किसानों की आमदानी को बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिक आए दिनों नई-नई तकनीकों का विकास कर रहे हैं, ताकि खेती एक मुनाफे का व्यवसाय बन सकें. इसी कड़ी में गुजरात के नवसारी जिले के किसान कृषि वैज्ञानकों की सलाह से खेती की एक खास तकनीक का इस्तेमाल करके लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं. यह खास तकनीक है एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated Farming System). कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि खेती की यह खास तकनीक पर्यावरण के अनुकूल है. वहीं किसान इस तकनीक को अपनाकर अच्छा मुनाफा कर सकते हैं. तो आइए जानते हैं क्या है Integrated Farming System और यहां के किसान इससे कैसे कमाई कर रहे हैं?
सवा तीन हेक्टेयर में कर रहे खेती
यहां के किसान लगभग 3.20 हेक्टेयर जमीन में Integrated Farming System से खेती कर रहे हैं. यहां लगभग एक से सवा हेक्टेयर जमीन में बागवानी की जा रही है. इसके लिए आम के पेड़ लगाए गए हैं. यहां तकरीबन 159 आम के पेड़ हैं. वहीं इन आम के पेड़ों के बीच हल्दी की खेती की जा रही है. बाकी जमीन में मछली पालन किया जा रहा है.
मछली पालन से अच्छी कमाई
यहां लगभग दो हेक्टेयर भूमि में मछली पालन किया जा रहा है. जिसमें अलग-अलग प्रजातियों की मछलियों को पालन हो रहा है. यहा मिश्रित मछली पालन हो रहा है जिससे लगभग ढाई लाख रूपये की कमाई हो रही है. इसके अलावा पिंजरा मछली तकनीक को अपनाया जा रहा है. इससे मिश्रित मछली पालन की तुलना में अधिक मुनाफा हो रहा है. पिंजरा मछली पालन के जरिए साल में पौने चार लाख रूपए तक का मुनाफा हो जाता है.
पशुओं और मुर्गियों का पालन
इसके अलावा यहां पशुओं और कड़कनाथ मुर्गियों का पालन होता है. यहां दूध उत्पादन के लिए लगभग 12 गायें पाली जा रही हैं जिससे दूध के अलावा गोबर खाद का उत्पादन होता है. इसके अलावा यहां लगभग 50 कड़कनाथ मुर्गियों का पालन किया जा रहा है. गाय और मुर्गियों के पालन से सालाना एक लाख रूपए की अतिरिक्त आय हो जाती है. इसके अलावा, यहां मधुमक्खी पालन करके शहद का उत्पादन किया जा रहा है. 25 मधुमक्खी बॉक्स लगाए गए हैं. इससे लगभग 2 लाख रूपए की सालाना आय हो जाती है. वहीं यहां वर्मी कम्पोस्ट भी तैयार किया जाता है.
छोटे किसानों के लिए कारगर
गौरतलब है कि देश में लगभग 86 फीसदी लघु व सीमांत किसान हैं. उनके लिए यह तकनीक काफी कारगर मानी जा सकती है. इस तकनीक को अपनाकर किसान सालाना अच्छी आमदानी कर सकते हैं. इसके लिए देश के 700 से ज्यादा कृषि विज्ञान केंद्रों को इस तकनीक को किसानों तक पहुंचाने का जिम्मा दिया गया है. दरअसल, यह किसानों की आय को बढ़ाने का एक कारगर उपाय माना जा रहा है.