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Updated on: 12 October, 2021 4:22 PM IST
Garlic Farming

लहसुन पर्वतीय क्षेत्रों में मुख्यतः रबी मौसम की एक प्रमुख नगदी फसल है. लहसुन को प्राय: सभी सब्जियों में पकाते समय प्रयोग किया जाता है, विगत दो दशकों में इस की बढ़ती मांग को देखते हुए हिमाचल प्रदेश तथा अन्य पर्वतीय क्षेत्रों जैसे- उत्तराखंड, जम्मू व कश्मीर इत्यादि में इस फसल की पैदावार में कई गुना वृद्धि देखी गई है.

लहसुन का उपयोग

लहसुन का उपयोग अचार, चटनी, केचप व सब्जी बनाने आदि में होता है. इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व फॉस्फोरस प्रचुर मात्रा में होता है. लहसुन में गंधक युक्त यौगिक एलाएल प्रोपाइल डाईसल्फाइड तथा एलिन नामक अमीनो अम्ल पाये जाते हैं. सामान्य दशा में एलिन रंगहीन, गंधहीन और जल में घुलनशील होता हैं, परन्तु जब लहसुन काटा, छीला या कुचला जाता है, तो इसमें उपस्थित एलिनेज एन्जाइम सक्रिय हो जाते हैं और एलिन को एलिसिन में बदल देते हैं. इसी परिवर्तन के कारण इसमें से विशिष्ट तेज गंध आने लगती है.

लहसुन की बिजनेस से फायदा

जीवाणुओं के विरूद्ध सक्रियता भी इसी एलिसिन नामक पदार्थ के कारण होती है. लहसुन के प्रसंस्करण के लिए लघु उद्योग स्थापित कर रोजगार को उत्पन्न किया जा सकता हैं. हमारे देश में उत्पादित गुणवक्ता वाले लहसुन की अन्य देशों में बहुत मांग है. इसलिए इससे निर्यात कर इससे विदेशी मुद्रा भी प्राप्त की जाती है.

भूमि का चयन

लहसुन की खेती को सभी प्रकार की मिट्टी में किया जा सकता है, परंतु उचित जल प्रबंधन वाली दोमट भूमि उपयुक्त होती है, जिसका पीएच मान 5.5 से 7.5 के बीच में होना चाहिए. भारी मिट्टी में लहसुन के कन्द विकृत हो जाते हैं. चूंकि लहसुन उथली जड़ वाला पौधा है अत: गहरी जुताई की अवश्यकता नहीं होती है. कन्दो के उचित विकास हेतु मिट्टी भुरभुरी और ढेले रहित होनी चाहिए. 

लहसुन की उन्नत किस्में:

साधारणतय: बढ़िया खुशबू के लिए लहसुन की स्थानीय किस्में ही प्रदेश में उगाई जाती हैं, परंतु इनकी उपज कम होने के साथ साथ टिकाऊ क्षमता भी बहुत कम होती है. अच्छी गन्ध तथा अधिक उपज वाली लहसुन की कुछ उन्नत किस्में (Improved Varieties of Garlic) इस प्रकार हैं:-

एग्रीफाऊंड पार्वती

इसकी गांठें बड़े आकार की जिनमें 10-16 फाँके प्रति गांठ होती हैं, पर्वतीय क्षेत्रों में उगाने के लिए अति उपयुक्त है. औसत उपज 200-225 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है .

एग्रीफाऊंड पार्वती-2

इसकी गांठें बड़े आकार 5.0 से 6.0 से॰मी॰ व्यास की जिनमें 12-14 फाँके प्रति गांठ होती हैं, पर्वतीय क्षेत्रों में उगाने के लिए अति उपयुक्त है. औसत उपज 230-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

लार्ज सेगमेंटेड

प्रत्येक गांठ में 2-5 बड़ी फाँकें, कम सुगंधित किन्तु अधिक उपज देने वाली किस्म. औसत उपज 190-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

सोलन सेलेकसन

प्रति फांक 12-15 छोटी आकार की गांठें, औसत उपज 150-190 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

जी॰एच॰सी॰-1

यह अधिक पैदावार एवं सुगंध वाली किस्म है. इसकी फाँकें बड़े आकार की तथा छिलने में आसान होती है. औसत उपज 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

बीज की मात्रा

लहसुन की प्रति हेक्टेयर बीजाई के लिए 5 से 6 क्विंटल फाँकों की आवश्यकता होती है .

रोपाई का समय:

यह ठंडी जलवायु की फसल है,  साथ ही पाले के लिए सहनशील भी है. इसके विकास के लिए आवश्यक है कि न तो बहुत अधिक सर्दी हो और न ही बहुत अधिक गर्मी. इसके उचित वृद्धि व विकास के लिए 13० से 24०C तापमान उपयुक्त है. इससे अधिक तापमान होने पर इसकी गांठो का निर्माण अवरुद्ध हो जाता है. लहसुन की बुवाई निचले क्षेत्रों में अक्टूबर से नवम्बर तथा मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में सितंबर से अक्टूबर माह में की जाती है. लहसुन की अगेती बुवाई करने पर कली सड़न की समस्या अधिक होती है.

रोपण तकनीक:

लहसुन के रोपण के लिए कलियों का चयन महत्वपूर्ण होता है. कली के छिलके को हटा देना चाहिए, परंतु सावधानी रखें की कली के निचले भाग को नुकसान नहीं पहुंचे. रोपण के लिए बड़े आकार की कलियों (15 ग्राम से अधिक) का ही चयन करना चाहिए. रोपण से पूर्व कलियों को कार्बेन्डाजिम 1.0 ग्राम व मैंकोजेब 2.5 ग्राम/लीटर में आधे घंटे तक डूबा कर छाया में सूखा लेना चाहिए. बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 7 से 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए.

खाद एवं उर्वरक:

खाद एवं उर्वरक की मात्रा मिटटी परीक्षण कराने के पश्चात आवश्यकतानुसार देनी चाहिए. सामान्यतः खेती की तैयारी के समय 25 से 30 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टर की दर से भूमि में मिलाकर जुताई करना चाहिए. कलियां लगाने से पहले 50 से 70 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस, 100 किलोग्राम पोटाश की दर से बुवाई से पूर्व आवश्यकता होती है. बुवाई के एक महीने बाद 50 किलोग्राम नाइट्रोजन खड़ी फसल में देना लाभकारी होता है. लहसुन की बुवाई के 55 से 60 दिन के बाद किसी भी प्रकार के रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

सिंचाई प्रबंधन

भूमि में नमी की कमी हो तो कलियों की बुवाई के बाद एक हल्की सिंचाई करते हैं. इसके पश्चात वानस्पतिक वृद्धि व कंद बनते समय 7 से 8 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई व फसल के पकने की अवस्था पर 12 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें.

खरपतवार नियंत्रण:

लहसुन की खेती से अच्छी पैदावार के लिए 3 से 4 गुड़ाई अवश्य करें, जिससे की कंद को हवा मिले और नई जड़ों का विकास हो सके. एक माह बाद सिंचाई के तुरन्त बाद डण्ड़े या रस्सी से पौधो को हिलाने से कंद का विकास अच्छा होता है. खरपतवार रोकथाम हेतु पेंडीमेथिलीन 3.0 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 1 से 3 दिन के अन्दर प्रयोग कर सकते है या ऑक्सीडायजन 1.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अंकुरण से पूर्व प्रयोग करने से खरपतवार नियंत्रण अच्छा होता है और उपज भी अच्छी प्राप्त होती है.

वृद्धि नियामक (ग्रोथ हारमोन) का प्रयोग:

लहसुन की पैदावार में वृद्धि हेतु 0.05 मिलीलीटर प्लेनोफिक्स या 500 मिलीग्राम साईकोसेल या 0.05 मिलीलीटर इथेफान प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के 60 से 90 दिन पश्चात छिड़काव करना उचित रहता है. कंद की खुदाई से दो सप्ताह पहले 3 ग्राम मैलिक हाइड्राजाइड प्रति लीटर पानी में छिड़काव करने से भण्डारण के समय अंकुरण नहीं होता है और कंद 10 माह तक सुरक्षित रखे जा सकते हैं.

रोग व कीट नियंत्रण:

स्टेम फाइलम धब्बा रोग:

जामुनी रंग के लंबे चकत्ते पत्तों पर दिखाई देते हैं. बाद में पत्ते झुलसने आरंभ हो जाते हैं. इस रोग के नियंत्रण के लिए मेंकोजेब (25 ग्राम प्रति 10 लिटर पानी) और कार्बेन्डाजिम (10 ग्राम प्रति 10 लिटर पानी) का छिड़काव करें. अथवा डाईफेनकोनाजोल (25 मी॰ली॰ प्रति 10 लिटर पानी) का 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.

डाउनी मिल्ड्यू:

प्रभावित पत्ते पीले पड़ जाते हैं तथा बाद में झुलस कर सूख जाते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए रिडोमिल MZ दवाई (25 ग्राम प्रति 10 लिटर पानी) के घोल का 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.

थ्रिप्स (तैला):

यह कीट पत्तों का रस चूसकर फसल को बहुत हानि पहुँचते हैं. पत्तों पर सफ़ेद धब्बे पड़ते हैं और पत्ते सूख जाते हैं. इस के नियंत्रण के लिए जैसे ही कीट नज़र आए मैलथिओन (20 मी॰ली॰ प्रति 10 लिटर पानी) या डाईमेथोएट (10 मी॰ली॰ प्रति 10 लिटर पानी) घोल का छिड़काव करें.

फसल खुदाई के पश्चात नुकसान को कम करना:

ऊपर की पत्तियां पीली या भूरी पड़ने और मुख्य तना मुड जाने पर लहसुन परिपक्व माना जाता है. इस प्रकार साधारणतय: जलवायु व क्षेत्र के अनुसार लहसुन के कंद को पकने में 6 से 7 माह का समय लगता है. खुदाई के पश्चात कंद को साफ करके उपर की पत्तियों से बांधते हैं एवं 3 से 4 दिन के लिए किसी छायादार स्थान पर रखते हैं. जिससे की खेत की गर्मी कंद से निकल सकें. इसके बाद ठण्डे कमरे में लहसुन को रखते है. पूरी तरह सूख जाने के बाद पत्तों को कंद से दो इंच ऊपर काट दें.

पैदावार

उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से लहसुन की खेती करने पर उन्नत किस्मों से 125 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है.

लेखक: डॉ. विशाल डोगरा
प्रधान वैज्ञानिक, प्रसार शिक्षा निदेशालय, चौ॰स॰कु॰ हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर 176062 जिला कांगड़ा (हि॰प्र॰)

English Summary: Earn more profit from garlic cultivation by adopting scientific techniques!
Published on: 12 October 2021, 05:12 PM IST

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