सरकार के आकंड़ों के मुताबिक, किसान की रोजाना की औसत आय ₹270 है. नीति आयोग ने भी लगभग यही माना है. किसी भी देश के लिए यह शर्मनाक और विडंबना पूर्ण स्थिति है. किसान की माहवार और औसत आमदनी आज भी ₹10000 से कम है. जबकि यह सरकारी आंकड़े हैं. जमीनी स्तर पर किसान की आए और भी बहुत कम है.
इस आमदनी में मजदूरों का मेहनताना भी शामिल है. क्या सरकार को एहसास नहीं होता कि अन्नदाता के आर्थिक हालात बदतर हैं.? किसानों को दी जाने वाली ₹6000 सालाना की सम्मान राशि उनकी औपचारिक आय का पर्याय या विकल्प नहीं हो सकती. फसल बीमा योजना भी कंपनियों के मुनाफे का बंदोबस्त साबित हुआ है.
एमएसपी को वैज्ञानिक दर्जा देना और उनके दायरे में अधिकतम फसलों को लाने का फैसला ऐतिहासिक साबित हो सकता है. मौसम चक्र में परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग, पानी की कमी और तमाम अन्य कारण हैं, जो किसानों को खेती में बेरुख कर रहे हैं. बहुत संभव है कि 140 करोड़ की आबादी वाले देश में आने वाले दशकों में खाद्यान्न संकट पैदा हो जाए. जिसके लिए अभी से दूरगामी नीतियां बनाने की जरूरत है. चिंता की बात यह भी है कि हालिया बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि से हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गेहूं, मटर और सरसों आदि फसलों की कटाई से पहले नुकसान के चलते खाद्य मुद्रास्फीति कम ना पड़ जाए.
इसमें केंद्र सरकार और आरबीआई द्वारा मुद्रास्फीति को कम करने के प्रयासों को झटका लग सकता है. साथ ही सरकार द्वारा देश के 80 करोड़ लोगों को दिए जा रहे खाद्यान्न सहायता कार्यक्रम पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है. वही सरसों की फसल प्रभावित होने से खाद्यान्न तेलों की अयात का दबाव भी बढ़ सकता है. निसंदेह आम आदमी के लिए महंगाई की चुनौती भी बढ़ सकती है. मौसम विज्ञानी पश्चिमी विक्षोभ के चलते कुछ और दिन बारिश की भविष्यवाणी कर रहे हैं.
ऐसे में जहां किसानों को फौरी राहत दिए जाने की जरूरत है. वही केंद्र और राज्य सरकार के फसलों हेतु नए शोध अनुसंधान को बढ़ावा देने की जरूरत है. जो ग्लोबल वार्मिंग प्रभावों से होने वाले नुकसान को रोकने में किसानों की मदद कर सकें. निसंदेह लगातार मौसम की बेरुखी से किसान के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही है. दूसरे मंडियों में कृषि उत्पादों के वाजिब दाम न मिल पाने से किसान अपनी लागत भी हासिल नहीं कर पा रहा है.
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यह संकट किसानों की आज वाली पीढ़ी को खेती से विमुख करने वाला है. कृषि विशेषज्ञों को चाहिए कि वह ऐसी तकनीक विकसित करें जिससे देश के हर राज्य में मौसम से होने वाले फसलों के नुकसान से किसानों को बचाया जा सके. अर्थात जिस तरह मौसम का चक्र परिवर्तन हुआ है उसी हिसाब से फसलों को पैदा किया जाए और उनकी खेती की जाएं.
लेखक
रबीन्द्रनाथ चौबे कृषि मीडिया बलिया उत्तरप्रदेश.