देश का किसान भाई तभी खुशहाल होगा जब संरक्षित जल, टिकाऊ कृषि होगी. इसके लिए वह कई तरह के तरीकों को अपनाता है. लेकिन फिर भी कहीं न कहीं इसमें उसे अधिक लाभ नहीं मिल पाता है. लेकिन आज हम आपके लिए जल संरक्षण करने के कुछ बेहतरीन उपाय लेकर आए जिनकी मदद से आप सरलता से वर्षा आधारित क्षेत्रों में जल संरक्षण (Water Conservation in Rainfed Areas) कर पाएंगे. तो आइए सबसे पहले इसके लाभ के बारे में जान लेते हैं.
जल संरक्षण के लाभ (Benefits of water conservation)
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पीने एवं सिंचाई के लिये पानी की उपलब्धता
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भू-जल स्तर में वृद्धि
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बाढ़व भूस्खलन जैसी आपदाओं का प्रभावी नियंत्रण
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फसल एवं पेड़ पौधों से अधिक पैदावार
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खाद्यान्न व पशु चारे का पर्याप्त उत्पादन
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बारानी भूमि का सदुपयोग
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बदलती जलवायु के दुष्प्रभावों से सुरक्षा
जल संरक्षण के लिए किसान भाई करें ये काम
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खेतों की मेड़बंदी (लगभग 30 सेंटीमीटर ऊंचाई वाली) अच्छी तरह करें जिससे वर्षा का पानी खेत से बाहर न जा सके.
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ऐसी फसलें, जिनमें कतार से कतार तथा पौधे से पौधे का अंतरण अधिक हो, घास व पत्ती की जैविक अथवा पॉलीथिन की पलवार का प्रयोग करें. ताकि खेतों से वाष्पीकरण द्वारा होने वाली जल की हानि को कम किया जा सके.
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खेतों में ढाल की दिशा को ध्यान में रखते हुएनीचे की तरफ कच्चा तालाब अवश्य बनायें ताकि फालतू वर्षा जल उसमें एकत्रित हो सके. इससे भू-जल स्तर में वृद्धि होगी .
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गर्मी के मौसम में खेतों की गहरी जुताई अवश्य करें जिससे खेतों में वर्षा जल का संचय अधिकाधिक हो सके.
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खेतों में जैविक खादों (गोबर, कम्पोस्ट व पत्तों की सड़ी खाद) का अधिकाधिक प्रयोग कर खेतों में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढायें जिससे भूमि की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है तथा सूखे जैसी परिस्थितियों में भी उन भूमियों में नमी बने रहने से फसलों का पर्याप्त उत्पादन प्राप्त हो जाता है.
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शुष्क एवं वर्षा आधारित क्षेत्रों में कम पानी चाहने वाली व कम अवधि वाली फसलों अथवा वैकल्पिक भू-उपयोग प्रणालियों को अपनाकर फलदार वृक्ष युक्त बागवानी फसलों के क्षेत्रफल का विस्तार किया जाना चाहिए.
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पर्वतीय क्षेत्रों में जल स्रोतों को रिचार्ज करने हेतु बेकार पड़ी भूमि में खन्तियाँ, छोटे कच्चे तालाब व रिचार्ज गड्ढे अवश्य खोदें तथा बहुउद्देशीय वृक्ष प्रजातियों का रोपण कर वनीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये.
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फालतू वर्षा जल को पक्के अथवा पोलीथीन युक्त तालाबों में एकत्र करना चाहिये तथा इन तालाबों से वाष्पीकरण द्वारा होने वाली जल हानि को रोकने के लिये इनको घास व पत्ती की टाट अथवा नेट शेड़ से ढक कर रखना चाहिये. इस प्रकार के तालाबों में एकत्र जल शुष्क क्षेत्रों में बागवानी विकसित करने हेतु जीवन रक्षक सिंचाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
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फसलों में सिंचाई करने हेतु किसान भाई कदापि भी तोड़ सिंचाई (Flood Irrigation) विधि का प्रयोग न करें तथा सिंचाई जल में बचत करने हेतु क्यारी अथवा कूंड सिंचाई विधियों का प्रयोग करें. इसके अतिरिक्त जिन क्षेत्रों में सिंचाई जल की कमी हो वहां पर आधुनिक विधियों जैसे टपक व फव्वारा आदि को अपनाकर फलदार वृक्षों, फलों एवं सब्जी आदि की खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिये.
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प्रत्येक गाँव की सामुदायिक भूमि पर एक बड़ा तालाब अवश्य बनाना चाहिये जिसमें पूरे गाँव का वर्षा जल एकत्र किया जा सके. इसे भू-जल रिचार्ज के साथ-साथ अन्य उद्देश्यों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
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पानी की कमी वाले क्षेत्रों में, पानी को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने हेतु कच्ची / पक्की सिंचाई नालियों का उपयोग यथासंभव कम करते हुए उनके स्थान पर पाइप लाइन का प्रयोग किया जाना चाहिए ताकि पानी के अपव्यय को रोक कर इसकी पूरी मात्रा सिंचाई के काम में लाई जा सके.
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ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षा जल को पूर्ण रूप से भूमि के अन्दर अवशोषित कराने हेतु छिद्रित कंक्रीट युक्त रिचार्ज कुँए निर्मित करने के सामुदायिक स्तर पर प्रयास किये जाने चाहिए. ताकि गाँव का फालतू बहने वाला वर्षा जल गाँव की भूमि के अन्दर अवशोषित होकर वहाँ के भूजल स्तर में वृद्धि कर सके.
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पर्वतीय क्षेत्रों में कृषकगण सीढ़ीदार खेतों का निर्माण करें तथा इन खेतों का ढाल अन्दर की ओर रखें. ताकि वर्षा जल इन सीढ़ीदार खेतों से बाहर न जाकर पूर्ण रूप से खेतों में अवशोषित हो सके. इन सीढ़ीदार खेतों की मजबूत मेडबंदी करके उनके ऊपर घास रोपण किया जाना चाहिए. पर्वतीय क्षेत्रों में भूमि कटाव रोकने, कृषि उत्पादन बढ़ाने एवं जल स्रोतों को रिचार्ज करने का यह एक उत्तम उपाय है.
Note- आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ICAR भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान पर आधारित है. इस संदर्भ में अधिक जानकारी के लिए आप अपने नजदीकी कृषि विभाग या दूरभाष नंबर 0135 2758564 से भी संपर्क कर सकते हैं. आप चाहते तो विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर भी विजिट कर सकते हैं.