काली हल्दी का पौधा केली के समान होता है. काली हल्दी या नरकचूर एक औषधीय महत्व का पौधा है. जो कि बंगाल में वृहद रूप से उगाया जाता है. इसका उपयोग रोग नाशक व सौंदर्य प्रसाधन दोनों रूप में किया जाता है. वानस्पतिक नाम Curcumaa, केसीया या अंग्रेजी में ब्लेक जे डोरी भी कहते है. यह जिन्नी वरेसी कुल का सदस्य है. इसका पौधा तना रहित 30-60 सेमी ऊंचा होता है. पत्तियां चौड़ी गोलाकार ऊपरी सतह पर नीले बैंगनी रंग की मध्य शिरा युक्त होती है. यह एक लंबा जड़दार सदाबहार पौधा है. जिसका 1.0 - 1.5 सेंटीमीटर ऊंचाई होती है. इसकी जड़ (गांठ या प्रकंद) रंग में नीली-काली होती है.
जलवायु व मिट्टी
यह रेतीली-चिकनी और अम्लीय किस्म की मिट्टी में अच्छी उगती है. हालाँकि, यह आंशिक छाया -प्रिय प्रजाति का पौधा है, लेकिन यह खुली धूप और खेती की परिस्थितियों के अनुसार अच्छा उगता है.
प्रजनक सामग्री
इसकी गांठे ही इसकी प्रजनक सामग्री है. दिसंबर माह में या खेती से ठीक पहले पकी हुई गांठों को एकत्र किया जाता है और लम्बाई में इस तरह काटा जाता है कि प्रत्येक भाग में एक अंकुरण कली ही.
नर्सरी तकनीक
पौधा तैयार करना - गांठ को सीधे ही खेत में बो दिया जाता है.
पौध दर व पूर्व - उपचार - खेती के लिए एक हेक्टेयर में करीब 2.2 टन गांठे आवश्यक होती है और इन्हें 30 * 30 सेंटीमीटर के अंतर पर बोया जाता है.
भूमि तैयार करना और उर्वरक का प्रयोग
भूमि को जोता जाता है, उसके ढेले तोड़े जाते हैं और उसे समतल किया जाता है. फिर, इस पर उर्वरक जिसकी मात्रा 5 टन प्रति हेक्टेयर और नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाशियम प्रति हेक्टेयर 33.80 किलोग्राम मिलाकर खेत में छिड़काव किया जाता है.
सिंचाई
यह फसल आमतौर पर खरीफ सीजन में वर्षायुक्त हालात में उगाई जाती है. वर्षा न हो तो पानी का छिड़काव किया जाना चाहिए.
बीमारी व कीटनाशक
कभी कभी फसल के पत्तों पर निशान और दिखाई देता है. इस बिमारी की रोकथाम के लिए पत्तों पर 1 बोरडोक्स मिश्रण का छिड़काव मासिक अंतरालों पर किया जाना चाहिए।
फसल कटाई प्रबंधन
फसल पकना और उसकी कटाई.
फसल पकने में लगभग 9 माह का समय लगता है.
फसल की कटाई का कार्य जनवरी के मध्य में किया जाता है.
फसल की कटाई गांठों को ठीक से निकाला जाना चाहिए क्योंकि यदि वे क्षतिग्रस्त हो जाएं तो फसल को नुकसान पहुंचता है.
फसल कटाई के बाद का प्रबंधन
गांठे निकालने के बाद उन्हें छीलकर छाया में खुली हवा में सुखाया जाना चाहिए
इन सूखी जड़ों को उपयुक्त नमीरहित कंटेनरों में रखा जाना चाहिए.
पैदावार
एक एकड़ में ताजी जड़ों की पैदावार करीब 48 टन हो जाती है जबकि सूखी जड़ें करीब 10 टन तक होती है. इस खेती की लागत 95 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर तक बैठती है.
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