किसान भाई जिमीकंद या सूरन की खेती एक औषधीय फसल के रूप में करते है. हमारे घरों में सब्जी के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है. देशभर में व्यावसायिक उत्पादन के लिए इसको अपनाया जा रहा है. इसमें कार्बोहाइड्रेट, खनिज, कैल्शियम, फॉस्फोरस समेत कई तत्व पाए जाते है. इसका उपयोग बवासीर, पेचिश, दमा, फेफड़ों की सूजन, उबकाई और पेट दर्द जैसी बीमारियों में भी किया जाता है. साथ ही आयुर्वेदिक दवाओं में उपयोग किया जाता हैं. इसके पौधों पर लगने वाले फल जमीन के अंदर ही कंद के रूप में विकास करते हैं. बता दें कि इसको खाने से गले में खुजली हो सकती है, लेकिन आज के दौर में इसकी प्रतिरोधी कई नई किस्मों का निर्माण किया गया है. जिसको खाने से खुजली नहीं होती है. आज हम अपने इस लेख में जिमीकंद की उन्नत खेती के बारे में जानकारी देने वाले है, तो इस लेख को अंत तक जरुर पढ़े.
उपयुक्त जलवायु
इसकी खेती करने के लिए नमगरम और ठंडे सूखे दोनों मौसमों की आवश्यकता होती है. ऐसे में इसके पौधों व कंदों का विकास अच्छी तरह होता है. तो वहीं बुवाई के वक्त बीजों को अंकुरण के लिए ऊंचे तापमान की जरूरत पड़ती है. पौधों की बढ़वार के वक्त अच्छी बारिश होना जरूरी है.
उपयुक्त मिट्टी
इसकी खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है, क्योंकि इस में कंदों की बढ़ोतरी तेजी से हो जाती है. तो वहीं खेत में जलनिकास का प्रबंधन अच्छा होना चाहिए. ध्यान रहे कि इसकी फसल चिकनी और रेतीली जमीन में न करें. इससे कंदों का विकास रुक जाता है.
खेत की तैयारी
इसकी खेती करते वक्त मिट्टी का भुरभुरा और नर्म होनी चाहिए. जिससे फल का विकास अच्छी तरह हो सके. सबसे पहले खेत की गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हलों से करनी चाहिए. इसके बाद कुछ दिनों तक खेत को खुला छोड़ दें, ताकि खेत को अच्छे से तेज़ मिल सके. अब पुरानी गोबर की खाद को मिट्टी में मिला दें. इसके बाद खेत की दो से तीन तिरछी जुताई करें. अब खेत में पानी चलाकर उसका पलेव कर दें. जब खेत की मिट्टी ऊपर से हल्की सूख जाए, तो फिर से कल्टीवेटर के माध्यम से एक बार जुताई कर देनी चाहिए. साथ ही रासायनिक खाद को उचित मात्रा में छिड़क दें और रोटावेटर चलाये, ताकि वह मिट्टी में आसानी से मिल जाए. इसके बाद खेत में नाली बनाकर रोपाई के लिए खेत को तैयार कर लें.
उन्नत किस्में
जिमीकंद, सूरन या ओल की कई उन्नत किस्में होती हैं. जिनको गुणवत्ता, पैदावार और मौसम के आधार पर तैयार किया जाता है. आपको कौन-सी किस्म का चयन करना है. ये अपने क्षेत्र और जलवायु के आधार पर तय कर लें.
बीजों की रोपाई
आपको बता दें कि जिमीकंद के बीज उसके फलों से ही बनते हैं. इसलिए खेत में पके हुए फल को कई भागों में काटकर लगाया जाता है. इससे पहले बीजों को स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या इमीसान की उचित मात्रा के घोल में आधा घंटे तक डुबोकर रख दें. ध्यान रहे कि फल से बीजों को तैयार करते समय बीजों का वजन करीब 250 से 500 ग्राम हो. हर कटे हुए बीज में कम से कम दो आंखे होनी चाहिए. जिससे पौधे का अंकुरण ठीक हो सके. बीज रोपाई के लिए नालियों या गड्डों को तैयार कर लेना चाहिए. इन नालियों के बीच करीब दो से ढाई फिट की दूरी हो. बीज को आपस में दो फिट की दूरी पर ही उगाना चाहिए. इसके बाद मिट्टी से ढक दें.
पौधों की सिंचाई
इसके खेत में सिंचाई ज्यादा करनी पड़ती है, क्योंकि पौधों को पानी की ज्यादा जरुरत होती है, ताकि इसके कंदों का विकास अच्छे से हो जाए. इसके बीज को खेत में लगाने के बाद अंकुरित होने तक खेत में नमी बनाए रखे. तो वहीं खेत में सप्ताह में दो से तीन बार सिंचाई कर दें. बता दें कि गर्मियों के मौसम में पौधों को चार से पांच दिन के अंतराल में पानी दें. अगर बारिश का मौसम है, तो खेत में पानी जरूरत नहीं पड़ती है. सर्दियों का मौसम है, पौधों को करीब 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए.
कंदों की खुदाई
इसके पौधों बीज रोपाई के करीब 6 से 8 महीने बाद पक जाते हैं. जिसके बाद पौधों के नीचे की पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं. ऐसे में फलों की खुदाई कर देनी चाहिए. इसके बाद उन्हें साफ़ पानी से धो लें और छायादार स्थान पर सूखाकर रख दें. अब किसी हवादार बोरो में उन्हें भरकर बाज़ार में भेज देना चाहिए.
पैदावार
फसल की अच्छी पैदावार उसकी देखरेख और किस्मों पर निर्भर करती है. अगर बीजों की बोआई करीब 500 ग्राम की गई है, तो इससे प्रति हेक्टेयर करीब 400 क्विंटल की पैदावार हो सकती है. जिसको करीब 20 से 40 रुपए प्रति किलोग्राम में आसानी से बेचा जा सकती है.
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