अपने विशेष गुणों के कारण जौ को अनाजों का राजा कहा जाता है. इसमें कैल्शियम, विटामिन, लौह, मैंगनीज, मैग्नीशियम, प्रोटीन, जिंक, कॉपर, रेशा और एंटीआक्सीडेंट जैसे तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं. जौ का पारंपरिक रूप से खाद्यान्न, पशु आहार और पशुचारे के रूप में उपयोग होता रहा है.
जौ स्वास्थ्यवर्धक होता है और इसके नियमित सेवन से हार्टअटैक, शुगर, हाइब्लैड प्रेशर और मोटापा जैसी गंभीर बीमारियों से निजात मिलती है. दरअसल, इसके सेवन की वजह से खून में कोलेस्ट्राल की मात्रा कम हो जाती है. तो आइए जानते हैं जौ का व्यावसायिक उपयोग क्या होता है और कौन सी किस्मों की बुवाई करें-
जौ का व्यावसायिक उपयोग (Commercial use of barley)
भारत में जौ का उपयोग पारंपरिक रूप से होता रहा है. लेकिन अब इसका व्यावसायिक उपयोग बेहद व्यापक रूप से हो रहा है, क्योंकि जौ में बीटा ग्लूकन नामक रेशा पाया जाता है. जो स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद उपयोगी माना जाता है. इसलिए आजकल बीटा ग्लूकन को निकालकर कई तरह के खाद्य पदार्थो में उपयोग में लाया जाता है.
जौ से कई बीमारियों का उपचार (Treatment of many diseases with barley)
जौ से बनी दवाईयों का प्रयोग काफी प्रभावी माना जाता है. इससे गुर्दे की पथरी और मूत्र संबंधित विकारों से निजात मिलती है.
चॉकलेट और सिरप (Chocolate and Syrup)
आजकल ब्रुईंग इंडस्ट्री में जौ की काफी मांग होती है इस वजह से कई कंपनियां किसानों से जौ अच्छे दामों पर खरीद रही है. इसका उपयोग चॉकलेट, सिरप, कैंडी और जौयुक्त दूध बनाने में किया जाता है.
बिस्कुट (Biscuits)
जौ का उपयोग गेहूं के आटे के साथ मिलाकर आजकल बिस्किट बनाने में हो रहा है. दरअसल, केवल जौ के आटे से बने बिस्किट में कड़वाहट अधिक होती है.
अन्य उत्पादों में-इस समय में जौ के उत्पादन का 60 प्रतिशत उपयोग बीयर, 25 प्रतिशतपावर ड्रिंक, 7 प्रतिशत दवाईयों और 8 से 10 प्रतिशत व्हिस्की बनाने में होता है. देश में हर साल जौ की मांग में 10 प्रतिशत की वृध्दि हो रही है.
भारत में जौ का रकबा (Acreage of barley in india)
देश में जौ का रकबा 7 लाख हेक्टेयर भूमि पर है. साल 2019-20 में जौ की खेती 6.2 हेक्टेयर भूमि पर की गई जिससे 16 लाख टन का उत्पादन हुआ. गौरतलब है कि आजादी के बाद देश में जौ का उत्पादन बेहद कम था लेकिन नई किस्मों के विकास, तकनीकि खेती की वजह से अब उत्पादन बढ़ा है.
कौन-सी किस्में लगाएं (What varieties to plant)
जौ की व्यावसायिक उत्पादन के लिए दो तरह की किस्मों की बुवाई की जाती है, एक समय से बुवाई वाली और दूसरी देर से बुवाई वाली-
1. समय से बुवाई वाली किस्में (Early sown varieties)
डीडब्ल्यूआरयूबी 52- इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 45 से 58 क्विंटल तक उत्पादन लिया जा सकता है.
डीडब्ल्यूआरयूबी 92- इससे प्रति हेक्टेयर 49 से 69 क्विंटल का उत्पादन लिया जा सकता है.
डीडब्ल्यूआरयूबी 101- इससे प्रति हेक्टेयर 50 से 67 क्विंटल का उत्पादन लिया जा सकता है.
डीडब्ल्यूआरयूबी 123- इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 48 से 67 क्विंटल का उत्पादन लिया जा सकता है.
आरडी 2849- यह किस्म प्रति हेक्टेयर 50 से 69 क्विंटल की पैदावार देती है.
-डीडब्ल्यूआरयूबी 160- इससे 53 से 74 क्विंटल का उत्पादन प्रति हेक्टेयर से लिया जा सकता है.
2. देर से बुवाई वाली किस्में (Late sowing varieties)
डीडब्ल्यूआरयूबी 64-इस किस्म से 40 से 61 क्विंटल का उत्पादन प्रति हेक्टेयर लिया जा सकता है.-डीडब्ल्यूआरयूबी 73-जौ की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 38 से 53 क्विंटल की उपज होती है.
डीडब्ल्यूआरयूबी 91-इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 40 से 58 क्विंटल की उपज ली जा सकती है.