प्याज और लहसुन की फसल में लगने वाली एक आम बीमारी है थ्रिप्स रोग. जो बार-बार हो जाती है और किसानों को आर्थिक रूप से काफी नुकसान पहुंचाती है. सामान्यतः यह रोग थ्रिप्स नामक कीट से होता है, जो काफी महीन और सूक्ष्म होता है. इस वजह से यह सामान्यतः नग्न आंखों से नहीं दिखाई देता है. हालांकि कभी-कभी इस कीट को नग्न आंखों से देखा जा सकता है. तो आइए जानते हैं इस रोग और बचाव के बारे में-
नर और मादा
प्याज और लहसुन की फसल में नर थ्रिप्स और मादा थ्रिप्स दोनों नुकसान पहुंचाते हैं. इसका नर कीट हल्के भूरे या फिर काले रंग का होता है. जबकि मादा हल्के पीले रंग की होती है. यह प्याज और लहसुन के नाजुक हिस्से पर प्रहार करता है. इस कीट के प्रभाव से पौधा छोटा रह जाता है और ठीक तरह से ग्रोथ नहीं कर पाता है. किसानों का कहना होता है कि उनके पौधे में जलेबी बनने की समस्या आ गई है. यह समस्या इसी कीट के कारण होती है.
कैसे पहुंचाता है नुकसान
ये कीड़ा प्याज या लहसुन की पत्तियों को सबसे पहले अपने मुंह से खरेचता है. इस नाजुक भाग को खुरचने के बाद ये उसके रस को चुसने का काम करता है. इस तरह स्क्रैच और लैपिंग करके ये पौधे को नुकसान पहुंचाता है. जिससे पौधे का रस बाहर आने लगता और पौधा धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगता है. पौधे के उपर से टिप बर्निंग की शिकायत आने लगती है. दरअसल, पौधे की पत्तियों को पूरा रस निकल जाता है और वह पीला पड़ने लगता है. इस तरह पौधा धीरे-धीरे सुखने लगता है. जब यह समस्या अधिक बढ़ जाती है तो जलेबी जैसी शिकायत आने लगती है. यानि कि पत्तियां जलेबी का आकार लेने लगती है.
कैसे करें निदान
यह कीड़ा प्याज, लहसुन के अलावा मिर्च और टमाटर की फसलों में भी लग जाता है. इस कीट से फसल को बचाना कई बार मुश्किल हो जाता है क्योंकि यह कीट बार-बार आता है. इसलिए किसानों को नियमित अंतराल पर दवाईयों का इस्तेमाल करना चाहिए. ताकि इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकें.
रोकथाम के उपाय
इस कीट से रोकथाम के लिए लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 2.5प्रतिशत ई.सी. का उपयोग करना चाहिए. एक एकड़ में यह दवाई 400 एमएल लगती है. यदि लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 5 प्रतिशत ई.सी. का इस्तेमाल कर रहे हैं तो एक एकड़ में 250 एमएल का उपयोग करें. वहीं एक एकड़ के लिए लैम्ब्डा साइहेलाथ्रिन 4.9 प्रतिशत सीएस महज 200 एमएल ही लगती है. इसी तरह प्रारंभिक अवस्था में एसीफेट 75 प्रतिशत एसपी का इस्तेमाल आप कर सकते हैं. 300 से 400 ग्राम प्रति एकड़ इसका प्रयोग किया जाता है. एक संयुक्त दवाई एसीफेट 50 प्रतिशत और इमिडाक्लोप्रिड प्रति एकड़ 300 ग्राम इस्तेमाल कर सकते हैं. फिप्रोनिल 5 प्रतिशत ई.सी. प्रति एकड़ 300 से 400 एमएल कर सकते हैं. फिप्रोनिल 40 प्रतिशत और इमिडा क्लोप्रिड 40 प्रतिशत को संयुक्त रूप से प्रति एकड़ के लिए 40 ग्राम उपयोग कर सकते हैं. ध्यान रहे कोई भी दवाई एक दो बार ज्यादा बार इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.