केंद्र में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी को तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में हार का मुहँ देखना पड़ा है. नतीजों ने पार्टी की चिंता बढ़ा दी है. अब जबकि आम चुनाव में कुछ महीने ही बाकी रह गए हैं, बीजेपी के लिए यह हार खतरे की घंटी है. ताजा परिणामों को देखकर 2019 में दुबारा सरकार बनाने का सपना देख रही बीजेपी के लिए यह एक बड़ा झटका माना जा रहा है. यह परिणाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कम होती लोकप्रियता के रूप में भी देखे जा रहे हैं. जिस तरह से देश के तीन बड़े राज्यों में पार्टी की हार हुई है उसे देखते हुए पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को नई रणनीति अपनानी होगी.
इसके संकेत अभी से मिलने भी शुरू हो गए हैं. इस कड़ी में केंद्र सरकार देश के किसानों को एक बड़ा तोहफा दे सकती है. दरअसल, लाखों किसानों को लुभाने के लिए आम चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्ज माफ़ी की घोषणा कर सकते हैं. यह फैसला इसलिए भी लिए जाने की संभावना है क्योंकि सत्तारूढ़ दल को राज्य चुनावों में ग्रामीण आबादी का रोष झेलना पड़ा है.
मंगलवार को हुई वोटों की गिनती के मुताबिक तीनों ही राज्यों में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस से हार झेलनी पड़ी है. हिंदी बेल्ट के तीन बड़े राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की आबादी का मुख्य पेशा कृषि है. ऐसे में बीजेपी की यह हार इस बात की तफ्तीश करती है कि किसानों को नाराज करके सत्ता के शिखर तक नहीं पहुंचा जा सकता है.
न्यूज़ एजेंसी 'रॉयटर्स' में छपी एक रिपोर्ट में सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि मोदी सरकार देश के ढाई करोड़ से अधिक किसान परिवारों का कर्ज माफ करने की योजना पर काम कर रही है. इसके लिए प्रशासन एक विस्तृत योजना पर काम शुरू कर देगा. मई, 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं. इतने कम समय में गेहूं, चावल जैसी फसलों के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी जैसे उपायों के कारगर होने की संभावना बेहद कम है क्योंकि इसके लिए अब वक्त निकल चुका है. इस स्थिति में मोदी और बीजेपी कोई बड़ा कदम उठाने का विकल्प आजमा सकती है. हालाँकि, इस मुद्दे पर उनका रुख ताजा विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद और भी मजबूत हो सकता है.
मोदी सरकार की पूर्ववती मनमोहन सरकार में कृषि और फसलों के दामों पर सलाह देने वाले अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी इस मुद्दे पर अपनी राय देते हैं. उनके मुताबिक मौजूदा सरकार किसानों की समस्या को सुलझाने में पूरी तरह विफल रही है और अब आम चुनाव भी नजदीक है इसलिए मुमकिन है कि सरकार किसानों को कर्ज माफ़ी का वायदा करे. सरकारी सूत्रों और विश्लेषकों की मानें तो इस योजना के तहत 4 लाख करोड़ रुपये (56.5 बिलियन डॉलर) का कर्ज माफ किया जा सकता है. इस तरह से यह योजना आम चुनाव में बीजेपी की वापसी में अहम भूमिका निभा सकती है. रॉयटर्स की रिपोर्ट में सरकारी अधिकारियों ने कहा है कि आजाद हिंदुस्तान में किसानों को दी जाने वाली यह अब तक की सबसे बड़ी सरकारी मदद होगी.
गौरतलब है कि पिछली कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार ने 2008 में लगभग 72 हजार करोड़ रूपये के कृषि ऋण छूट की घोषणा की थी. जिससे 2009 आम चुनावों में कांग्रेस को बड़े जनादेश के साथ सत्ता में लौटने में मदद मिली.
नाराज किसान
अर्थशास्त्रियों ने इस मुद्दे पर सरकार को चेताया है. उनका कहना है कि कर्ज माफी से देश में वित्तीय घाटा बढ़ेगा और सकल घरेलु उत्पाद यानी जीडीपी में भारी गिरावट होगी. फिलहाल सरकार ने कुल वित्तीय घाटे को 3.3 फीसदी का स्तर निर्धारित किया है. बिना कृषि ऋण माफ़ी के ही देश का कुल वित्तीय घाटा 6 लाख 67 हजार करोड़ रूपये के स्तर पर रहने का अनुमान है जो कुल जीडीपी का 3.5 फीसदी है. इसके साथ ही कर्ज में छूट दिए जाने से सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों को भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा जो पहले से ही घाटे में चल रही हैं.
मंगलवार को घोषित परिणाम में बीजेपी राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में सत्ता से बेदखल हुई है. हिंदी भाषी उत्तरी बेल्ट के यह तीनों ही बड़े राज्य भाजपा के पारंपरिक गढ़ माने जाते रहे हैं. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो 15 वर्षों तक सत्ता संभालने के बाद भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता देखना पड़ा है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मंगलवार के चुनाव परिणाम स्पष्ट रूप से किसानों की नाराजगी को दर्शाते हैं.
कुछ ऐसा ही 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान हुआ था. उस वक्त अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र की एनडीए सरकार को हार का मुहं देखना पड़ा था क्योंकि उसने ग्रामीण आबादी का भरोसा खो दिया था. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2004 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को करारी शिकस्त मिली थी. कमोबेश यही स्थिति मौजूदा एनडीए सरकार के साथ बन रही है. इतिहास से सबक लेते हुए बीजेपी कर्ज माफी जैसा कदम उठा सकती हैं.
आमतौर पर कर्ज माफ़ी एक लोकप्रिय कदम माना जाता है लेकिन इसका फायदा बड़े जोत वाले किसानों को ही अधिक मिलता है. छोटे किसान बैंकों से कर्ज लेने की बजाय स्थानीय साहूकारों और धन्नासेठों से उधार लेते हैं जिसके बदले में उन्हें 20-25 फीसदी की ब्याज चुकानी पड़ती है. आंकड़ों के अनुसार देश के 80 फीसदी किसान छोटे और सीमांत की श्रेणी में आते हैं.
पिछले कुछ सालों में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों ने कई राज्यों के चुनावों में कर्जमाफी का वायदा किया है. अब तक देश की लगभग सात राज्य सरकारों ने 1 लाख अस्सी हजार रुपये के कृषि ऋण के छूट का वादा किया है.
हाल ही में देश में किसान आंदोलन ने जोर पकड़ा है. देश की राजधानी दिल्ली व आर्थिक राजधानी मुंबई में किसानों ने कई विरोध प्रदर्शन किए हैं. यह विरोध प्रदर्शन ग्रामीण इलाकों में सरकार के प्रति बढ़ते क्रोध को दर्शाते हैं, जहां भारत के 1.3 अरब से अधिक लोग रहते हैं.
रोहिताश चौधरी, कृषि जागरण