आधुनिक समय में खेती की कई नई तकनीक विकसित हो चुकी हैं. ऐसी ही एक तकनीक SRI (System of Rice Intensification) विधि है, जो एक ऐसी वैज्ञानिक विधि है, जिसके द्वारा खेती की पैदावार कम लागत में कई गुणा बढ़ा सकते हैं.
इसकी खास बात यह है कि बीज भी बहुत कम इस्तेमाल होते है, लेकिन बीज बुवाई की विधि पारंपरिक प्रक्रिया से थोड़ी अलग होती है.
दरअसल, चावल की पैदावार बढ़ाने के लिए साल 1983 में फ्रेंट फादर हेनरी ने मेडागास्कर में काफी सालों तक एक तकनीक पर काम किया. मगर अगले 10 से 20 सालों तक इसका प्रचार प्रसार हो नहीं हो पाया, लेकिन साल 1990 से 2005 के बीच मेडागास्कर से अलग-अलग जगहों पर इसका प्रचार किया. इसके साथ ही नॉर्मन उपहॉफ कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ फूड एग्रीकल्चर और डेवलपमेंट के डायरेक्टर ने अहम भूमिका निभाई थी.
SRI विधि के इस्तेमाल से बढ़ी पैदावार (Increased yield using SRI method)
बताया जाता है कि साल 1997 में मेलाग्से के किसानों ने SRI विधि का इस्तेमाल किया. इससे फसल की पैदावार 2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुई. इसके बाद नॉर्मन उपहॉफ ने SRI विधि की गुणवत्ता का प्रचार प्रसार एशिया में करना शुरू कर दिया. अब कॉर्नेल यूनिवर्सिटी का SRI-RICE, SRI विधि के प्रचार प्रसार में अहम भूमिका निभा रहे हैं. इस विधि का इस्तेमाल चावल के साथ-साथ चना, दाल और गेहूं जैसी फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए कर सकते हैं.
बिहार में साल 2012 से SRI विधि का इस्तेमाल (SRI method used in Bihar since 2012)
राज्य के किसान चावल ही नहीं, बल्कि गेहूं और अन्य फसलों की पैदावार को बढ़ावा देने के लिए SRI विधि का इस्तेमाल कर रहे हैं. यहां किसानों के लिए ट्रेनिंग और अन्य सुविधाएं दी जाती हैं. बता दें कि इस विधि में बीज बुवाई के लिए ट्रेंड मजदूरों की जरूरत पड़ती है. बिहार में एक लोकप्रिय नारा भी है “पंक्ति में शक्ति” के सहारे इसको प्रचारित साल 2012 में किया गया था.
SRI विधि क्यों देती है ज्यादा पैदावार? (Why does the SRI method give higher yields?)
“पंक्ति में शक्ति” का मतलब यह है कि 2 पौधों के बीच एक दूरी जिससे हवा का समुचित वेंटीलेशन हो सके. इस तरह किसी भी विषैले जिवाणु या कीटाणु को पनपने का अवसर बहुत कम हो जाता है. इतना ही नहीं, 2 पौधे और 2 पंक्तियों में बची जगह की वजह से पौधे को सूर्य की रोशनी और हवा उचित मात्रा में मिलती है. SRI विधि में ट्रीटेड सीड्स की जरूरत होती है, साथ ही इसकी रोपाई के लिए ट्रेंड मजदूर की जरूरत होती है. अगर देखा जाए, तो इसमें इंसेक्टिसाइड और पेस्टिसाइड का इस्तेमाला काफी कम होता है. इसके अलावा वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल बढ़ जाता है. ऐसे में SRI विधि ऑर्गेनिक फॉर्मिंग को बढ़ावा देने का एक बेहतर जरिया है.
अलग तरीके से होता है बीज रोपण (Seed planting is done differently)
नर्सरी में बीज को 8 से 10 दिनों के लिए लगाया जाता है. जब उसमें लगभग 2 पत्तियां उग आती हैं, तब उसे बहुत ही सावधानी के साथ खेतों में रोपा जाता है. धान की खेती के लिए 2 पौधों के बीच 25 सेंटी मीटर की दूरी होनी चाहिए.
इसके साथ ही गेहूं की खेती के लिए 2 पौधों के बीच 20 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए. SRI विधि में खाद का इस्तेमाल पारंपरिक खेती की तुलना में आधा होता है. इसके अलावा बीज का इस्तेमाल 40 से 50 किलोग्राम से घटकर 2 किलोग्राम तक पहुंच जाता है. इससे फसल की पैदावार में 40 से 50 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो जाती है.