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Updated on: 31 July, 2020 12:00 AM IST

हिंदी के विख्यात साहित्यकार, लेखक और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद्र की जयंती वैसे तो हर किसी के लिए खास है, लेकिन किसानों के लिए इस दिन का अपना महत्व है. ग्रामीण भारत में किसानों का उत्पीड़न, शोषण, उनके साथ अमानवीय व्यवहार और कर्ज का खेल कैसे चलता है, इस बात को जानने के लिए प्रमचंद की रचनाओं को पढ़ा जा सकता है. भारतीय किसान समाज की व्यथा प्रेमचंद के उपन्यासों और कहानियों में अलग-अलग रूपों में सामने आती है और यही बात आज भी उन्हें बाकी लेखकों से अलग एवं श्रेष्ठ बनाती है.

अब उनके द्वारा रचित ‘प्रेमाश्रम’ महाकाव्य को ही पढ़ लीजिए. क्या इसे किसान-जीवन का महाकाव्य कहना सही नहीं होगा. आज भी ‘कर्मभूमि’ और ‘गोदान’ की काल्पनिक घटनाएं गांवों की कठोर वास्तविक्ता है. लेकिन प्रेमचंद ने सिर्फ किसानों के शोषण-उत्पीड़न को चित्रित नहीं किया, बल्कि उनके विरोध की शक्ति को भी जगाने का काम किया है. उनकी कहानियों में किसानी समस्याओं के कारण और निवारण की झलक भी मिलती है.

वैसे प्रेमचंद की कहानियों में किसान होने की परिभाषा कुछ अलग दिखाई देती है. वो न तो अमीर जमीदारों को किसान मानते हैं और न गरीब कामगारों को. उनकी कहानियों के किसान खुद खेती करते हैं, हल जोतते हैं और फसल की देखरेख करते हैं.

बदलते हुए समय के साथ कैसे किसान भूमिहीन होता जा रहा है, इस बात को समझने के लिए उनकी कहानियों से अच्छा माध्यम शायद ही कुछ और हो सकता है. उन्होंने बताया कि कैसे लोग किसान से मजदूर बनते जा रहे हैं और कैसे लोगों में काम करने की चाहत समाप्त होती जा रही है. उनके द्वारा रचित ‘कफन’ कहानी इस बात को और अधिक जोर से बोलती है. इस कहानी में घीसू कामचोर क्यों है, इसका इसका जवाब देते हुए प्रेमचंद बोलते हैं कि व्यक्ति में गुण जन्मजात नहीं बल्कि परिस्थितियों के कारण जन्म लेते हैं. सही मजदूरी न मिल पाने के कारण लोग श्रम से दूर होते जा रहे हैं.

इसी तरह उनके द्वारा रचित एक कहानी ‘पूस की रात’ का किसान हल्कू अभी भी कहीं गांव-देहात में जिंदा है और उसी अवस्था में है. अन्नदाता कहलाने वाले किसान की आर्थिक हालत इतनी खराब है कि ‘पूस की रात’ की कड़कती सर्दी का सामना करने के लिए एक कंबल तक वो नहीं खरीद सकता. वहीं भारत के समाज का एक अंग ऐसा भी है, जिसके पास संसाधन जरूरत से बहुत अधिक हैं. पूंजीवाद का परिचय इतनी सरलता से भला और कहां मिल सकता है.

English Summary: social political moral and economical condition of farmers reflected in the novels of Munshi Premchand know more on birthday special
Published on: 31 July 2020, 12:43 IST

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