आलू एक ऐसी सब्जी है, जिसका सेवन हर महीने किया जा सकता है. आलू को किसी भी सब्जी के साथ बनाया जा सकता है. आलू की खपत हर घर में हर महीने होती है. इसकी बढ़ती खपत की वजह से इसकी पैदावार भी अधिक होती है. आलू की खेती (Farming Of Potato) लगभग देश के हर क्षेत्र में की जाती है.
आलू की खेती से अधिक मुनाफा पाने के लिए जरुरी है कि इसकी खेती करने की सही प्रक्रिया अपनाई जाए. अगर खेती की प्रक्रिया सही ढंग से हो, तो आलू से ज्यादा पैदावार और मुनाफा मिल सकता है. आलू की खेती की प्रक्रिया की बात करें, तो इसमें आलू की बुवाई, सिंचाई, रोपाई आदि है. यहाँ हम आपको आलू की बुवाई (Potato Planting) की समस्त जानकारी देने जा रहे हैं, जिससे आप आलू से अच्छी पैदावारा प्राप्त कर सकते हैं. तो चलिए आलू की बुवाई प्रक्रिया के बारे में जानते हैं.
मिटटी की जाँच (Soil Test)
आलू की बुवाई करते समय सबसे पहले हमे मिटटी की स्तिथि को देखना होगा. क्षारीय मिटटी के अलावा आलू की खेती हर प्रकार की मिटटी में की जा सकती है. वहीं मिटटी का P H मान 5.2 से 6.5 के बीच होना चाहिए.
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आलू एक रबी की फसल है. यानि ये शीतोष्ण ऋतु में बोयी एवं उगाई जाने वाली फसल मानी जाती है. ये ऋतु भारत में मुख्य रूप से अक्टूबर से मार्च तक रहती है, लेकिन किसी – किसी राज्य में ये अंतराल कम ज्यादा हो सकता है.
आलू के बीजों का सही चयन (Choosing The Right Potato Seeds)
आलू की अच्छी बुवाई के लिए बीजों का सही चयन करें. सबसे पहले बीजों को हमेशा सही जगह से खरीदें.
आलू की बुवाई विधि (Potato Sowing Method)
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आलू की बुवाई के लिए कतारों और पौधो की दूरी में संतुलन होना चाहिए.
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पौधों से पौधों की दूरी 20 से 25 से.मी.
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पंक्तियों से पंक्तियों की दूरी मे 50 से.मी. रखनी चाहिए.
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बुवाई के दौरान मिटटी को समतल रखना चाहिए.
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मिटटी में बीजों को बोने के बाद ऊपर से मिटटी से ढक देना चहिये.
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खेत में 60 सेंटीमीटर पर लाइन बना ली जाती है और इन बनी हुई लाइन पर 5 सेंटीमीटर का गढ्ढा बनाकर आलू के कंद को 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर बुवाई की जाती है.
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कुदाल या अन्य मशीनों से मेड़ बनाकर उस पर उचित दूरी और गहराई पर आलू की बीज को लगा सकते हैं.