नमस्कार किसान भाइयों/ बहनों आशा करता हूँ आप सभी कुशल मंगल होंगे. मुझे यह बताते हुए अत्यंत ख़ुशी हो रही है कि आपके प्यार और विश्वास के बदौलत कृषि जागरण ने इस माह अपने 26वें साल के इस चुनौतीपूर्ण सफ़र को पूरा कर लिया है.
इसकी नीव किसान समुदाय की भलाई, उनके समस्याओं का निवारण और साथ ही हर छोटी-बड़ी उपलब्धियों को शासन-प्रशासन से लेकर समाज के हर कोने तक पहुँचाने के मकसद से रखी गयी थी और आज मैं पूरे विश्वास के साथ इस बात को कह सकता हूँ कि कृषि जागरण अपने इस इरादे को पूरा करने में सफल रहा है. इसका श्रेय आप सबको जाता है. मासिक पत्रिका से शुरू हुई कृषि जागरण की कहानी आज वेब पोर्टल,सोशल मीडिया, FTB, FTJ और AJAI तक आ पहुंची है. उम्मीद है कि आने वाले दिनों में कृषि जागरण इसी तरह कई और मुकामों को भी आप सभी के मदद से हांसिल करेगा.
वर्तमान स्थिति पर अगर नजर डालें तो खरीफ की फसल अपने पूरे शबाब में है लेकिन कुदरत की मार ने खड़ी फसलों को नुकसान पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है.जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र मध्य एवं विधर्भ भारत है जो अति वृष्टि एवं बाढ़ जैसी स्थितियों से प्रभावित है तथा उत्तर पूर्वी भारत के कुछ भाग कम वृष्टि एवं सूखे जैसे स्थिति से ग्रसित है. इसी प्रकार पहाड़ी इलाकों में बादल फटने जैसी घटनाओं से कई क्षेत्र जिसमे तराई के क्षेत्र भी आते हैं, प्रभावित चल रहे हैं. ऐसे में आप सब अपनी फसल को बचाने के लिए प्रयत्नशील होंगे तथा मौसम के बदलते स्वरुप को देखते हुए फसल संरक्षण पर भी ध्यान दे रहे होंगे.
मौसम के बदलते स्वरुप एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए सतत खेती अब समय की मांग है. किसानों द्वारा की जा रही खेती से बेहतर उपज के साथ उच्च गुणवत्ता वाली फसलें प्राप्त हो इस पर विचार करने का समय अब आ गया है. इसी संदर्भ में कृषि विशेषज्ञों और सरकार का मानना है कि सतत कृषि प्रक्रिया के माध्यम से बढ़ते मृदा प्रदूषण को और अधिक बढ़ने से रोक जा सकता है. सतत कृषि मृदा उर्वरता और पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है. सतत कृषि प्रक्रिया से हम यह बहुत हद तक सुनिश्चित करते हैं कि आने वाली पीढ़ी को भी वही उत्पादन मिल सके जो आज हम प्राप्त कर रहे हैं. इनके लिए विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा समय-समय पर दिए गए सुझाव जैसे की समन्वित (INM) पोषक प्रबंधन एवं (IPM) समन्वित कीट प्रबंधन के माध्यम से कृषि में आने वाले समस्याओं का निदान कम खर्च में किया जा सकता है.
अतः किसान भाइयों समय की मांग के अनुसार यदि हम अपने कृषि कार्यों को करें तो इससे पर्यावरण भी संतुलित रहेगा एवं अत्यधिक कीटनाशक एवं रसायनों के उपयोग से होने प्रभाव से भी बचा जा सकेगा.