अगर आप कद्दूवर्गीय यानी खरबूज, तरबूज तोरई, लौकी, खीरा, ककड़ी, चप्पन कद्दू, टिंडा और पेठा आदि की खेती कर रहे हैं, तो मौजूदा समय में इन फसलों का विशेष ध्यान रखना होगा, क्योंकि इस समय सब्जियों की फसलों पर कई रोगों का प्रकोप हो सकता है.
किसान भाईयों को बता दें कि अगर एक बार फसल में रोग लग जाए, तो रोग धीरे-धीरे पूरी फसल को चपेट में ले लेता है. इससे फसल की पैदावार पर गहरा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में किसानों को सब्जियों वाली फसलों का विशेष ध्यान रखना होगा. इस संबंध में कृषि जागरण ने कृषि वैज्ञानिक पूजा पंत से बातचीत है. इस दौरान उन्होंने बताया कि किसान किस तरह सब्जियों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम कर सकते हैं.
पाऊडरी मिल्ड्यू या चिट्टा रोग (Powdery Mildew)
इस रोग से पत्तों, तनों और पौधों के दूसरे भागों पर फफूंदी की सफेद आटे जैसी तह जम जाती है. यह रोग खुश्क मौसम में ज्यादा लगता है. फल का गुण व स्वाद खराब हो जाता है.
रोकथाम
केवल एक बार 8 से 10 कि.ग्रा. प्रति एकड़ बारीक गंधक का धूड़ा बीमारी लगे हर भाग पर धूड़ने से बीमारी रूक जाती है. धूड़ा सुबह या शाम के समय करें. दिन के उस समय जब अधिक गर्मी हो, तब दवाई का धूड़ा न करें. खरबूजे पर गंधक न धूड़ें. इसके स्थान पर 500 ग्राम घुलनशील गंधक (सल्फेक्स या वेटसल्फ) 200 लीटर पानी में प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें.
ऐन्थ्रक्नोज व स्कैब (Anthracnose and scab)
इस रोग से लौकी, घीया, तोरई समेत अन्य बेल वाली सब्जियों के पत्तों व फलों पर धब्बे पड़ जाते हैं, सात ही अधिक नमी वाले मौसम में इन धब्बों पर गोद जैसा पदार्थ दिखाई देता है.
रोकथाम
यह रोग 400 ग्राम इण्डोफिल एम-45 दवा 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव किया जाए, तो इस बीमारी को रोका जा सकता है.
गम्मी कालर रॉट (Gummy stem blight)
खरबूज में यह बीमारी ज्यादातर लगती है, जो कि अप्रैल से मई में देखने को मिलती है. अस बीमारी के प्रभाव से भूमि की सतह पर तना पीला पड़कर फटने लगता है और इन्हीं स्थानों से गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलने लगता है.
रोकथाम
प्रभावित पौधों के तनों की भूमि की सतह के पास 0.1 प्रतिशत कारेबण्डाजिम (बाविस्टीन) घोल से सिंचाई करें.
डाऊनी मिल्ड्यू (Downy mildew)
पत्तों की ऊपरी सतह पर पीले या नारंगी रंग के कोणदार धब्बे बनते हैं, जो कि शिराओं के बीच सीमित रहते हैं. नमी वाले मौसम में इन्हीं धब्बों पर पत्तों की निचली सतह पर सफेद या हल्के-बैंगनी रंग का पाऊडर दिखाई देता है. इस बीमारी का प्रकोप बढ़ने पर पत्ते सूख जाते हैं औप पौधा नष्ट हो जाता है.
रोकथाम
लौकी में लगने वाले खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए. पौधों पर इण्डोफिल एम-45 या ब्लाईटॉक्स-50 (2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़क देना चाहिए. इसके अलावा खरबूजे में ब्लाईटॉक्स-50 का छिड़काव न करें. एक एकड़ के लिए 200 लीटर पानी में 400 ग्राम दवा का घोल बनाएं.
मोजैक रोग (Mosaic disease)
इस रोग से प्रभावित पौधों के पत्ते पीले व कहीं से हरे दिखाई देते हैं. इससे फसल की पैदावार बहुत कम मिलती है.
रोकथाम
विषाणु रोग अल द्वारा फैलता है. अल (चेपा) को नष्ट करने के लए नियामित रूप से कीटनाशक दवाओं छिड़काव करें.