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Updated on: 12 September, 2019 12:00 AM IST
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भारतीय आबादी का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है.  इसमें  सालाना लगभग 500 मिलियन टन से अधिक फसल अवशेष पैदा होते हैं . इन अवशेषों को मुख्य तौर पर पशु चारे  के रूप में उपयोग किया जाता है तथा इसके साथ-साथ यह घरेलू और औद्योगिक ईंधन का भी स्रोत है. लेकिन हाल ही के वर्षों में मानव श्रम की कमी, परंपरागत तरीकों से फसल अवशेषों को हटाने में कमी और फसलों की कटाई के लिए नवीनतम मशीनों के उपयोग के कारण फसल अवशेषों को जलाने की समस्या बढ़ रही है. उत्तर भारत विशेषतः पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में चावल, गेहूं, कपास, मक्का, गन्ना और बाजरा की फसलों के अवशेषों का एक बड़ा हिस्सा मुख्य रूप से आगामी फसल की बुवाई के लिए क्षेत्र को साफ़ करने के लिए खेत में जला दिया जाता है जो आज की बड़ी समस्या बन गया है. फसल अवशेषों को जलाना पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो रहा है. दूसरी ओर यह ग्लोबल वार्मिंग को भी बढ़ावा दे रहा है. जिसके कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन बढ़ रहा है. इसके परिणामस्वरूप गर्मी की अवधि साल दर साल बढ़ रही है जो सारे विश्व के लिए एक चिंता का विषय बनी हुई है. इसका दूसरा विपरीत प्रभाव मिट्टी के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है जिसके कारण मिट्टी में उपलब्ध एन.,पी., के. और एस. जैसे पोषक तत्वों का नुकसान होता है. मिट्टी के पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए किसान की उत्पादन लागत में भी वृद्धि हुई है .

हाल ही के वर्षों में भारतीय कृषि प्रतिकूल जलवायु का सामना कर रही है क्योंकि सूखे, बाढ़, फसल उत्पादकता में कमी, बीमारी के उपद्रव जैसी विभिन्न समस्याएं किसानों की आय में असुरक्षा का कारण बन कर सामने खड़ी हैं. इसके साथ यह एक विरोधाभास है कि फसल अवशेषों का जलाना और चारे की अपर्याप्तता दोनों मुद्दे इस देश में मौजूद हैं. कहीं न कहीं ये दोनों मुददे एक दूसरे से जुड़े हुए भी है. जिससे हाल ही के वर्षों में देश में चारे की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. एक उत्पादक और लाभप्रद तरीके से अवशेषों का प्रबंधन करने के लिए संरक्षण कृषि एक अच्छा अवसर प्रदान करती है. संरक्षण कृषि-आधारित प्रौद्योगिकियों को अपनाने के साथ इन अवशेषों का उपयोग मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार, फसल उत्पादकता में वृद्धि, प्रदूषण घटाने और कृषि की स्थिरता और लचीलेपन में वृद्धि के लिए किया जा सकता है .

फसल अवशेषों को जलाने के मुख्य कारण:-       

- श्रमिको की अनुपलब्धता.

- फसल अवशेषों को संभालने के लिए कटाई के दौरान उच्च मजदूरी·

- आगामी फसल की बुवाई के लिए समय की कमी.

- किसानों में पर्यावरण के बारे में जागरूकता की कमी·

- विशेष रूप से कटाई के उपयोग में मशीनीकरण का उपयोग बढ़ाना·

- पशुधन की संख्या घटना·

- खेत में फसल अवशेष कंपोस्टिंग का लंबी अवधि लेना·

- आर्थिक रूप से व्यावहारिक वैकल्पिक समाधानकी अनुपलब्धता· 

- फसल अवशेष (भूसे) के लिए एक बड़ी परिवहन लागत·

- भूसे के लिए भंडारण सुविधा की कमी·

- चावल फसलों के भूसे का कम पौष्टिक मूल्य·

- फसल अवशेष के लिए बाजार की कमी

फसल अवशेषों का विभिन रूप में उपयोग:- फसल अवशेषों का उपयोग पशु चारा, कंपोस्टिंग, बिजली उत्पादन, जैव ईंधन उत्पादन और मशरूम की खेती के लिए किया जा सकता है. इसके अलावा कई अन्य कार्यों जैसे छप्पर,चटाई और खिलौना बनाने में भी इसका प्रयोग सदियों से हो रहा है .

1. पशुओं का चारा
भारत में फसल अवशेष पारंपरिक रूप से पशु चारे के रूप में उपयोग किए जाते हैं. हालांकि फसल अवशेष अप्रत्याशित और पाचन में कम होने के कारण पशुधन के लिए एकमात्र राशन नहीं बना सकते हैं. फसल अवशेषों में कम घनत्व वाले रेशेदार पदार्थ होते हैं  तथा इनमें नाइट्रोजन कम, घुलनशील कार्बोहाइड्रेट, खनिज और विटामिन अलग-अलग तथा कम मात्रा में होते हैं. जानवरों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अवशेषों को यूरिया और गुड़ के साथ प्रसंस्करण की आवश्यकता होती है. 

2. खाद बनाने के लिए

परंपरागत रूप से खाद तैयार करने के लिए फसल अवशेषों का उपयोग होता हैं. इसके लिए फसल अवशेषों का उपयोग जानवरों के बिस्तर के रूप में किया जाता है और फिर गोबर के गड्ढे में ढेर कर दिया जाता है. इस भूसे के प्रत्येक किलोग्राम में लगभग 2-3 किलोग्राम मूत्र अवशोषित होता है जो इसे नत्रजन के साथ समृद्ध करता है. एक हेक्टेयर भूमि से चावल की फसल के अवशेष पोषक तत्वों के रूप में लगभग 3 टन खाद के रूप में पोषक तत्वों के साथ समृद्ध होते हैं, जिसका उपयोग फसल उत्पादकता में वृद्धि के साथ साथ कृषि की लागत को कम किया जा सकता है. इसके अलावा इसे मल्चर की सहायता से मिट्टी में मिलाकर भी खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. 

3. बायो-मेथनेशन

इस प्रक्रिया का उपयोग उच्च गुणवत्ता वाली ईंधन गैस बनाने के लिए किया जा सकता है. इसके साथ इससे उच्च गुणवत्ता वाली खाद भी प्राप्त होती है जिसे खेतों में डालने के लिए उपयोग किया जा सकता है. बायोमास जैसे चावल का भूसा, पशुओं के गोबर को बायोगैस टैंक में डालकर मीथेन गैस का उत्पादन किया जाता है जोकि रसोईघर के लिए एक अच्छा व कम लागत वाला ईंधन है.

4. उद्योगों में उपयोग

पराली का उपयोग विभिन्न उद्योगों जैसे बिजली उद्योग आदि में ईंधन के रूप  किया जा सकता है. पराली  के केक बनाकर इसे कोयले के दूसरे विकल्प के रूप में आसानी से प्रयोग में लाया जा सकता है. इसके अलावा पेपर और कार्डबोर्ड इंडस्ट्री में तथा सेनेटरी वेयर की पैकिंग के लिए भी पराली का उपयोग किया जा सकता है. 

फसल अवशेष जलाने का प्रबंधन·

फसल अवशेष जलने पर प्रतिबंध:- फसल अवशेष जलने को 1 9 81 के वायु अधिनियम, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1 9 73 और विभिन्न उपयुक्त अधिनियमों के तहत एक अपराध के रूप में अधिसूचित किया गया था. इसके अलावा किसी भी दोषी किसानों पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए. गांव और ब्लॉक स्तर के प्रशासनिक अधिकारियों को प्रवर्तन के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

पता लगाने और रोकथाम:-  रिमोट सेंसिंग तकनीक का एक संयोजन - सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग- और स्थानीय अधिकारियों-उप-मंडल मजिस्ट्रेट, तहसीलदार, ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर, पटवारी और गांव स्तरीय श्रमिकों वाली एक टीम का उपयोग वास्तविक जलने वाली फसल अवशेषों की घटनाओं का पता लगाने व रोकने के लिए जाना चाहिए.

फसल अवशेष के लिए एक बाजार की स्थापना:- धान के भूसे और अन्य फसल अवशेष के वैकल्पिक उपयोग के लिए मार्गों को बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए. मिसाल के तौर पर धान के भूसे में काफी मात्रा में कैलोरीफुल वैल्यू होता है जो इसे बायोमास आधारित बिजली संयंत्रों में ईंधन के रूप में उपयोग के लिए उपयुक्त बनाता है. इसी प्रकार इसका उपयोग बायो-ईंधन, कार्बनिक उर्वरकों और कागज और गत्ता बनाने वाले उद्योगों में उपयोग किया जा सकता है.

जन जागरूकता अभियान:- फसल अवशेष जलने के स्वास्थ्य पड़ रहे दुष्प्रभाव को उजागर करने के प्रयास किए जाने चाहिए. यह विषाक्त कणों  का अत्यधिक उच्च स्तर का उत्पादन करता है जो  आसपास के लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है. इसके अलावा फसल अवशेष के वैकल्पिक उपयोग के बारे में किसानों को सूचित करते हुए विभिन्न प्रिंट मीडिया, टेलीविज़न शो और रेडियो के माध्यम से अभियानों के अलावा किसान शिविरों, प्रशिक्षण और कार्यशालाओं के माध्यम से भी प्रयास किए जाने चाहिए.

फसल अवशेष प्रबंधन प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन: अधिकांश किसान फसलों की प्रबंधन प्रौद्योगिकी के बारे में नहीं जानते हैं इसलिए सार्वजनिक और निजी एजेंसियों  के द्वारा जागरूक करके और नवीनतम तकनीकों के प्रदर्शन के द्वारा किसानो को सिखाने में एक बड़ी भूमिका निभाई जा सकती है. इससे इस मुद्दे को संभालने के लिए किसान के प्रबंधन कौशल और ज्ञान में सुधार होगा.

कृषि-उपकरणों पर सब्सिडी:- राज्य सरकारों, केंद्र के सहयोग से, यांत्रिक उपकरणों पर सब्सिडी प्रदान करने के लिए योजनाएं शुरू करनी चाहिए ताकि फसल अवशेषो को मिट्टी में बनाए रखा जा सके जो मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाने में मदद करेगी .इसके अलावा जिन जिन कृषि यंत्रों पर सब्सिडी उपलब्ध हो उसके बारे में किसान को पूर्ण रूप से अवगत कराया जाना चाहिये ताकि वो इन सब्सिडियों का पूरा फायदा उठा सके और अपनी फसल व उनके अवशेषों का सुचारु रूप से प्रबंधन कर सके. 

फसल विविधीकरण:  फसल तकनीकों के विविधीकरण पर विभिन्न दीर्घकालिक प्रयास चल रहे हैं जिससे फसल अवशेष जलने को प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है. इन्हें वैकल्पिक फसलों की खेती (चावल / धान और गेहूं के अलावा) के माध्यम से कम किया जाना चाहिए जो कम फसल अवशेष उत्पन्न करते हैं और फसल चक्रों के बीच अधिक अंतर अवधि होती है. इसके साथ साथ किसान को विभिन्न फसल चक्रों के लाभ से भी अवगत करवाया जाना चाहिए ताकि वो इन फसल चक्रों को अपनाने का सही निर्णय लेने में सक्षम हो सके. 

चावल और गेहूं की फसल अवशेष जलने के कारण प्रदूषण की समस्या को नीति निर्माताओं और विभिन्न अधिकारियों द्वारा ज्यादा तवज्जो  नहीं मिली है. यह आंशिक रूप से इस तथ्य के कारण हो सकता है कि चावल और गेहूं अवशेषों का जलाना केवल अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर के चयनित महीनों के दौरान होता है . लेकिन इन महीनों के दौरान उत्पन्न  हुए प्रदूषण के कारण जनस्वास्थ्य के साथ साथ क्षेत्र विशेष का पर्यावरण स्तर भी बुरी तरह प्रभावित होता है. इसलिए फसल अवशेष जलने के मुद्दे से निपटने के लिए कंबाइन हारवेस्टर जैसे फसलों की कटाई में उपयोग की जाने वाली मौजूदा मशीनरी में सुधार की तत्काल आवश्यकता है | जिससे फसल कटाई के साथ साथ फसल अवशेषो का भी निपटारा हो सके . इसके साथ-साथ सरकार को नवीनतम मशीनरी जैसे कि हैप्पी सीडर, जीरो टिलेज व स्ट्रॉ बाइंडर पर प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है . इसके अलावा किसानों की सोच व दक्षता निर्माण भी महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि अवशेष जलने के बारे में किसान विचार में बदलाव के बिना प्रौद्योगिकी बहुत मदद नहीं कर सकती. किसानों को प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य के बारे में विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम और अन्य मास मीडिया के माध्यम से अवगत कराना चाहिए. सरकार को विभिन्न क्षेत्रों के लिए फसलों के अवशेषों को बेचने के लिए मंच भी प्रदान करने चाहिए जिससे किसानों की आय को दोगुना करने में मदद मिले तथा यह समस्या समाधान के साथ साथ किसान के लिए अतिरिक्त आय उत्पन्न करने में सहायक सिद्ध हो.

लेखक- मनजीत एवं डॉ जोगिन्दर सिंह मलिक

1. पीएचडी शोद्यार्थी

2. विभाग अध्यक्षक

विस्तार शिक्षा विभाग, कृषि महाविद्यालय

चौ. च. सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, हरियाणा 125004

ईमेल: Manjeetpanwar365@gmail.com

English Summary: Burning of crop residues: problems and solutions
Published on: 12 September 2019, 12:23 IST

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