कुल्थी की खेती दलहन फसल के रूप में होती है. भारत में इसे कुलथ, खरथी, गराहट, हुलगा, गहत और हार्स आदि नामों से जानते हैं. इसके दानों का इस्तेमाल सब्जी बनाने में होता है, जबकि कुछ जगह पशुओं के चारे के रूप में भी होता, दलहन फसल होने के कारण जमीन के लिए भी उपयोगी है इसे उगाने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है. पौधों का इस्तेमाल हरी खाद बनाने में होता है. तो अब समझते हैं खेती कैसे करें.
उपयुक्त मिट्टी
कुल्थी के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि होनी चाहिए, खेती से अधिक उत्पादन के लिए बलुई दोमट मिट्टी में उगाना चाहिए. भूमि का ph मान सामान्य होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
कुल्थी के पौधे सूखे के प्रति सहनशील होते हैं ऐसे में खेती के लिए हल्का गर्म और सुखा मौसम उपयुक्त है अधिक सर्दी का मौसम खेती के लिए उपयोगी नहीं, खेती के लिए सामान्य बारिश उपयुक्त है.
उन्नत किस्में
कुल्थी की कई अलग-अलग तरह की किस्में मौजूद हैं. जिन्हें अलग-अलग जगहों पर अधिक उत्पादन लेने के लिए तैयार किया गया है.
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वी एल गहत 1- पर्वतीय क्षेत्रों में उगाने के लिए तैयार की गई है.
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बिरसा कुल्थी- यह किस्म रोपाई के 95 से 100 दिन बाद तैयार हो जाती है.
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वी एल गहत 10- इस किस्म के बीजों का रंग पकने के बाद हल्का पीला दिखाई देता है.
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प्रताप कुल्थी- यह किस्म रोपाई के 110 दिन बाद तैयार हो जाती है.
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डी.बी. 7- इस किस्म को अगेती फसल के रूप में उगाया जाता हैं.
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वी एल गहत 8- यह किस्म रोपाई के 120 से 130 दिन बाद तैयार हो जाती है.
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बी आर. 10- पछेती बुवाई वाली किस्म लगभग 100 से 105 दिन बाद तैयार होती.
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कोयम्बटूर- इस किस्म को कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है.
खेत की तैयारी
जुताई के वक्त खेत से पुरानी फसलों के अवशेष नष्ट करें, फिर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई करें और खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ें, फिर पुरानी गोबर की खाद को डालकर अच्छे से मिट्टी में मिलाएं, मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल बनाएं.
बीज की मात्रा और उपचार
बीज की मात्रा का निर्धारण फसल के आधार पर होता है बीजों की रोपाई फसल से बीज उत्पादन के लिए होती है तो एक हेक्टेयर में लगभग 25 किलो के आसपास बीज की जरूरत होती है जबकि हरी खाद या हरे चारे के रोप में उत्पादन लेने के लिए लगभग 40 किलो बीज की जरूरत होती है. रोगों से बचाने के लिए बीजों को उपचारित कर खेतों में लगाए. उपचारित करने के लिए कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा को प्रति किलो की दर से बीज में मिलाकर तैयार करें.
पौधों की सिंचाई
हरे चारे के लिए फसल को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है जबकि पैदावार के रूप में खेती करने के लिए पौधों पर फली बनने के दौरान सिंचाई की जरुरत होती है. जब पौधों में फली बनने लगे तब से दानों के पकने तक खेत में नमी की कमी ना हो इससे फलियों में दानों का आकार अच्छा बनता है.
उर्वरक की मात्रा
हरे चारे की खेती में रासायनिक उर्वरक की जरूरत ज्यादा है फसल की रोपाई से पहले 20 किलो नाइट्रोजन और 40 से 50 किलो फास्फोरस की मात्रा को रोपाई से पहले प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में छिड़ककर मिट्टी में मिला देना चाहिए. जैविक खाद के तौर पर पुरानी गोबर की खाद का इस्तेमाल करें.
पैदावार और लाभ
कुल्थी की विभिन्न किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसतन उपज 15 से 20 क्विंटल होती है जिसका बाज़ार भाव 4 हज़ार रूपये प्रति क्विंटल के आसपास होता है इस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से 50 हज़ार तक की कमाई कर लेता है.