भारत कृषि प्रधान देश है और पहले से मौसम की मार झेल रहे किसानों को इस बारनोवल कोरोना वायरस का प्रकोप भी झेलना पड़ रहा है। इस वायरस ने कृषि प्रधान देश और यहां के किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। हालांकि, केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों ने अपने-अपने स्तर पर किसान को राहत देने की कोशिश जरूर की है लेकिन सवाल ये है कि आने वाले दिन यानि किसानों का भविष्य कैसा होगा? दरअसल, किसानों को कोरोना वायरस की महामारी में खुद के जीवन के साथ ही गेहूं की फसल को बचाने की चुनौती का सामना भी करना पड़ रहा है। फसल पककर खेतों में तैयार है और शासन ने फसल काटने के लिए छूट भी दे दी है, लेकिन सबसे बड़ी और पहली चुनौती किसानों के सामने ये है कि उन्हें फसल काटने के लिए मजदूर ही नहीं मिल रहे हैं। फसल काटने वाले ज्यादातर मजदूर बिहार और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों से आते थे, लेकिन इस बार लॉकडाउन के डर से और रोजगार ना होने के चलते मजदूर अपने गांव लौट गए। वहीं जो मजदूर आना भी चाहते हैं, वो बॉर्डर सील होने की वजह से नहीं आ पा रहे हैं। ऐसे में पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान समेत कई राज्य के किसान मजदूरों के बिना ही आपस में मिलजुलकर फसल की कटाई कर रहे हैं। इसमें समय पहले की तुलना में अधिक लग रहा है।
अगले साल ये सबसे बड़ी चुनौती
वहीं हर साल अप्रैल महीने में ही क्रय केंद्र खुल जाते थे, लेकिन इस बार कोई तैयारी नहीं हो सकी। इससे गेहूं कटाई के बाद भी किसानों को खरीद नहीं होने पर दोहरी मार झेलनी पड़ेगी। उदाहरण के लिए इले उत्तर प्रदेश के चंदौली से समझते हैं।यहां शासन की तरफ से साल 2019 में 79 हजार एमटी गेहूं की खरीद का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, लेकिन कोरोना के चलते इस बार ज्यादातर किसानों के गेहूं की कटाई देर से शुरू हुई हैजिससे फसल को नुकसन भी पहुंचा है। ऐसे में जब किसानों की फसल समय पर नहीं कटेगी तो फसल बर्बाद होना स्वाभाविक है। वहीं किसान की साल भर की मेहनत तो बर्बाद होगी ही और उसे लागत के मुताबिक भी दाम भी नहीं मिल पाएगा। साथ ही उसके सामने अगले साल के लिए फसल लगाने के लिए बीज खरीदने और अपने परिवार का पालन-पोषण करने की चुनौती भी खड़ी हो जाएगी। हालांकि, सरकार ने 15 अप्रैल से समर्थन मूल्य पर रबी फसलों की खरीदारी शुरू करने का फैसला किया है।
जल संकट आना बाकी
पूरे भारत में गर्मी का मौसम शुरू हो गया है। हालांकि, इस बार गर्मी बाकी सालों के मुकाबले थोड़ी देर से पड़ी है। लेकिन अब किसानों के लिए कोरोना के बाद एक और बड़ा संकट आने वाला है। हर साल किसानों के सामने जल संकट एक बड़ा संकट बनकर सामने आता है, जिससे निपटने में किसानों के पसीने छूट जाते हैं। सरकार की तरफ से आर्थिक रूप की मदद भी दी जाती है, लेकिन तब भी वो मदद बेहद कम नजर आती है। लेकिन इस साल किसानों पर ये जल संकट की मार कोरोना वायरस के चलते दोगुनी पड़ सकती है। वरिष्ठ पत्रकार और कृषि मामलों के जानकार पी. साईनाथ की मानें तो भारत के किसानों के सामने जल संकट से पहले लॉकडाउन की वजह से एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। अगले 10-15 दिनों में जल की समस्या खड़ी हो जाएगी। शहर में कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए बार-बार हाथ धोने वाले लोग जल संकट के बारे में नहीं सोच रहे हैं।
लोन की मार
ये बात किसी से छुपी नहीं कि किसान खेती के काम और उसमें उपयोग होने वाले समान के लिए बैंकों से लोन लेते हैं और तब जाकर वो एक अच्छी फसल उगाने के बारे में सोचते हैं। लेकिन बीते कई सालों में देखा गया है कि किसान इन लोन के चक्कर में परेशान रहता है और कई किसानों ने तो इसके चलते आत्महत्या का रास्ता भी अपनाया है। ऐसे में सरकार की तरफ से कई बार किसानों के लोन की कुछ राशि माफ की जाती है। लेकिन इस बार स्थिति दूसरी है। इस बार किसानों की फसल तो अच्छी हुई, लेकिन उसे काटने वाले लोग मौजूद नहीं है, बाजार छोड़ने के लिए लोग पर्याप्त नहीं है, साधन मौजूद नहीं हैं। ऐसे में किसानों को फसल के दाम मनमुताबिक मिल पाए, ये कहना थोड़ा कठिन है यानि अगर किसानों के पास पैसा नहीं आएगा तो फिर किसान को लोन भरने में दिकक्तें आएंगी। ऐसे में किसान पर लोन की मार पड़ सकती है। गौरतलब, है कि किसान NBFC यानि नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी से लोन लेते हैं। इन्हें बैंकिंग का लाइसेंस तो मिला होता है, लेकिन ये पूर्ण रूप से बैंक नहीं होते हैं। ऐसे में RBI ने जो बैंक के ग्राहकों को 3 महीने EMI न देने यानि 3 महीने बाद देने की छूट दी है। वो छूट किसानों को नहीं मिली है। ऐसे में जब किसान की फसल बाजार तक नहीं पहुंचेगी, तो पैसे नहीं आएंगे और जब पैसे नहीं आएंगे तो फिर लोन भरने में दिक्कतें किसानों को आ सकती हैं। हालांकि, केंद्र सरकार ने किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड की अदायगी के लिए दो महीने अतिरिक्त समय दिया है। इसके तहत किसान 31 मई तक इसका भुगातन सिर्फ 4 फीसदी ब्याज दर पर ही कर सकेंगे, लेकिन किसान को इससे भी राहत मिलती हुई नजर नहीं आ रही है क्योंकि किसान को ये पैसे एक तो दो महीने बाद इकट्ठे और ब्याज के साथ भरने पड़ेंगे।