मसालों के रूप में अजवाइन का इस्तेमाल दुनियाभर में किया जाता है. इसका वानस्पतिक नाम (Botanical name) टेकिस्पर्मम एम्मी है, जो धनिया कुल का पौधा माना जाता है. वहीं अंग्रेजी में अजवाइन को बिशप्स वीड (bishops weed) कहते हैं. आमतौर भारतीय घरों में अजवाइन का उपयोग कई प्रकार से किया जाता है. इसकी खेती करके किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. इसमें अनगिनत औषधीय गुण होते हैं, तो आइये जानते हैं अजवाइन में पाए जाने वाले प्रमुख औषधीय गुण और इसकी उन्नत खेती की विधि के बारे में.
अजवाइन में पाए जाने वाले औषधीय गुण (Medicinal properties in carom)
इसमें प्रमुख रूप से प्रोटीन, फास्फोरस, कैल्शियम, आयरन, वसा, कार्बोहाइड्रेट और रेशा पाया जाता है. औषधीय गुणों से भरपूर अजवाइन कई तरह समस्याओं में काम आती है. यह बदहजमी, कफ, ऐंठन समेत अनेक रोगों में कारगर है. वहीं अजवाइन का उपयोग औद्योगिक रूप से दंतमंजन, टूथपेस्ट बनाने वाली कंपनियां भी करती है.
कहां होती है अजवाइन की खेती? (Where is carom seed cultivated)
भारत के अलावा अजवाइन की खेती अमेरिका, ईरान, मिस्र और अफगानिस्तान में प्रमुख रूप से होती है. वहीं भारत में इसकी खेती करने वाले मुख्य प्रान्त बंगाल, पंजाब, बिहार, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु के कुछ भागों में की जाती है. राजस्थान की बात करें तो इसकी खेती मुख्यता झालावाड़ और चित्तोड़गढ़ होती है. हालांकि इसकी खेती राजस्थान के अन्य जिलों में भी अजवाइन की थोड़ी बहुत खेती होती है.
अजवाइन की खेती के लिए जलवायु (Climate for carom farming)
इसकी खेती के लिए सर्द और शुष्क जलवायु उत्तम मानी जाती है. ज्यादा सर्दी इसकी फसल को नुकसान पहुंचा सकती है. पाला पड़ना इसकी फसल के लिए नुकसानदायक है. फूल आने के बाद ज्यादा सर्दी इसके लिए हानिकारक है. यही वजह है कि शुष्क मौसम इसकी फसल के लिए आदर्श है. वहीं इसको पकने के लिए भी अधिक तापमान की जरुरत होती है.
अजवाइन की प्रमुख किस्में (Major varieties of carom)
दूसरी फसलों की तरह अजवाइन की खेती के लिए सही किस्मों का चुनाव बहुत जरुरी होता है. अधिक और गुणवत्तापूर्ण पैदावार तभी ली जा सकती है जब सही किस्म का चयन किया जाए.
1.एन.आर.सी.एस.एस-ए.ए.1 किस्म- यह अजवाइन की देर से पकने वाली उन्नत किस्म है जो 165 दिन में पकती है. इससे प्रति हेक्टेयर 14. 26 क्विंटल की पैदावार ली जा सकती है. इसके पौधे की ऊंचाई लगभग 112 सेंटीमीटर होती है जो सिंचित क्षेत्र के लिए उत्तम है. इसके पौधों पर पुष्प छत्रों की संख्या अधिक (लगभग 219 )होती है.
2. एन.आर.सी.एस.एस-ए.ए.2- ये क़िस्म महज 147 दिन में पक जाती है. अजवाइन की यह जल्दी पकने वाली भारत की पहली किस्म है. इसके पौधे की ऊंचाई 80 सेंटीमीटर के आसपास होती है. इसके पौधे में पुष्प-छत्रों की संख्या कम (185) होती है. सिंचित क्षेत्र में इसकी प्रति हेक्टेयर 12.83 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है.
अजवाइन की बुवाई के लिए खेत कैसे तैयार करें? (Preparation of farm for carom cultivation)
अजवाइन की अच्छी पैदावार के लिए खेत की अच्छे से जुताई करना बेहद जरुरी है. सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से अच्छी जुताई करें. इसके बाद 2 -3 जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें. दरअसल, अजवाइन का बीज महीन होता है इसलिए मिट्टी का नरम और भुरभुरा होना बेहद आवश्यक है.
अजवाइन की खेती के लिए सिंचाई (Irrigation for carom cultivation)
पहली सिंचाई बुआई के दौरान करें, लेकिन ध्यान रहे यह सिंचाई हल्की होगी ताकि जिससे बीज बहकर एक जगह इकठ्ठा ना हो जाए. अजवाइन की अच्छी पैदावार के लिए मौसम और मिट्टी के हिसाब से 15 से 25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई कर सकते हैं. अच्छी पैदावार के लिए अजवाइन की फसल में 4 से 5 सिंचाई करनी चाहिए.
अजवाइन की बुआई (Sowing for carom)
इसकी बुवाई कतारों में की जाती है. लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए. छिटकवा विधि में पहले क्यारियां बनाकर बीज डालें, इसके बाद बीज को हाथ से मिट्टी में मिला दें. बता दें कि अजवाइन की अच्छी पैदावार के लिए पलेवा करके इसकी बुवाई करनी चाहिए.
अजवाइन की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Fertilizer and fertilizer for carom cultivation)
अजवाइन की बुवाई से 2 से 3 हफ्ते पहले प्रति हेक्टयर 10 से 15 टन गोबर खाद खेत में डालनी चाहिए. इसके अलावा प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन 40 किलोग्राम, फास्फोरस 20 किलोग्राम बुवाई से पहले डाल दें. इसके अलावा जरूरत पड़ने पर मिट्टी परीक्षण के दौरान पोटाश की उचित मात्रा भी दे सकते हैं. ध्यान रहे कि नाइट्रोजन को दो हिस्सों में बांटकर पहली खुराक बुवाई के समय और दूसरी खुराक पौधे की बढ़वार के दौरान देनी चाहिए.