काजू को ड्राई फ्रूट्स का राजा कहा जाता है. इसकी खेती भारत के अलावा दुनिया के कई देशों में होती है. इसका वैज्ञानिक नाम एनाकार्डियम ऑक्सीडेंटले (Anacardium occidentale) है और यह ब्राजील देश की मुख्य फसल है. भारत में चाय, रबड़ और अन्य वाणिज्यिक फसलों की तरह इसे पुर्तगाली लोग लेकर आए थे. सबसे पहले इसकी खेती भारत में शुरू हुई थी. वहां इसकी फसल वन संरक्षण के लिए शुरू की गई थी. तो आइये जानते हैं काजू की खेती कैसे करें-
काजू की खेती के लिए जलवायु (Climate for Cashew Cultivation):
काजू की खेती के लिए ऐसा मौसम अनुकूल है जहां ठंड के दिनों में तापमान 10 डिग्री सेंटीग्रेड से कम न हो और गर्मी के दिनों में 32 से 36 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच हो. इसकी खेती के लिए आदर्श तापमान 20 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच होना चाहिए.
काजू की खेती के लिए मिट्टी (Soil for Cashew Cultivation):
इसकी खेती हर तरह की मिट्टी जैसे बलुई या लेटराइट हो में आसानी से की जा सकती है. इसका पौधा बंजर और कम उर्वरक भूमि में भी आसानी से पनप जाता है. इसकी अच्छी पैदावार के लिए बलुई दुम्मरट और तटीय रेती मिट्टी उत्तम मानी जाती है. बहुत भारी चिकनी मिट्टी काजू की खेती के लिए अनुपयुक्त है. ऐसी मिट्टी में इसकी खेती नहीं की जा सकती है. वहीं काजू की खेती के ठंडा मौसम भी अनुकूल नहीं होता है. जिस मिट्टी का पीएच मान 5 से 6.5 तक हो, ऐसी मिट्टी काजू की खेती के लिए उत्तम मानी जाती है.
काजू की प्रमुख किस्में (Major Cashew Varieties):
काजू की प्रमुख किस्में - वृर्धाचलम-1,वृर्धाचलम-2,वेनगुर्ला- 1, M-वेनगुर्ला- 2, वेनगुर्ला-3, वेनगुर्ला-4, वेनगुर्ला-5, चिंतामणि-1, एनआरसीसी-1, एनआरसीसी-2, उलाल-1, उलाल-2, उलाल-3, उलाल-4, यूएन-50, वृद्धाचलम-3, वीआआई(CW) H1 , बीपीपी-1, अक्षय(H-7-6),अमृता(H-1597), अन्घा(H-8-1), अनाक्कयाम-1 (BLA-139), धना(H-1608), धाराश्री(H-3-17), बीपीपी-2, बीपीपी-3, बीपीपीपी-4 आदि हैं.
काजू की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for Cashew Cultivation):
काजू की खेती के लिए सबसे पहले खेत की अच्छे से जुताई कर लेना चाहिए. वहीं खेत से विभिन्न प्रकार के खरपतवार हटा देना चाहिए. अब 45 सेंटीमीटर ऊँचे, 45 सेंटीमीटर लंबाई और 45 सेंटीमीटर गहराई के गड्डे की खुदाई करें. इन गड्डों को गोबर खाद, नीम केक और मिट्टी के मिश्रण से भरें. बता दें कि पौधों को 5X4 मीटर की दूरी पर लगाएं. एक हेक्टेयर में तकरीबन 200 पौधों की आवश्यकता होती है.
काजू खेती के लिए सिंचाई के तरीके (Methods of irrigation for Cashew Farming):
वैसे तो काजू की खेती बारिश आधारित फसल मानी जाती है लेकिन अच्छी पैदावार के लिए समय-समय पर सिंचाई करना चाहिए. पौधे लगाने के दो साल तक पौधों की अच्छी ग्रोथ के लिए सिंचाई की जरूरत पड़ती है. वहीं पेड़ों पर फल आने के बाद उन्हें गिरने से रोकने के लिए सिंचाई की जरूरत पड़ती है.
काजू की खेती के लिए कटाई-छंटाई (Harvesting Pruning for Cashew Cultivation):
पेड़ों के अच्छे विकास के लिए समय-समय पर कटाई-छंटाई बेहद जरुरी है. शुरुआत में पौधों को एक मीटर विकसित होने के लिए उसकी नीचे की शाखाओं और टहनियों को हटा देना चाहिए. वहीं बाद में पेड़ की सुखी और मृत शाखाओं को हटाते रहना चाहिए.
काजू खेती के लिए खरपतवार नियंत्रण (Weed Control for Cashew Cultivation):
काजू के बागानों में अक्सर जंगली घास-फूस फैलने पर उन्हें निकाल देना चाहिए. इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि पौधों को उर्वरक देने के पूर्व ही खरपतवारों की छंटाई कर देना चाहिए. मानसून के मौसम के बाद ही खरपतवारों को खेत निकालना चाहिए.
काजू उत्पादन की मात्रा (Cashew Production Volume):
काजू के पेड़ सामान्यता 13 से 14 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ते हैं. वहीं इसके बौने पौधे 6 मीटर लम्बे होते हैं. 6 से 7 वर्ष बाद इसके प्रत्येक पेड़ से 8 से 10 किलो काजू का उत्पादन होता है. वहीं हायब्रिड किस्मों से ज्यादा पैदावार की संभावना होती है. काजू थोक भाव में 80 से 120 रुपये किलो आसानी से बिक जाती है. इस तरह एक पेड़ से ही 800 से 1200 रुपये की आमदानी होती है.
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नाम : काजू और कोको विकास निदेशालय
पता: 8वीं एवं 9वीं तल, केराभवन
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2) रवींद्रकुमार, उपनिदेशक (विकास)
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