भारत में अधिकतर फ्रेंचबीन की खेती की जाती है. इसमें उच्च प्रोटीन होता है. फ्रेंचबीन फलीदार होने के कारण स्वाद में बहुत ही स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है. इसकी कोमल फलियाँ और परिपक्व बीज का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. यह मुख्य रूप से खरीफ में उगाई जाने वाली छोटी अवधि की फसल है. आइये जानते हैं कि फ्रेंचबीन की खेती करने का सही तरीका क्या है.
फ्रेंचबीन की खेती के लिए जलवायु और मौसम (Climate and Seasons for French Bean Cultivation)
इसकी खेती मुख्य रूप से भारत के समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होती है. इसके लिए 21 डिग्री सेल्सियस के आस-पास का तापमान अच्छा माना जाता है. इसकी अधिक उपज के लिए लगभग 16 से 24 डिग्री सेल्सियस का इष्टतम तापमान बेहतर होता है. वहीं अच्छी फसल के लिए 50 - 150 सेमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है. यह ठंड के लिए अति संवेदनशील है. इसे ठंड की शुरुआत से पहले काटा जाना चाहिए. बहुत अधिक वर्षा जल जमाव का कारण बन सकती है, जिससे फूल गिर जाते हैं. इसके साथ ही पौधे को विभिन्न रोग हो जाते हैं. इसके अलावा फ्रेंचबीन की खेती (French Bean Farming) फरवरी से मार्च के बीच पहाड़ियों में होती है और अक्टूबर से नवंबर में मैदानी इलाकों में की जाती है.
फ्रेंचबीन की खेती के लिए मिट्टी (Soil for French Bean Cultivation)
फ्रेंचबीन की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिटटी अच्छी मानी जाती है. बेहतर विकास के लिए इसे 5.2 से 5.8 के इष्टतम पीएच की आवश्यकता होती है. यह उच्च लवणता के प्रति भी संवेदनशील होता है.
फ्रेंचबीन की खेती के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for French bean cultivation)
पहाड़ी क्षेत्र इसकी खेती के लिए में मिट्टी को अच्छी तरह से खोदा जाता है और फार्म यार्ड खाद (FYM) के साथ मिलाया जाता है. इसके बाद उपयुक्त आकार के बेड बनाए जाते हैं. मैदानी इलाकों में, मिट्टी को दो बार जुताई करने की आवश्यकता होती है. इसके बाद लकीरें और खांचे बनाए जाते हैं. बारीक जुताई करने के लिए खेतों की 2 या 3 बार अच्छी तरह जुताई करना बहुत जरूरी है. अंतिम जुताई के दौरान मिट्टी की क्यारी को बुवाई के लिए भुरभुरा बनाने के लिए प्लांकिंग की जाती है.
फ्रेंचबीन की खेती के लिए बुवाई की प्रक्रिया (Sowing Process for French Bean Cultivation)
फ्रेंचबीन के बीज (French Bean Seeds) साल में दो बार दो अलग-अलग मौसमों में बोए जा सकते हैं. बुवाई का समय भी क्षेत्र के प्रकार के आधार पर भिन्न होता है. मैदानी इलाकों में इसे जनवरी-फरवरी में बोया जा सकता है और जुलाई-सितंबर में भी बोया जा सकता है.
फ्रेंचबीन की उन्नत किस्में (Improved varieties of Frenchbean)
अर्का कोमली किस्म (Arka Komli variety)
फ्रेंचबीन की यह किस्म को आईआईएचआर (IIHR ) बैंगलोर द्वारा विकसित की गई है, जो बड़े भूरे बीजों के साथ सीधे, सपाट और हरे रंग की फली पैदा करती है. यह 19 टन/हेक्टेयर फली और 3 टन/हेक्टेयर बीज की उपज देती है.
अर्का सुबिधा किस्म (Arka Subidha Variety)
फ्रेंचबीन की यह किस्म आईआईएचआर (IIHR ) बैंगलोर द्वारा विकसित की गई है. यह फली पैदा करती है, जो अंडाकार और हल्के हरे रंग की ती हैं. यह 70 दिनों में 19 टन प्रति हेक्टेयर उपज देती हैं.
पूसा पार्वती किस्म (Pusa Parvati Variety)
यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान( IARI), कटरीन द्वारा विकसित की गई है. इसके पौधे गुलाबी फूलों के साथ झाड़ीदार किस्म के होते हैं. इसकी फलियाँ हरी, गोल और लंबी होती हैं. यह मोज़ेक और ख़स्ता फफूंदी के लिए प्रतिरोधी है.
पूसा हिमालय किस्म (Pusa Himalaya Variety)
यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान( IARI) द्वारा विकसित हुई है. इस किस्म की फलियाँ आकार में मध्यम, गोल, मांसल होती हैं. इस किस्म से 26 टन / हेक्टेयर की उपज प्राप्त होती है.
वीएल बोनी1 किस्म (VL Boni1 Variety)
फ्रेंचबीन की यह किस्म को वीपीकेएएस, अल्मोड़ा द्वारा विकसित की गई है. यह एक बौनी किस्म है. इसकी फलियाँ गोल और हल्के हरे रंग की होती हैं. इस किस्म से यह 10 - 11 टन/हेक्टेयर की उपज प्राप्त होती है.
एनडीवीपी 8 और 10 किस्म (NDVP 8 And 10 Varieties)
यह दोनों किस्मों को एनडीएयूएंडटी, फरीदाबाद द्वारा विकसित किया गया है, जो मध्य मौसम की किस्म हैं. इनसे 10 टन प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है.