कृषि कानून 2020 के खिलाफ किसान का सरकार के खिलाफ हल्ला बोल जारी है. किसान किसी भी कीमत पर तीनों नए कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं. इसको लेकर 8 दिसंबर को किसानों ने भारत बंद बुलाया. इस प्रदर्शन में सिर्फ पंजाब और हरियाणा के किसान ही नहीं, देश के राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने भी अपने स्तर से कृषि कानून का विरोध जताया. इससे पहले सरकार के साथ किसानों की कई बैठकें हो चुकी हैं. इसके बावजूद किसान सरकार से 'यस और नो' में जवाब मांग रहे हैं. किसानों को यह भी डर सता रहा कि उनकी हालत कहीं बिहार के किसानों की तरह न हो जाए.
बिहार का किसान
बिहार में किसानों की स्थिति दिन पर दिन खराब होते जा रही है. आलम यह है कि किसान मोटी रकम लगाकर भी मुनाफा नहीं कमा पा रहा है. कभी-कभी मुनाफा तो दूर किसान जितनी रकम लगाता है उतना ही निकल जाए वही बहुत है. किसानों की यह दुर्दशा होने के पीछे मंडी का न हो पाना और प्रशासन का सुस्त रवैया है. बिहार में साल 2006 में एनडीए सरकार ने कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) एक्ट को समाप्त कर दिया था. इस एक्ट के समाप्त हो जाने से मंडी व्यवस्था भी समाप्त हो गई. इसके बाद सरकार ने पैक्स का गठन किया. अब धान, गेहूं आदि पैक्स के द्वारा खरीदी जाती है.
समस्या क्या?
बिहार के कई जिलों में धान की खरीद 1,100 से 1,200 रुपये प्रति कुंतल है. वहीं पैक्स में इसकी कीमत 1,700 से 1,800 रुपये प्रति कुंतल है. सरकार ने बिहार में मंडी कल्चर बिचौलियों से बचाने के लिए समाप्त किया था, लेकिन यहां भी वही समस्या है. कई किसानों का आरोप है कि पैक्स में धान और गेहूं बेचने पर कमीशन की मांग की जाती है. इसके बाद पैसे मिलने में एक से दो महीने का समय लग जाता है, जबकि किसानों को हाथों-हाथ पैसों की जरूरत रहती है, जिससे आगे की खेती की जा सके.
बिहार में कृषि कानून का जोरदार विरोध क्यों नहीं?
बिहार में कृषि कानून के खिलाफ मिलाजुला विरोध है. अधिकतर किसान इस पर खुलकर बोलने से बच रहे हैं, क्योंकि वह मानकर चल रहे हैं स्थिति अच्छी नहीं हो सकती है. हालत इतनी खराब है कि बिहार में खेती के काम में हाथ बटाना छोड़ मजदूर पंजाब और हरियाणा में जाकर खेती कर रहे हैं. वही युवाओ को अब खेती से मतलब नहीं रह गया है. वह खेती को घाटे के सौदे के रूप में देख रहा है. इसीलिए बिहार का युवा या किसान कम ही विरोध प्रदर्शनों में नजर आएगा.
नोट– यह लेख लेखक का निजी विचार है, इस लेख से कृषि जागरण का कोई सरोकार नहीं है.