पत्ता गोभी एक हरा/बैंगनी रंग का पौधा है, जिसे पूरे साल उगाया जा सकता है. लेकिन भारत में पत्ता गोभी को मुख्य तौर पर सर्दियों में मैदानी इलाकों में उगाया जाता है. पत्ता गोभी विटामिन ए व सी का बढ़िया स्रोत होता है. साथ ही इसमें फास्फोरस, पोटैशियम, कैल्शियम, सोडियम और आयरन जैसे खनिज भी होते हैं. पत्ता गोभी को सब्जी के तौर पर खाया जाता है और लोग इसका कच्चे सलाद के तौर पर भी सेवन करते हैं.
पत्ता गोभी की खेती के लिए भूमि
पत्ता गोभी को वैसे तो हर प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है,लेकिन अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी जिसमें नमी धारण करने की अच्छी क्षमता हो, वहां पर पत्ता गोभी का उत्पादन बहुत अच्छा होता है. पत्ता गोभी के लिए मिट्टी का पीएच 5.5 से 6.5 के बीच होना जरूरी है.
पत्ता गोभी की उन्नत किस्में
गोल्डन एकर, पूसा मुक्ता, पूसा ड्रमहेड, के-1, प्राइड ऑफ इंडिया, कोपन हेगन, गंगा, पूसा सिंथेटिक, श्रीगणेश गोल, हरियाना, कावेरी, बजरंग,मिड सीजन मार्केट, सितंबर अर्ली, अर्ली ड्रम हेड, लेट लार्ज ड्रम हेड, K1 आदि पत्ता गोभी की लोकप्रिय किस्में हैं.
पत्ता गोभी के लिए भूमि की तैयारी
पत्ता गोभी के लिए सबसे पहले खेत की जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए. इसके बाद 3 से 4 बार खेत में जुताई कर मिट्टी को समतल बना लेना चाहिए. अब सड़ा हुआ गाय का गोबर खेत में डाल लें. इसके बाद एक और जुताई करनी चाहिए, ताकि मिट्टी में गोबर अच्छे से मिल जाए.
पत्ता गोभी का बुवाई का समय
वैसे तो पत्ता गोभी साल भर उगाई जा सकती है, मगर सितंबर से अक्टूबर के बीच मैदानी क्षेत्रों में पत्ता गोभी की बुवाई का समय उपयुक्त होता है.
इसके खेती के लिए 200-250 ग्राम बीज प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें. पत्ता गोभी के अगेती फसल के बीज को 45 x 45 सेमी की दूरी पर बोएं, जबकि देर से पकने वाली फसल को 60 x 45 सेमी की दूरी पर बोएं. बीजों को 1-2 सेंटीमीटर की गहराई पर रोपित करें.
बोने की विधि
पत्ता गोभी की बुवाई के लिए रोपाई विधि और डिब्लिंग विधि का उपयोग किया जा सकता है. पत्ता गोभी के लिए नर्सरी में बीजों का छिड़काव करें, जिसके 25 से 30 दिनों के भीतर पौधा रोपाई के लिए तैयार हो जाता है.
पत्ता गोभी के लिए खाद
पत्ता गोभी के उन्नत उत्पादन के लिए गाय की सड़ी हुए गोबर की खाद को 40 टन प्रति एकड़ के साथ 50 किलो नाइट्रोजन, 25 किलो पोटाश व फास्फोरस, 110 किलो यूरिया, 40 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश और 155 किलो सिंगल सुपरफॉस्फेट को मिलाकर आधी मात्रा रोपाई से पहले डालें. रोपाई के 1 महीने बाद बची हुए मिश्रित खाद की मात्रा का टाप ड्रेसिंग के रूप में छिड़काव कर दें.
पत्ता गोभी की खेती में खरपतवार नियंत्रण
पत्ता गोभी की रोपाई से चार दिन पहले 1 लीटर पेंडीमेथालिन प्रति एकड़ डालें और खरपतवार के बाद निराई गुड़ाई कर लें.
पत्ता गोभी की फसल में सिंचाई
रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए. सर्द मौसम में 10 से 15 दिनों के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए.
पत्ता गोभी में पौध संरक्षण
पत्ता गोभी में कीट लगना किसानों की सबसे बड़ी समस्या है, जिसके लिए पहले से ही किसानों को इसकी देखभाल कर लेनी चाहिए. माना जाता है कि पत्ता गोभी पर लगने वाला कीड़ा दिमाग में अटैक करता है, जो कि स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है.
कटवर्म
पत्ता गोभी में लगने वाला एक आम कीड़ा है. रोकथाम के उपाय के रूप में बुवाई से पहले 5% डस्ट मिथाइल पैराथियान या मैलाथियान को 10 किलो प्रति एकड़ मिट्टी में डालें.
पत्ती खाने वाला कीड़ा
यह पत्तियों को खाने वाला कीड़ा है. यदि खेत में पत्ती खाने वाली सूंडियों का हमला दिखे तो 200 मि.ली. डाइक्लोरवोस को 150 लीटर पानी में मिलाकर या 48% एस.सी. 0.5 मि.ली. फ्लुबेंडायमाइड को 3 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें.
डायमंड बैक मोथ
डायमंड बैक मोथ पत्तागोभी में लगने वाला एक गंभीर कीड़ा है. ये सतही पत्तियों के नीचे अंडे देता है. शरीर पर बालों के साथ हरे रंग का यह लार्वा पत्तियों को खाता है और छेद बनाता है.
शुरुआती अवस्था में नीम के बीज की गुठली के अर्क के 40 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. इस छिड़काव को 10-15 दिनों के अन्तराल पर दोहराएं. इस प्रकार से आप पत्ता गोभी के 80 से 90 फीसदी नुकसान से बच सकते हैं.
रस चूसक कीट
यह कीड़े गोभी की पत्तियों से रस चूसते हैं जिसके परिणामस्वरूप पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं. थ्रिप्स के कारण पत्तियां मुड़ जाती हैं, पत्तियां कप के आकार की हो जाती हैं या ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं. इसके लिए 17.8 एसएल 60 मि.ली. इमिडाक्लोप्रिड को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें.
पत्ता गोभी की कटाई
पत्ता गोभी बुवाई के औसतन 100 दिनों बाद तैयार हो जाती है. पूर्ण रूप से विकसित होने के बाद बाजार की मांग के हिसाब से कटाई कर सकते हैं. इसे आप चाकू की सहायता से काट सकते हैं. जिसके बाद आकार व वजन के आधार पर छंटाई व ग्रेडिंग की जाती है.