केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लागू किये हुए लगभग पांच साल पूरे होने वाले है. इन पांच सालो में प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना उत्तर प्रदेश में पूरी तरह से फ़्लॉप हो गई है यू.पी के 2.33 किसान परिवारों में से 2 करोड़ किसान परिवार इस योजना से बाहर हो गए है. इसके लिए यूपी सरकार ने बहुत से अभियान चलाये लेकिन किसान बीमा करवाने के लिए तैयार नहीं हुए. विशेषज्ञो और किसानो का मानना है यह योजना किसान विरोधी है इसे देखते हुए कुछ महीने पहले प्रदेश सरकार ने भी योजना में कुछ बदलाव करने के लिए केंद्र को प्रस्ताव भेजना पड़ा लेकिन अभी तक कोई सकारात्मक नतीजा सामने नहीं आया।
साल 2014 में केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद इस योजना को चालू किया गया. इस योजना के तहत किसान को 1 से 1.5% तक ही प्रीमियम देने का प्रावधान है। शेष बचा प्रीमियम केंद्र सरकार या राज्य सरकार भरती है लेकिन यह योजना यूपी के किसानों को अच्छी नहीं लगी. बता दे की प्रदेश में 2.33 करोड़ किसान परिवार है लेकिन बीमा करवाने वाले किसान 35 लाख से भी कम है. पिछले साल रबी की फसल के लिए 27 लाख किसानों ने ही बीमा करवाया तो खरीफ में यह संख्या 26 लाख ही रही।
यह बीमा ज्यादातर कर्जदार किसान करवाते है इसी कारण बैंक से लोन लेते समय किसानों का बीमा अनिवार्य तौर पर कर दिया जाता है. स्वयं से किसानों ने बीमा करवाने के लिए किसानों ने रुचि नहीं दिखायी है. इसकी सबसे बड़ी वजह बीमा नीतियों में कमियां बताई जा रही है. यदि कोई किसान अपने मन से बीमा करवा भी लेता है तो वह क्लेम के लिए भटकता रहता है. बीमा कंपनियों ने जितना मुनाफा कमाया, उसका 10 फीसदी भी क्लेम नहीं दिया गया। यही वजह है कि कृषि विशेषज्ञ और पत्रकार पी साईनाथ ने खुद इस योजना को बड़ा घोटाला बताया है।
क्या है कमियां :
बीमा करवाने वाले किसानों को कोई बुकलेट अथवा रशीद नहीं दी जाती है और नाही कोई लिखित नियम अथवा शर्त भी नहीं दी जाती जिससे किसान ये साबित कर सके कि उसका बीमा हो चुका है. नुकसान होने की स्थिति में किसान को खुद 48 घंटे के अंदर रिपोर्ट करना होता है। किसान के व्यक्तिगत नुकसान की जगह गांव या ब्लॉक को इकाई मानकर का आकलन किया जाता है। बीमा पॉलिसी बैंकों और बीमा कंपनियों के हितों के हिसाब से बनाई गई है। क्लेम के लिए बीमा कंपनी मनमानी करती है। वहीं कर्जदार किसानों के लिए अनिवार्य बीमा इसलिए कर दिया गया है कि बैंक का पैसा ना डूबे। इससे किसानों को कोई फायदा नहीं है।