तोरई एक कद्दूवर्गीय ग्रीष्म कालीन सब्जी है एवं इसके कच्चे फलों का उपयोग सब्जियों के रूप में किया जाता है. यह जायद तथा खरीफ दोनों ऋतुओं में देश के उष्ण व उपोष्ण भाग में सफलता से उगाई जाती है. यह एक कम लागत वाली बेल वाली फसल है.
तोरई फसल की जलवायु (Climate of Ridge gourd crop)
गर्म और आर्द्र जलवायु तोरई फसल के विकास के लिए बेहद अनुकूल है. अच्छी पैदावार के लिये लम्बे समय तक गर्म मौसम तथा औसतन तापमान 25-30 डिग्री सेन्टीग्रेड उपयुक्त होता है. पुष्पन व फलन के समय ज्यादा गर्मी या वर्षा का होना पैदावार पर विपरीत प्रभाव पडता है. भारत में इस फसल की खेती केरल, उड़ीसा, बंगाल, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से की जाती है.
तोरई के लिए भूमि का चयन (Soil selection for Ridge gourd)
तोरई की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में सफलतापूर्वक की जा सकती है, लेकिन उचित जल निकास वाली जीवांश युक्त बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी.एच. मान 6.5 से 7.0 के मध्य हो तोरई के लिए आदर्श मिट्टी होती हैं.
तोरई की खेती में कैसे करें खेत की तैयारी (How to prepare the farm in Luffa cultivation)
खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा इसके बाद 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करनी चाहिए. फसल को दीमक व अन्य भूमिगत कीटों से बचाने के लिए मैलाथियोन 5 प्रतिशत को 8-10 किलोग्राम की दर से अंतिम जुताई के समय भुरक कर मिला देनी चाहिए या रोपाई के समय कार्बोफ्युरोन 3% GR की 7.5 किलो या कारटॉप हाइड्रोक्लोराइड 4% G की 7.5 किलो मात्रा प्रति एकड़ की दर से खेत में मिला दे.
तोरई की उन्नत किस्में (Improved varieties of Ridge gourd)
अर्का प्रसन: इस किस्म के फल लम्बे, हरे, कोमल व पैदावार 10 टन प्रति एकड़ आती है. यह 120-135 दिनों की अवधि की फसल है.
अर्का विक्रम: यह 120-135 दिनों की अवधि की फसल 13 टन पैदावार प्रति एकड़ है.
पूसा नसदार: इसके फल हल्के रंग व क्लब आकृति के होते है.
पंजाब सदाबहार: फल लम्बे मोटे हरे धारीदार तथा हल्के मुड़े हुए व प्रोटीनयुक्त होते हैं
अर्का सुजात: फल गहरे हरे रंग के व धारीदार होते है और औसत अवधि 100 दिन की है.
तोरई की फसल में खाद व उर्वरक का प्रबंधन (Management of manures and fertilizers in Ridge gourd crop)
खाद व उर्वरक की मात्रा मृदा की उर्वरता पर निर्भर करती है. खेत की अंतिम जुताई के समय 10-12 टन अच्छी सड़ी गोबर की खाद प्रति एकड़ दर से मिलानी चाहिए. नत्रजन की एक तिहाई तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय दें. नत्रजन की शेष मात्रा को दो समान भागों में बांट कर बुवाई के 25 से 30 तथा 45 से 50 दिनों के बाद खड़ी फसल में छिटक कर देनी चाहिए.
तोरई की बीज दर एवं बीजोपचार (Seed rate and seed treatment of Ridge gourd)
1 से 1.5 किलो बीज पर्याप्त होता है. बुवाई से पूर्व बीजों को कैप्टान या थाइरम या कार्बेण्डजीम नामक फफूंदनाशी दवा से उपचारित करें.
तोरई की बुवाई का समय (Sowing time of Ridge gourd)
तोरई की फसल को ग्रीष्म व वर्षा दोनों सीजन में उगाया जा सकता है. ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए 15 फरवरी से 15 जुलाई तक बुवाई करनी चाहिए. फरवरी में तापमान कम रहने से अंकुरण देरी से होता है. अतः जल्दी अंकुरण के लिए बोने से पहले बीजों को 20-24 घंटे तक पानी में भिगोना चाहिए. इसके बाद टाट की बोरी के टुकडे़ में लपेट कर किसी गर्म जगह पर रखना चाहिए.
तोरई की फसल लगाने का तरीका (Sowing method of Ridge gourd)
तोरई की खेती मुख्यत नाली विधि से करते हैं. नाली के बीच 2-2.5 मी.तथा थाले से थाले के मध्य 80 सेमी दूरी रखनी चाहिए. नालियां 50 सेमी चौड़ी व 30-40 सेमी गहरी होनी चाहिए. बूँद-बूँद सिंचाई की व्यवस्था होने पर खेत में लेटरल को सीधी कतार में बिछाकर बीजों को ड्रिपर्स के पास बोते है.
तोरई की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Water management of Ridge gourd)
अंकुरण के बाद सप्ताह में एक बार सिंचाई अवश्य करें. गर्मी में औसतन 2-3 दिन पर सिंचाई की आवश्यकता होती है. वर्षा ऋतु की फसल में कोई सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती.
तोरई में निराई –गुड़ाई (Hoeing and Weeding of Ridge gourd)
बीज की बुवाई के 48 घंटे के अंदर पेन्डीमेथालिन की 700 मिली लीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए. यह फसल अधिक निराई की फसल है. इसके लिए समय समय पर निराई करनी चाहिए.
तोरई की कटाई एवं उपज (Harvesting and Yield of Ridge gourd)
बुवाई के समय से लेकर 45-60 दिन में तोरई कटाई के लिए तैयार हो जाती है. तोरई फल को चाकू की सहायता से काटना चाहिए. औसत उपज 32 से 48 क्विंटल प्रति एकड़ 135 से 145 दिन तक की अवधि वाली किस्मों से प्राप्त होती है.