पश्चिम बंगाल के सुंदरवन से मछुआरों का दल हिलसा मछली का शिकार करने के लिए सोमवार को समुद्र की ओर रवाना हुआ. मछली मारने वाला जाल और अन्य सारे संरजाम लेकर मछुआरों का अलग-अलग दल सुंदरवन के विभिन्न घाटों से करीब 3000 हजार मछली मारने वाले जहाज (Trawlers) पर सवार होकर अनंत समुद्र की ओर निकल पड़े. प्रति ट्रावलर पर 15-18 की संख्या में सवार होकर मछुआरे समुद्र में निकल पड़े. जिला प्रशासन के सूत्रों के मुताबिक इस बार कोरोना संक्रमण के देखते हुए समुद्र में जाने से पहले सभी मछुआरों की थर्मल स्क्रिनिंग की गई. सभी मछुआरों के लिए मास्क और लाइफ जैकेट पहनना अनिवार्य कर दिया गया. यहां तक ट्रावलर में बर्फ के साथ हिलसा मछली को सुरक्षित रखने और घाटों पर उसे उतारने तथा जाल व हिलसा पकड़ने के लिए अन्य उपकरण की व्यवस्था करने वाले कर्मियों के लिए भी मास्क और हाथ में ग्लॉब्स पहनना अनिवार्य किया गया है.
समुद्र से नौटलने के बाद भी मछुआरों के स्वास्थ्य की जांच के लिए सुंदरवन के विभन्न घाटों पर जिला प्रशासन की ओर से स्वास्थ्य शिविर लगाए गए हैं. अच्छा मौसम और इस बार समय पर मानसून के दस्तक देने को लेकर इस बार अच्छी तादात में हिलसा मछली की समुद्र में आवक को लेकर मछुआरों में काफी उत्साह है. हिलसा मछली की खरीद बिक्री करने वाले व्यापारियों में भी इस बार अच्छा मुनाफा करने को लेकर उम्मीद जगी है. सरकार भी इस बार हिलसा का उत्पादन बढ़ाने को लेकर मछुआरों को हर तरह से सहयोग कर रही है. जिला प्रशासन ने प्रत्येक मछुआरों को साथ में अपना परिचय पत्र रखने की हिदायत दी है ताकि घटना-दुर्घटना की स्थिती में उनकी पहचान करने में कोई असुविधा न हो. अतीत में मानसून के दौरान समुद्र में मछली मारने को लेकर मछुआरों में होड़ मचने से कई ट्रावलरों के दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनाएं घट चुकी है. समुद्र में इस तरह की दुर्घटनाओं में कई मछुआरों को जान तक गंवानी पड़ी है.
जिला प्रशासन ने इस बार इस तरह की कोई दुर्घटना नहीं होने देने को लेकर मौसम विभाग के हवाले से मछुआरों को सख्त हिदायत दी है. मछुआरों को समुद्र में सुरक्षित रहकर मछली पकड़ने के लिए सरकारी निर्देशों का पालन करने की सख्त हिदायत दी गई है. मत्स्य निदेशालय के हवाले से मिली खबर के मुताबिक सुंदरनवन क्षेत्र के 6 मत्स्य बंदरगाह और तीन जेटी घाट से हजारों मछुआरों के दल को रवाना करते हुए जिला प्रशासन ने उन्हें सरकारी निर्देशों को सख्ती से पालन करने की हिदायत दी है.
उल्लेखनीय है कि अप्रैल से लेकर 15 जून तक गहरे समुद्र और आस-पास के नदी नालों में हिलसा मछलियों में प्रजनन के लिए अच्छा समय माना जाता है. हिलसा मछलियां प्रचुर मात्रा में अंडे देती हैं. दो-ढाई माह में अंडे परिपक्व होकर मछली में तब्दिल हो जाते हैं. इसलिए सरकार हर साल 15 अप्रैल से 15 जून तक मछुआरों को समुद्र में मछली पकड़ने के लिए जाने पर रोक लगा देती है. इस दरम्यान करीब 62 दिन मछुआरें सरकारी निर्देशों का पालन करते हुए समुद्र में मछली पकड़ने के लिए नहीं जाते हैं. लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण 24 मार्च से ही समुद्र में मछुआरों के जाने पर रोक लगा दी गई थी.
15 जून सोमवार को औपचारिक रूप से समुद्र में पछली पकड़ने पर लगी निषेधाज्ञा हटा ली गई. आनलॉक-1 शुरू हो जाने से अब समुद्र में निर्भिक होकर मछुआरों को जाने पर किसी तरह की रोक-टोक नहीं है. अच्छा मौसम और समय से मानसून के आने से इस बार राज्य में मछली खासकर हिलसा का अच्छा-खासा कारोबार होगा. चक्रवाती तूफान अंफान से सुंदरवन के मछुआरों को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई इस बार प्रचुर मात्रा में हिलसा पाए जाने से हो सकती है.
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि पश्चिम बंगाल में हिलसा मछली बंगालियों का एक प्रिय खाद्य है. बंगाल के रसोई घरों में मानसून के मौसम में हिलसा मछली का विशेष रूप से इंतजार रहता है. बांग्ला में इसे ईलीश माछ भी कहते हैं. निजी रसाई घरों और छोटे रेस्टूरेंट से लेकर बड़े होटलों तक में भी हिलसा मछली से विभिन्न तरह के व्यंजन भी बनाए जाते हैं जो बहुत स्वादिष्ट होता है. हिलसा मछली स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बहुत लाभदायक है. इसमें ओमेगा 3 फैटी एसीड प्रचुर मात्रा में पाया जाता है तो मष्तिष्क को स्वस्थ रखने और तंत्रिका तंत्र को मजबूत बनाने में विशेष रूप से सहायक है. हिलसा मछली का तेल शरीर में कलोस्ट्राल लेबल को भी कम करता है. कई शोधों में हिलसा मछली के औषधीय गुण प्रमाणित हो चुके हैं. महंगा होने के बावजूद कोलकाता महानगर समेत राज्य भर में इसकी मांग में तेजी बनी रहती है. इसी से बंगालियों के भोजने में हिलसा मछली के महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है. मानसून शुरू होने के साथ ही बंगाल में मछुआरे हिलसा मछली पकड़ने के लिए समुद्र में निकल पड़ते हैं. वैसे बांग्लादेश भी उच्च कोटि की हिलसा मछली पश्चिम बंगाल को आपूर्ति करता है. लेकिन मानसून के मौसम में तटवर्ती क्षेत्रों में मछुआरे भी राज्य में मांग की पूर्ति लायक हिलसा मछली समुद्र से पकड़ लाते हैं. इससे मछुआरों की अच्छी खासी आय होती है और मछली व्यापारियों का भी मुनाफा होता है.
सेंट्रल इनलैंड फिसरीज रिसर्च इंस्टीच्यूट के विशेषज्ञों के मुताबिक इस बार मानसून पूर्व वर्षा हिलसा मछली की आवक बढ़ाने में मददगार साबित हुई है. मानसून पूर्व वर्षा के समय हिलसा नदी और समुद्र के मुहाने पर पहुंच जाती है. इस बार अच्छा मौसम होने के कारण जून की शुरूआत में ही तटवर्ती क्षेत्रों में हिलसा की आवक बढ़ने के आभास मिलने लगे.
मत्स्य विभाग के सूत्रों के मुताबिक तटवर्ती जिला उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना व पूर्व मेदिनीपुर के मछुआरों समेत समेत हावड़ा,हुगली मुर्शिदाबाद और नदिया आदि दक्षिण बंगाल के लगभग दो लाख मछली व्यापारियों की आजीविका हिलसा मछली के व्यवसाय पर निर्भर है. पिछले वर्ष राज्य में हिलसा का औसत उत्पादन 5 हजार मेट्रिक टन था जो मानसून के दौरान बढ़कर 15 हजार मेट्रिक टन पहुंच गया. मत्स्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक इस बार मौसम अच्छा होने व मानसून पूर्व वर्षा के कारण राज्य में हिलसा मछली का उत्पादन 19-20 हजार मेट्रिक टन पहुंच सकता है. इससे मछुआरों की आय तो बढ़ेगी ही मछली व्यापारियों का भी मुनाफा होगा.
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