यह बात तो सभी दल जानते हैं कि किसानों को साथ लिए बिना संसद का दरवाजा खोलना नामुमकिन है. देश में 60-70 प्रतिशत ग्रामीण हैं और इसी वजह से कृषि आबादी को साथ लेकर चलना ही पड़ेगा. अब इसे मजबूरी बोलें या जरुरत, लेकिन उन्हें साथ रखना तो है ही. चुनाव के पहले राजनीतिक पार्टियों के द्वारा किसानों के लिए चुनावी फसल बोना कोई नयी बात नहीं है. ऐसा शायद हर बार देखने को मिलता है. केंद्र सरकार ने भी चुनाव को देखते हुए आपा-धापी में इस योजना की घोषणा अंतरिम बजट के दौरान की. इस योजना को छोटे और सिमांत किसानों को ध्यान में रखकर शुरु किया गया. योजना के द्वारा 12.5 करोड़ किसानों को लाभान्वित करने का दावा किया जा रहा है. लेकिन जहां किसानों को इस योजना का लाभ जल्द पहुंचाने की बात कही जा रही है वहीं अभी तक यह योजना केवल पौने तीन करोड़ किसानों तक ही पहुंच पाई है. यह आंकड़ा अख़बार के माध्यम से जुटाया गया है.
योजना का मकसद छोटे व सिमांत किसानों को नकद मुहैया कराने का है, जिससे उनको बीज, खाद और अन्य इन्पुट उपलब्ध करने में मदद मिल सके. मतलब सिर्फ ऐसे किसानों को ही इसका लाभ मिलेगा जिसके पास दो हेक्टेयर खेती वाली जमीन है. योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तरप्रदेश के गोरखपुर से की थी और पहले दिन योजना की राशि 1 करोड़ किसानों के खाते में पहुंचाई गयी थी. योजना के तहत 2000 रुपए की तीन किस्त किसानों के खाते में दी जाएगी. इसके लिए 20 हजार करोड़ का एडवांस बजटीय प्रावधान रखा गया है और इसका एक साल का बजट है - 20 हजार करोड़.
किसानों तक राशि पहुंचने की वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन एक बड़ी वजह यह भी बताई जा रही है कि गैर भाजपा शासित राज्यों ने योजना से दूरी बना रखी है. ऐसी खबरे हैं कि किसानों की सही जानकारी नहीं दी जा रही जिसके कारण किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. खैर, राजनीतिक माहौल है और आरोप-प्रत्यारोप तो चलता रहेगा. योजना चाहे कितनी भी डिजिटल प्रणाली के माध्यम से शुरु की गई हो लेकिन जरुरी है कि किसानों तक उसका फायदा पहुंचे और ज्यादा से ज्यादा किसान इससे लाभान्वित हों.