंकालीकरण होता है और फूल और हरी फली पर भी फ़ीड करता है. फलियों पर वे गोलाकार छेद बनाते हैं और अनाज खाते हैं. पौधों को इससे बचाने के लिए हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा 5 प्रति एकड़ के लिए फेरोमोन ट्रैप लगाएं. अधिक प्रकोप होने पर एमेमेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी 7-8 ग्राम/15 लीटर या 20% डब्ल्यूजी फ्लूबेन्डियामाइड 8 ग्राम/15 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें.
इस प्रकार से चने की खेती पर विशेष ध्यान देकर बंपर उत्पादन किया जा सकता है. जिससे किसानों की आय तो बढ़गी ही साथ ही देश की अर्थव्यवस्था में भी अहम योगदान मिलेगा.