Maize Farming: रबी सीजन में इन विधियों के साथ करें मक्का की खेती, मिलेगी 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार! पौधों की बीमारियों को प्राकृतिक रूप से प्रबंधित करने के लिए अपनाएं ये विधि, पढ़ें पूरी डिटेल अगले 48 घंटों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में घने कोहरे का अलर्ट, इन राज्यों में जमकर बरसेंगे बादल! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 14 July, 2023 12:00 AM IST
भारत में कहां से आया आलू

आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है. भारत में शायद ही कोई ऐसा किचन होगा, जहां आलू नहीं दिखता हो. आलू एक ऐसी फसल है जिसे प्रति इकाई क्षेत्रफल में अन्य फसलों गेंहू, धान, मूंगफली के अपेक्षा अधिक उत्पादन मिलता है तथा प्रति हेक्टेयर आय भी अधिक होती है.

आलू गरीबों के खानपान का राजा कहा जाता है. यह एक सस्ती और आर्थिक फसल है, आलू के प्रत्येक कंद पोषक तत्वों का भंडार है. जो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के शरीर के तत्वों का भंडार है. ये बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के शरीर का पोषण करता है. आलू में मुख्य रूप से 80 से 82% पानी होता है और 14% स्टार्च, 2% चीनी, 2 प्रतिशत प्रोटीन, 1% खनिज लवण, 0.1 प्रतिशत वसा तथा अल्प मात्रा में विटामिन पाए जाते हैं. अब तो आलू को एक उत्तम पौष्टिक आहार के रूप में शामिल किया जाने लगा है. बढ़ती आबादी के कुपोषण एवं भुखमरी से बचने में एक मात्र यही फसल मददगार है. इसलिए इसे गरीब आदमी का मित्र कहा जाता है.

मौसम

आलू की खेती समशीतोष्ण जलवायु की फसल है. उत्तर प्रदेश में उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु परिस्थितियों में रबी के मौसम के दौरान इसकी खेती की जाती है. सम्मान तौर पर अच्छी खेती के लिए फसल की अवधि के दौरान दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 4 से 15 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए.

फसल में कंद बनने के समय लगभग 18 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा होता है. कंद बनने से पहले कुछ तापमान होने पर फसल की वानस्पतिक वृद्धि अच्छी होती हैलेकिन कंद बनना बंद हो जाता है. जब तापमान लगभग 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है. आलू की फसल में कंद बनना पूरी तरह से बंद हो जाता है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र

आलू की उत्पत्ति का स्थान दक्षिण अमेरिका को माना जाता है. लेकिन भारत देश में आलू प्रथम बार 17वीं शताब्दी में यूरोप से आया था. आलू की खेती देश के सभी राज्यों में की जाती है. लेकिन ज्यादातर उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, बिहार असम और मध्य प्रदेश आदि राज्यों में किया जाता है.

खेत की तैयारी

सबसे पहले खेत की जुताई दो से तीन बार कर देनी चाहिए ताकि उसमें घास-फूस खरपतवार आदि को अच्छी तरह से निकाला जा सके. खेत में नमी का होना जरूरी है. बहुत ज्यादा नमी ना हो पर खेत सख्त भी नहीं होना चाहिए. जब खेत में से कंकर पत्थर घास प्लास्टिक आदि को निकाल लिया जाए तो खेत को समतल बना लेना चाहिए और उसमें आवश्यक खाद, गोबर की खाद और रासायनिक फर्टिलाइजर की खाद एवं पोटाश की मात्रा अधिक मिलाकर खेत की जुताई कर देनी चाहिए. जिससे खाद अच्छी तरह से खेत में मिल जाए. प्रत्येक जोताई में 2 दिन के अंतराल रखने से खरपतवार कम हो जाते हैं और खेत की नमी बनी रहती है.

रोपाई

आलू बोने का सबसे अच्छा समय हस्त नक्षत्र के बाद और दीपावली के दिन तक है. वैसे आलू की बुवाई अक्टूबर के प्रथम से दिसंबर के दूसरे सप्ताह तक की जाती है. लेकिन अधिक उपज के लिए मुख्य रोपाई 5 नवंबर से 20 नवंबर तक कर लेनी चाहिए.

आलू के बीज के प्रकार

जब खेत तैयार हो जाए तो आलू बोने से पहले उसका चुनाव कर लेना अच्छा रहता है. बीज वाला आलू ही खरीदना चाहिए. अगर आलू में किसी प्रकार का रोग है या सड़ा हुआ है तो ऐसे आलू का चयन बोने के लिए नहीं करना चाहिए. जब आलू का चुनाव कर लिया जाए तो उसे चाकू से काट कर टुकड़े कर लेना चाहिए. इस बात का ध्यान दें कि आलू के प्रत्येक टुकड़े में कम से कम दो आंखें जरूर हों. आंखों से मतलब आलू पर लाल घेरा लगना है, जहां से आलू को बोने के बाद अंकुर फूटते हैं. ध्यान रखें कि बीज वाली आलू थोड़ा अंकुरित हो जाए तो उसे ही बीज में इस्तेमाल करें. अगर आलू का आकार छोटा है या उसकी आंखें बहुत छोटी हैं तो उन्हें बिना कांटे पूरा ही बो देना चाहिए.

खाद एवं उर्वरक

सबसे पहले की तैयारी में जुताई करते समय 15 से 20 टन गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर से डालना चाहिए. जिससे जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है. जो कंदो की पैदावार बढ़ाने में सहायक होती है. उर्वरक में समान तौर पर 180 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस तथा 100 किलोग्राम पोटाश डालना चाहिए. मृदा परीक्षण के आधार पर यह मात्रा घट बढ़ सकता है. वैसे तो आलू की फसल में अधिक मात्रा में रासायनिक खादों की जरूरत पड़ती है.

बीज की बुवाई

बुवाई वाले खेत में प्राप्त नम होने पर पलेवा करना आवश्यक है. बीज के आकार के आलू के कंदो को कूडों में बोया जाता है तथा मिट्टी से ढक कर हल्की मेड़ बना दी जाती है. इसके लिए पोटैटो प्लांटर का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस बुवाई से समय श्रम व धन की बचत होती है. आलू की शुद्ध फसल के लिए दो पंक्तियों के बीच की दूरी 40 सेंटीमीटर होती है.

हालांकि मक्का में आलू की अंतरफसल के लिए दो पंक्तियों के बीच की दूरी 60 सेंटीमीटर होनी चाहिए. यदि गन्ने में आलू की अंतरफसल करनी है तो गन्ने की दो पंक्तियां के बीच 60 सेंटीमीटर दूरी होनी चाहिए. पंक्तियों के बीच की दूरी के आधार पर दो पंक्तियों के बीच 40 सेंटीमीटर पर गन्ना लगाना चाहिए. आलू को 2 पंक्तियों की दूरी पर रखें. जो किसान आलू के साथ-साथ मक्का उपज लेना चाहते हैं, वो आलू की एक पंक्ति छोड़ कर दुसरी पंक्ति के लिए नाली में रोपड़ कर सकते हैं. प्रत्येक पंक्ति में दो कंदो की बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर तक काट लें, 20 सेंटीमीटर और बड़े कंद की दूरी पर पौधे लगाएं. अंतिम जुताई के समय अगर सब्जी वाली मटर फसल लेना चाहते हैं तो अंतिम जुताई के समय मटर के बीज का छिड़काव करके बो देना चाहिए. सब्जी वाली मटर 40 से 60 दिन में तैयार हो जाती है. बाजार में सब्जी के रूप में बेच सकते हैं.

आलू बोने से पहले कुछ ध्यान देने योग्य बातें

आलू से पहले कुछ बातों को ध्यान में रखें की जहां आप आलू को बोने जा रहे हैं. वहां सूर्य का प्रकाश अच्छी मात्रा में पहुंच रहा है कि नहीं. क्योंकि आलू को अंकुरित होने के लिए गर्मी और प्राप्त सूरज के प्रकाश की आवश्यकता पड़ती है. आलू को उसी दिन बोना चाहिए जिस दिन सूर्य का प्रकाश अच्छी मात्रा में मिल रहा हो. दूसरी बात जहां आप आलू को बोने जा रहे हैं, वहां पर पहले से कोई दूसरी फसल उगाई होनी चाहिए. यानी वहां पर आलू के अलावा कोई दूसरी फसल लगाई जा चुकी हो. इससे खेत में नत्रजन की कमी नहीं होगी. तीसरी बात जहां आलू बोया जा रहा है वहां पर नमी जरूर हो, क्योंकि आलू की अच्छी पैदावार के लिए नमी का होना जरूरी है. साथ ही साथ सिंचाई की सुविधा हो.

सिंचाई

जब आलू को खेत में बो दिया जाता है तब उसके बाद सिंचाई और गोड़ाई किया जाता है. आलू के खेत में नमी बराबर होनी चाहिए इसलिए आलू के खेत में सिंचाई लगातार करते रहना चाहिए. ये ध्यान रहें की सिंचाई बहुत अधिक ना हो और ना ही कम हो. जब ऐसा लगे कि आलू की खेत में नमी की कमी है तो तुरंत सिंचाई कर देना चाहिए. इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि आलू जिस खेत में बोया गया है उसकी मिट्टी ढीली रहे.

सिंचाई करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आलू की फसल में नाली में सिंचाई करते समय नाली में आधा ही पानी रहे. ऊपर की सतह पर पानी न जाएं. अगर ऊपर की सतह पर पानी चली गई तो मिट्टी कड़ी हो जाएगी, आलू में कंद नहीं बन पाएंगे और उपज में कमी आएगी.

रबीन्द्रनाथ चौबे, कृषि मीडिया, बलिया, उत्तर प्रदेश

English Summary: All important information about potato called friend of the poor
Published on: 14 July 2023, 02:09 IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now